लोक आस्था का महा
पर्व-छठ व्रत
लाल बिहारी लाल
छठ मईया की महिमा,जाने सकल जहान।
“लाल पावे” जे
पूजे, सदा करी कल्याण।।
(लाल बिहारी लाल)
सृष्टी की
देवी प्रकृति नें खुद को छः भागों में बांट रखा है। इनके छठे अंश को मातृदेवी के
रुप में पूजा जाता है। ये ब्रम्हा की मानस पुत्री हैं। छठ व्रत यानी इनकी
पूजाकार्तिक मास में आमवस्या के दीपावली के छठे दिन मनाया जाता है इसलिए इसका नाम
छठ पर्व पड़ गया। छठ व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित एक हिंदुऔं का विशेष लोक पर्व
है। भगवान सूर्यदेव के शक्तियों के मुख्य स्त्रोत उनकी पत्नी उषा औऱ प्रत्यूषा है।
यह पर्व उतर भारत के कई हिस्सों में खासकर यू.पी. झारखंड और बिहार में तो महापर्व के रुप
में मानाया जाता है। शुद्धता, स्वच्छता और पवित्रता के साथ मनाया जाने वाला यह
पर्व आदिकाल से मनाया जा रहा है। छठ
व्रत में छठी माता की पूजा होती है और उनसे संतान व परिवार की रक्षा का वर मांगा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन
से छठ मैया का व्रत करता है। उसे संतान
सुख के साथ-साथ मनोवांछित फल जरुर प्राप्त होता है। प्रायः हिदुओं द्वारा मनाये
जाने वाले इस पर्व के इस्लाम औऱ अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं।
यह पर्व हर
वर्ष चैत एवं कार्तिक महिने में मनाया जाता है जिसे क्रमशः चैती छठ एवं कार्तिकी
छठ कहते हैं। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में दीवाली के चौथे दिन से शुरु होकर
सातवें दिन तक कुल 4 दिनों तक मानाया जाता है। इसमें पहले दिन यानी चतुर्थी को
घऱबार साफ सुथरा करके स्नान करने के बाद खाना में चावल तथा चने दाल तथा लौकी का
सादा सब्जी बनाया जाता है फिर खाया जाता है जिसे नहा खाये कहते है। अगले दिन
संध्या में पंचमी के दिन खरना यानी के गुड़ में चावल का खीर बनाया जाता है। उपले
और आम के लकड़ी से मिट्टी के चूल्हें पर फिर सादे रोटी और केला के साथ छठ माई को
याद करते हुए अग्रासन निकालने के बाद धूप हुमाद के साथ पूजा के बाद पहले व्रती
खाती है फिर घर के अन्य सदस्य खाते हैं। इसी के साथ मां का आगमन हो जाता है। तत्पश्चात
षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं। संध्या के समय पकवानों को बड़े बडे
बांस के डालों तथा टोकरियोंमें भरकर नदी, तालाब, सरोवर आदि के किनारे ले जाया जाता है।जिसे छठ घाट
कहा जाता है। फिर व्रत करने वाले भक्त उन डालों को उठाकर डूबते सूर्य(अस्ताचल) के
समय सूरज की अंतिम किरण प्रत्यूषा को आर्घ्य देते हैं। ताकि जाते हुए माता सभी दुख
दर्द लेती जाये और फिर सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने-अपने घर आ जाते हैं। छठ व्रत
के दौरान रात भर जागरण किया जाता है और सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में
पुन: संध्या काल
की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा
होते हैं। व्रत करने वाले सभी व्रतधारी सुबह के समय उगते सूर्य
(उदय़मान) की किरणें उषा को आर्घ्य देते हैं ताकि जीवन में नई उर्जा का पुनः संचार
हो। इसमें अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठीव्रत की कथा कही और सुनी जाती है।कथा के
बाद छठ घाट पर प्रसाद वितरण किया जाता है और फिर सभी अपने-अपने घर लौट आते हैं। तथा व्रत करने
वाले इस दिन पारण करते हैं। यह क्रम खरना के दिन से व्रती लगातार 36 घंटे निर्जल
एवं निराहार रहते हुए व्रत करती है। इसलिए इसे कठिनतम व्रत भी कहा गया है।
कार्तिक
मास में षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले छठ व्रत की शुरुआत रामायण काल से
हुई थी। लोक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को त्रेतायुग में माता सीता ने
तथा द्वापर युग में पांडु की पत्नी कुन्ती ने की थी जिससे कर्ण के रुप में पुत्र
रत्न की प्राप्ति हुई थी। पांडव का वैभव एवं राजपाट छिन जाने पर भगवान कृष्ण के
सलाह पर पांडव की पत्नी द्रौपदी ने भी इस व्रत को किया था जिससे पांडवो का खोया हुआ वैभव एवं राजपाट पुनः
मिल गया था।हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य एक मात्र प्रत्यक्ष देवता हैं।
वास्तव में इनकी रोशनी
से ही प्रकृति में जीवन चक्र चलता है। इनकी किरणों से धरती में फल, फूल, अनाज उत्पन्न होता है।छठ व्रत भी इन्हीं भगवान सूर्य को समर्पित है । इस महापर्व में
सूर्य नारायण के साथ देवी षष्टी की पूजा भी होती है।छठ पूजन कथानुसार छठ
देवी भगवान सूर्यदेव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भक्तगण भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका
धन्यवाद करते हुए मां
गंगा-यमुना या किसी अन्य नदी या जल स्त्रोत के किनारे इस पूजा को मनाते हैं।इस
ब्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती हैतथा पूजा करने वाले हर
प्राणियों की मनोकामनायें पूर्ण होती है।यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को
मनाई जाती है। और यह भगवान
सूर्य को समर्पित है। बिहार और पूर्वांचल के निवासी आज जहां भी हैं वे सूर्य भगवान को अर्ग देने की परंपरा को आज भी कायम
रखे हुए हैं।यही कारण है कि आज यह पर्व
बिहार,झारखंड और पूर्वांचल की सीमा से निकलकर देश विदेश में मनाया जाने लगा है। चार दिनों तक चलने
वाला यह पर्व बड़ाही कठिन है।
इसमें शरीर और मन को पूरी तरह साधना पड़ता है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार
भगवान राम सूर्यवंशी थे और उनके कुल देवता सूर्यदेव थे। इसलिए भगवान राम
जब लंका से रावण वध करके अयोध्या वापस लौटे तो अपने कुलदेवता का
आशीर्वाद पाने के लिए उन्होंने देवी सीता के साथ षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू
नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्टान
एवं अन्य वस्तुओं से अर्घ्य प्रदान
किया। सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का
आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद राजकाज संभालना शुरु किया। इसके बाद से आम जन
भी सूर्यषष्ठी का पर्व मनाने लगे ।एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा
प्रियव्रत थे उनकी पत्नी थी मालिनी ।राजा रानी नि:संतान होने से
बहुत दु:खी थे। उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से
मालिनी गर्भवती हुई परंतु नौ महीने बाद जब उन्होंने बालक को जन्म दिया तो
वह संतान मृत पैदा हुआ। प्रियव्रत इस से अत्यंत दु:खी हुए और आत्म हत्या करने हेतु तत्पर हुए।प्रियव्रत
जैसे ही आत्महत्या करने वाले थे उसी समय
एक देवी वहां प्रकट हुईं। देवी ने कहा प्रियव्रत मैं
षष्टी देवी हूं। मेरी पूजा आराधना से पुत्र की प्राप्ति होती है, मैं सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाली हूं।
अत: तुम मेरी पूजा करो तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति
होगी। राजा ने देवी की आज्ञा मान कर कार्तिक शुक्ल षष्टी तिथि को देवी षष्टी की
पूजा की जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई । और उसी दिन से छठ व्रतका अनुष्ठान चला आ रहा है।इस
त्यौहार को बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेशएवं भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हर्षोल्लास एवं नियम निष्ठा के साथ मनाया जाता है। इस
त्यौहार की यहां बड़ीमान्यता है। इस महापर्व में देवी षष्ठी माता
एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए स्त्री और पुरूष दोनों ही
व्रत रखते हैं।इस पर्व के विषय में मान्यता है कि षष्टी माता और
सूर्य देव से इस दिन जोभी मांगा
जाता है वह मनोकामना पूरी होती है । इस अवसर पर मनोकामना पूरीहोनेपर बहुत से लोग
सूर्य देव को दंडवत प्रणाम करते हैं। सूर्य को दंडवत प्रणाम करने का व्रत बहुत ही कठिन होता है, लोग अपने घर में कुल देवी या देवता को प्रणाम कर नदी तट तक दंड देते हुए जाते हैं। दंड
प्रक्रिया के अनुसार पहले सीधे खडे
होकर सूर्य देव को प्रणाम किया जाता है फिर पेट की ओर से ज़मीन पर लेटकर दाहिने हाथ से ज़मीन पर
एक रेखा खींची जाती है. यही प्रक्रिया नदी तट (छठ घाट) तक पहुंचने तक बार बार दुहरायी जाती है
।भगवान सूर्यदेव के प्रतिभक्तों के अटलआस्था का अनूठा पर्व छठ हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से
सप्तमी तिथि तक मनाया जाता
है।सूर्यवंदना का उल्लेख ऋगवेद में भी मिलता है। इसके अलावे विष्णु पुरान,भगवत
पुरान ब्रम्ह वैवर्त पुरान सहित मार्कण्डेय पुराण में छठ पर्व के बारे में वर्णन
किया गया है।दिवाली के ठीक छठे दिन बाद मनाए जानेवाले इस महाव्रत की सबसे कठिन और साधकों हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिकशुक्ल
षष्टी की होती है जिस कारण हिन्दुओं के इस परम पवित्र व्रत का नाम छठ(Chhath
Puja)पड़ा।चार दिनों तक मनाया जानेवाला सूर्योपासना का यह अनुपम महापर्व
मुख्य रुप से बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष के अलावे कई अन्य
देशों में बहुत ही धूमधाम और हर्सोल्लास से मनाया जाता है ।
लाल बिहारी गुप्ता 'लाल'
(संपादक- साहित्य टी.वी.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें