शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

दीपावाली पर खुशियाँ ग्रीन पटाखों से ही मनायें और जीवन बचायें

 दीपावाली पर खुशियाँ ग्रीन पटाखों से ही  मनायें  और जीवन बचायें

 
लाल बिहारी लाल
 
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साधारण पटाखों से निकलने वाली गैसों में सल्फर डाई आंक्साइड-जिससे ,गले एवं छाती में संक्रमण, श्वसन में परेशानी,कारबन मोनो आक्साइड –खाँसी, त्वचा में परेशानी, उच्च रक्त चाप, मानसिक एवं हृदय की बिमारियाँ उतपन्न, पोटेशियम नाइट्रेट जो  कैंसर के मुख्य वजह है. हाइड्रोजन सल्फाइड जो  छाती में दिक्कत, ब्रोमियम आक्साइट  आँखों की त्वचा  तथा गंध सूघने की क्षमता का नष्ट कर देता है। इसेक साथ ही उच्च शोर से मानव क कान को पर्दे भी फट सकते है।
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नई दिल्ली। भगवान राम चंद्र कई दुर्दांत राक्षसों का वध कर वनवास से अयोध्या वापस  आये तो इसी खुशियों को मनाने के लिए पूरी अयोध्या को दीपों से सजाया गया था जो कलांतर में दीपावली का रुप ले लिया। पर धीरे-धीरे  खुशियाँ मनाने का तरीका बदल गया और आज हर मौसम या हर खुशी में पटाखों  को सुमार कर लिया गया है। बढ़ती हुई आबादी और घटते हुए वन ने पर्यावरण पर काफी दबाब बढ़ा दिया  है, ऐसे में इस मौसम में अन्य मौसम की तुलना में हवायें काफी प्रदूषित होती है उपर से पटाखो का शोर और धुआं जीवों के लिए काफी हानिकारक साबित हो रही है। इसी को ध्यान में रखकर कई पर्यावरण संस्थानों के सुझाव पर सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्टूबर 2017 को देश में दीपावाली पर ग्रीन पटाखे को जलाने के लिए इजाजत दी थी यानी साधारण पटाखों पर बैन लगा दिया गया साथ ही साथ जलाने के समय सीमा भी रात्री में 8 बजे से 10 बजे निर्धारित कर दी औऱ यही प्रावधान वर्ष  2018,2019 भें भी लागू रहा । वर्ष 2020 मे करोना के कारण कुछ मौसम परिस्थितियाँ अनुकुल नही था पर पर्यावरण में काफी सुधार हुआ। वर्ष 2021 मे धीरे –धीरे सभी क्रिया कलाप पटरी पर लौट आई । वर्ष 2021 में दीपावली पर सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखे ही जलाने की इजाजत दी है और  अधिकारियों पर जिम्मेदारी भी तय कर दी है।
  इस वर्ष संस्कृति की दुहाई देकर माननीय सांसद मनोज तिवारी छूट के लिए सुप्रीम कोर्ट गये थे पर छूट नहीं मिली।माननीय जज एम आऱ शाह की बेंच ने फटकार लगाते हुए कहा कि कि आप भी दिल्ली और एन.सी.आर में रह कर इस तरह की बात कर रहे है। इन्होने ये भी कहा कि दिल्ली एन.सी.आर में दीवाली पर पटाखों पर बैन रहेगी 2 जनवरी 2023 तक वही देश के अन्य हिस्सों में पहले की तरह जारी रहेगा यानी ग्रीन पटाखे जलाने की इजाजत रहेगी। यह एक सकारात्मक पहल  है पर यह तभी संभव है जब जनता जागरुक हो और सरकार का हाथ बटाये वरना पटाखों के इस जलन से जीव संकट में आ जायेंगे। ।

  बात करते है ग्रीन पटाखों की तो दुनिया में चीन को बाद भारत दूसरे पायदान पर निर्माता(उत्पादक) के रुप में जाना जाता है। पटाखो के घटक में से अल्युमुनियम, बेरियम  पोटेशियम नाइट्रेट तथा कार्बन की मात्रा कम या बिल्कुल नगन्य कर दी जाती है तो यही पटाखे ग्रीन पटाखे कहलाती है। इन पटाखों से  वातावरण में 30-40% गैसे कम उत्यर्जित होती है जिससें वाताररण में 30-40 प्रतिशत  प्रदूषण कम फैलते हैं। इन पटाखो का निर्माण राष्ट्रीय पर्यावरण अभियंत्रिकी संस्थान (NEERI/निरी),पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संस्थान(PESO/पेसो) के सहयोग से सी.एस. आई. आऱ. ने बनाया है। इन्हीं के फर्मूला का उपयोग अन्य पटाखा उत्पादक कंपनिया करती है जिन पर इको/ग्रीन पटाखे का लोगो होता है। साधारण पटाखों से निकलने वाली गैसों में सल्फर डाई आंक्साइड-जिससे ,गले एवं छाती में संक्रमण, श्वसन में परेशानी,कारबन मोनो आक्साइड –खाँसी, त्वचा में परेशानी, उच्च रक्त चाप, मानसिक एवं हृदय की बिमारियाँ उतपन्न, पोटेशियम नाइट्रेट जो  कैंसर के मुख्य वजह है. हाइड्रोजन सल्फाइड जो  छाती में दिक्कत, ब्रोमियम आक्साइट  आँखों की त्वचा  तथा गंध सूघने की क्षमता का नष्ट कर देता है। इसेक साथ ही उच्च शोर से मानव क कान को पर्दे भी फट सकते है। पटाखों के जलाने से बच्चें मानव बृद्ध के साथ-साथ पर्यावरण के अन्य जीव जन्तुओं पर भी इसका असर पड़ता है। जिससे जीवों पर संकट उत्पन्न हो गया है। अतः सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सराहनीय है। अब मानव को भी आगे आना होगा कोर्ट को इस कदम से कदम  मिलाना होगा तभी इस संकट स निजात मिल सकती है। वरना जीवों का जीना दुभर हो जायेगा। और मानव खुशियों की आड़ में अपना गला खुद घोंट लेगा।
 
लेखक- पर्यावरण प्रेमी एवं  साहित्य टी.वी. के संपादक है।
 

रविवार, 17 जुलाई 2022

खनकती आवाजों की मल्लिका बनी- अभिलिप्सा पांडा

 हर-हर शंभू ,शिव महादेवा वाइरल एलबम की गायिका


लाल बिहारी लाल




नई दिल्ली। उड़िया ,तेलगु के रास्ते हिंदी भजन में कैरियर की शुरुआत करने वाली खनकती आवाजों की मल्लिका अभिलिप्सा पांडा का जन्म ब्राह्मण परिवार में सन 2001 में उड़िसा के बारबिल गांव  जिला क्योझोर में हुआ था।

  अभिलिप्सा पांडा को संगीत विरासत में इनके दादा से मिला है जो  अपने ज़माने में हारमोनियम बजाने के लिए प्रसिद्ध थे। अभिलिप्सा का कहना है की पहली बार उनकी माताजी ने उन्हें गायत्री मन्त्र के जरिये संगीत से जोड़ा था जब वो एल.के.जी कक्षा में  केवल 4 वर्ष की थी। तभी से उड़ीसी क्लासिकल वोकल सीखना शुरू कर दिए था। लेकिन कुछ कारण वश उन्हें विराम देना पड़ा।

   अभिलिप्सा ने 2015 में द्रौपदी देवी कल्चरल इंस्टिट्यूट से हिंदुस्तानी वोकल सीखना शुरू किया। जब वह सिख रही थी तभी उनके गुरु ने उनसे पूछा कि क्या वह एक बच्चो के गाने को अपनी आवाज़ देंगी, तो इस पर अभिलिप्सा ने हाँ कर दी और इस प्रकार उन्होंने सिंगिंग इंडस्ट्री में पहला कदम रखा। साल 2017 – 18 में उन्होंने हिंदुस्तानी क्लासिकल वोकल में गवर्नर्स ट्रॉफी भी हासिल की। अभिलिप्सा ने एक ओड़िआ रियलिटी शो, उड़ीसा सुपर सिंगर में भी भाग लिया है। कुछ समय बाद ओडिसा सुपर सिंगर के निर्माताओं ने अभिलिप्सा की एक वीडियो क्लिप अलग- अलग सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी। यह क्लिप जीतू शर्मा ने देखा,जो काफी पसंद आया औऱ फिर उन्होंने अभिलिप्सा के साथ हर हर शम्भू गाना गया जो संस्कृत मिक्स है और इसका संगीत दिया है युवा संगीतकार  आकाश देव ने। जो 5 मई 2022 को यू ट्यूब पर चढ़ाया गया है और इतना तेजी से दर्शको के बीच लोकप्रिय हुआ है कि आज लगभग दो महिने में 70 मिलियन से ज्यादा लोगो ने देखा है। इसके बाद दो गीत  मंजिल केदारनाथ और  भोले नाथ जी भी आये हैं जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया है। आशा है  अभिलिप्सा अपने गायिकी कैरियर को एक नया मुकाम तक ले जायेंगी।

युवा कवयित्री डाँ.आशा सिंह सिकरवार भोपाल में हुई सम्मानित

 युवा कवयित्री डाँ.आशा सिंह सिकरवार भोपाल में हुई सम्मानित 


लाल बिहारी लाल



नई दिल्ली । साहित्यिक संस्था निर्दलीय का 49 वां वार्षिकोत्सव सह साहित्योत्सव गांधी भवन,  भोपाल में  आयोजित किया गया । जिसकी  अद्य़क्षता साहित्यकार एवं निर्दलीय के सलाहकार श्री राजेन्द्र शर्मा अक्षर ने की मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश के प्रथम चिकित्सा विश्वविद्यालय, जबलपुर के पूर्व कुलपति, डाँ.त्रिभुवन नाथ दुबे ,तथा अति विशिष्ट एवं विशिष्ट अतिथियों में सुश्री मेधा पाटकर, डाॅ.पवन कुमार भड़कतया जैन ( जबलपुर ),पूर्व मंत्री श्री दीपक जोशी एवं  श्री रमेश सिंह राघव (दिल्ली),श्री नीलकंठ राव यावलकर (अमरावती)श्री दयाराम नामदेव (सचिव-गांधी भवन न्यास ),श्री राजेश व्यास (सह सभापति-राज्य बार काउंसिल),श्री अब्दुल अज़ीज़ सिद्दकी (लखनऊ )श्री रमेश नंद ( वरिष्ठ कवि)एवं श्री शैलेश शुक्ला (पत्रकार) दुर्गा मिश्रा आदि कार्यक्रम में उपस्थित रहे । 


   राष्ट्रीय पुष्पेंद्र कविता सम्मान स्व. डाँ. रामघुलाम वैश्य रघु पूर्व दंत चिकित्साविशेषज्ञ की स्मृति में  श्री पुष्पेंद्र वैश्य श्रीमती कविता वैश्य, भोपाल द्वारा अहमदाबाद स्थित डाँ. आशा सिंह सिकरवार  को राष्ट्रीय शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया । इश असर पर 11 प्रांतों के  प्रतिष्ठित 58 सृजनधर्मियों को स्मानित किया गया। डाँ . आशा सिंह सिकरवार को अनेक पुरस्कार और सम्मान पहले भी प्राप्त हुए हैं । हाल ही में गुजरात विश्वविद्यालय अहमदाबाद के नये पाठयक्रम में  स्त्री विमर्श में ' उस औरत के बारे में 'काव्य संग्रह से  रचनाएँ शामिल हुई हैं ।   वे मुख्यधारा की महत्वपूर्ण कवयित्री में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं । आशा सिंह सिकरवार की लेखनी  ने कविता के अतिरिक्त ग़ज़ल, कहानी की  विधा को  अपनाया है । वे एक समीक्षक के रूप में में भी ख्याति प्राप्त हैं । उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं उन्हें देश विदेश की समस्त संस्थाओं द्वारा पुरस्कार एवं सम्मानित  भी किया जा चुका है ।

बढ़ती जनसंख्या विकास में बाधक है इसे रोकना जरुरी

विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष (11जुलाई )

बढ़ती जनसंख्या विकास में बाधक है इसे रोकना जरुरी है

लाल बिहारी लाल

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आज जनसंख्या रोकने के लिए सबको शिक्षा होनी चाहिये जिससे इसे कम करने में मदद मिलेगी शिक्षा के साथ-साथ जागरुकता की सख्त जरुरत है ताकि देश उनन्ति के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ सके । वर्ष 2021 में असम सरकार इस ओर सख्त पहल की है और उ.प्र. सरकार भी आज जनसंख्या स्थिरिकरण के लिए अनेक मसौदा जारी कर दी है। 

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सन 1987 में विश्व की जनसंख्या 5 अरब को पार गई तभी से सारी दुनिया में जनसंख्या रोकने के लिए जागरुकता की शुरुआत के क्रम में 1987 से हर वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाते आ रहे हैं। इसका मुख्य उदेश्य बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न खतरों के प्रति आमजन के बीच में जागरुकता फैलाना है ताकि जनसंख्या निय़ंत्रण में आसानी हो। 

     आज सारी दुनिया की 90% आबादी इसके 10% भाग में निवास करती है।विश्व की आबादी कही 11-50/वर्ग कि.मी. है तो कही 200 वर्ग कि.मी.है।जनसंख्या वृद्धि के कई कारण है जो जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करते हैं।उनमें भौगोलिक,आर्थिक एवं सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारक प्रमुख है।भोगोलिक कारकों में मुख्य रुप से मीठे एवं सुलभ जल की उलब्धता, समतल एवं सपाट भूआकृति, अनुकुल जलवायु ,फसल युक्त उपजाऊ मिट्टी आदी  प्रमुख है।

आर्थिक कारकों में खनिज तत्व की उपलब्धता के कारण औद्योगिकरण तथा इसके फलस्वरुप शहरीकरण क्योंकि आधुनिक युग में स्वास्थ्य ,शिक्षा,परिवहन,बिजली तथा पानी आदी की समुचित उपलब्धता के कारण औद्योगिक कल-कारखाने में काम करने के लिए कर्मचारियो की जरुरत को कारण यहा की आबादी सघन होते जा रही है। इसके अलावे भी सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश उतरदायी है। उक्त कारकों  के अलावे जनसंख्या वृद्दि दर भी आज काफी है।पृथ्वी पर जनसंख्या आज 700 करोड़ से भी ज्यादा है। इस आकार तक जनसंख्या को पहूँचने में शताब्दियां लगी है।आरंभिक कालों में विश्व की जनसंख्या धीरे-धीरे बढ़ी। यानी 1 अरब तक पहुँचने में 2,00,000 साल लगे वही 1 अरब से 7 अरब पहुँतने में मात्र 200 साल लगे। 

     विगत कुछ सौ बर्षों के दौरान ही जनसंख्या आश्चर्य दर से बढ़ी है। पहली शताब्दी में जनसंख्या 30 करोड़ से कम थी। 16वी.एवं 17वी शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के बाद तीब्र गति से जनसंख्या की वृद्दि हुई और सन 1750 तक 55 करोड़ हो गई। सन 1804 में 1 अरब,1927 में 2 अरब ,1960 में 3 अरब,1974 में 4 अरब तथा 1087 में 5 अरब हो गई और 7.78 अरब से ज्यादा हो गई है। । विगत 500वर्षों में प्रारंभिक एक करोड़ की जनसंख्या होने में 10 लाख से भी अधिक वर्ष लगे परन्तु 5 अरब से 6 अरब होने में 1987 से12 अक्टूबर 1999 तक मात्र 12 साल लगे। इसी तरह 31 अक्टूबर 2011 को 7 अरब हो गई। आज विश्व की जनसंख्या मार्च 2019 तक 7 अरब 53 करोड के आस पास थी। परन्तु 10 जुलाई 2022 को संध्या 4 बजे तक विश्व की जनसंख्या 7,97,65,99,776 थी।

   भारत आज 120 (139) करोड़ से अधिक आबादी के साथ चीन(1अरब 45करोड़ ) के बाद दूसरे नंबर पर है अगर इसी रफ्तार से भारत की जनसंख्या बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं जब भारत 2025 में चीन को पीछा छोड़कर आबादी के मामलों में सारी दुनिया में  नंबर वन हो जायेगा। चिंता की बात है कि जहां 1951 में हिंदूओं की प्रतिशत संख्या लगभग 85 थी जो 2011 में 80 प्रतिशत के आस पास रह गई जबकि 1951 में मुस्लिमों की आबादी लगभग 10 प्रतिशत थी तो 2011 में लगभग 15 प्रतिशत हो गई। जबकि भूमि के मामले में भारत विश्व का 2.5% है और आबादी लगभग 17-18 % है। इस जनसंख्या विस्फोट से समाजिक ढ़ाचा परिवहन,शिक्षा स्वास्थ्य, बिजली , पानी आदी की मात्रा सीमित है जो समस्या बनेगी। इससे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा और अनेक समस्याय़े खड़ी हो जायेगी। जिससे देश में सामाजिक ढाचा छिन्न-भिन्न(असहज) होने की संभावना बढ़ेगी। अतः आज जनसंख्या रोकने के लिए सबको शिक्षा होनी चाहिये जिससे इसे कम करने में मदद मिलेगी शिक्षा के साथ-साथ जागरुकता की सख्त जरुरत है ताकि देश उनन्ति के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ सके । वर्ष 2021 में असम सरकार इस ओर सख्त पहल की है और वर्ष 2021में उ.प्र. सरकार भी विश्व जनसंख्या दिवस पर जनसंख्या स्थिरिकरण के लिए ड्राफ्ट जारी कर दी  है जिस पर सुझाव एवं आपतियाँ आमंत्रित की गई है। बढ़ती हुई जनसंख्या विकास में बाधक हो रही है इसे रोकना जरुरी है।

लेखक –पर्यावरण प्रेमी औऱ साहित्य टी.वी के संपादक है।

रविवार, 26 जून 2022

काव्य संकलन मणि की किरण का हुआ लोकार्पण

 मणि की किरण का लोकार्पण संपन्न

                   लाल बिहारी लाल      






 नई दिल्ली  ।  दिल्ली मेट्रों के डी सी पी जितेंद्र मणि द्वारा रचित पुस्तक ”, मणि की किरन,” जो कि एक काव्य संग्रह है और उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीय किरण मणि त्रिपाठी को समर्पित है का अनावरण माननीय आयुक्त महोदय दिल्ली पुलिस श्री राकेश अस्थाना , श्री दीपक मिश्रा सेवानिवृत्त आईपीएस पूर्व एसडीजी सीआरपीएफ , श्री सुधांशु त्रिवेदी माननीय सांसद  ,श्री राम मोहन मिश्र  सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एवम पूर्व सचिव भारत सरकार, श्रीमती नुज़्हत हसन विशेष आयुक्त दिल्ली पुलिस एवं श्री  अमरेंद्र खटुआ  आई एफ एस पूर्व सचिव भारत सरकार के कर कमलों द्वारा एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर मे संपन्न हुआ   ,इस कार्यक्रम में अन्य गणमान्य अतिथियों  में श्री वीरेन्द्र सिंह चहल  विशेष आयुक्त दिल्ली पुलिस, श्री दीपेंद्र पाठक विशेष आयुक्त पुलिस, श्री मधुप तिवारी  विशेष आयुक्त दिल्ली पुलिस, श्री संजय सिंह विशेष आयुक्त दिल्ली, श्री संजय शुक्ला  आइएफएस सचिव इंडियन जू सोसाइटी, डॉ आलोक मिश्रा  ज्वाइंट सेक्रेटरी अखिल भारतीय विश्विद्यालय संघ, csc सी एस सी  दिल्ली मेट्रो , श्री शुवशेष चौधरी, ए डी सी पी रजनीश गुप्ता, डी सी पी रेलवे  श्री हरेंद्र कुमार सिंह  डी सी पी आई जी आई  तनु शर्मा, ब्रदर सुनिल शर्मा श्री आलोक यादव ज्योति मिश्रा राका विक्रम के पोरवाल रजनीश गर्ग अन्येष राय  सतीश तिवारी विवेक कुमार मिश्रा, संतोष मिश्रा ,रूपा सिंह आदित्य मणि प्रवीण बंसल, राहुल बंसल, प्रेम नाथ द्विवेदी  प्रसिद्ध शायर आदिल राशीद ,आचार्य शैलेश तिवारी  श्री अरूण सिन्हा ज्वाइंट सेक्रेटरी भारत सरकार सहित कई गणमान्य अतिथियों ने भाग लिया, सभी मंच पर बैठे अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित करके कार्यक्रम की शुरुआत की एवम पुस्तक का विमोचन किया , पुस्तक की समीक्षा श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेई पूर्व एडीजी ऑल इंडिया रेडियो, श्रीमती अलका सिंह एवम नरेश शांडिल्य जी ने किया मंच संचालन  डॉ ज्योति ओझा  जी ने किया और पुस्तक का प्रकाशन  हिंदी सहोदरी की मुख्य संयोजक श्री  जय कान्त मिश्रा  जी ने किया । 

                इस अवसर पर  हास्य कवि श्री शंभू शिखर ने अपने काव्य पाठ से लोगो को गुदगुदाया सभी ने पुलिस विभाग ने होते हुए भी जितेंद्र मणि के संवेदनशीलता  ,अपनी पत्नी को विषय बना कर लिखी कविताओं  एवम काव्य प्रतिभा की भूरि भूरि प्रशंसा की ,पुलिस आयुक्त दिल्ली महोदय ने कहा कि पत्नी के असमय छोड़ की चले जाने की बाद जितेंद्र मणि की कार्य कुशलता में कोई कमी नही आई है और ये पूरी तत्परता और कार्य कुशलता से पुलिस सेवा कर रहें है। इस पुस्तक के आमदनी का कैंसर पीड़ितों पर खर्च किया जायेगा। यह पुस्तक फ्लिप कार्ट पर भी उपलब्ध है।

शुक्रवार, 17 जून 2022

रामनाथ पांडेय शिखर सम्मान से डॉ. मयंक मुरारी और डॉ.जौहर शफियाबादी हुए सम्मानित

 रामनाथ पांडेय शिखर सम्मान    

डॉ. मयंक मुरारी और डॉ.जौहर शफियाबादी सम्मानित

 लाल बिहारी लाल   





 नई दिल्ली l भोजपुरी के प्रथम उपन्यासकार रामनाथ पांडेय की पुण्यतिथि पर 16 जून को पटना में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें डॉ.मयंक मुरारी और डॉ.जौहर शफियाबादी को प्रथम रामनाथ पांडेय शिखर सम्मान प्रदान किया गया। दोनों विद्वानों को स्मृति चिह्न, प्रशस्ति पत्र और शॉल से सम्मानित किया गया।

सारण भोजपुरिया समाज और जागृत प्रकाशन के तत्वावधान में मैत्री शांति भवन, अशोक राजपथ पर आयोजित इस कार्यक्रम में रामनाथ पांडेय की कालजयी रचना "महेन्दर मिसिर" का लोकार्पण भी हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता चंद्रकेतु नारायण सिंह ने किया। अन्य मंचासीन अतिथियों में डॉ.सुनील पाठक, पूनम आनंद, तैय्यब हुसैन पीड़ित, भगवती प्रसाद द्विवेदी थे। लोकार्पण के बाद रामनाथ पांडेय जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर उपस्थित विद्वतजनों ने प्रकाश डाला। व्याख्यान के बाद काव्य पाठ का भी आयोजन हुआ। इसमें डॉ. मीना पांडेय, दिवाकर उपाध्याय, मधुरानी लाल, सुजीत सिंह सौरभ, श्याम श्रवण, सुधांशु कुमार सिंह ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। अन्य उपस्थित अतिथियों में भोजपुरी साहित्य जगत से जुड़ी कई हस्तियां  शामिल थीं,  जिनमें शुभ नारायण सिंह शुभ, राजेंद्र गुप्त, प्रेमलता, यशवंत मिश्रा, प्रणव पराग, रवि प्रकाश सूरज आदि प्रमुख थे। धन्यवाद ज्ञापन रामनाथ पांडेय के ज्येष्ठ सुपुत्र बिमलेंदु भूषण पांडेय ने किया तथा मंच संचालन दिवाकर उपाध्याय ने किया।

8 जून से चल रहा आयोजन

हर वर्ष की तरह इस बार भी कार्यक्रमों का सिलसिला रामनाथ पांडेय की जयंती 8 जून से प्रारंभ हुआ। 8 जून को चंपारण में 100 से ज्यादा कलाकारों का सम्मान किया गया। इसके साथ ही सारण भोजपुरिया समाज के पेज से हर दिन लाइव कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इसमें एक दर्जन से ज्यादा विद्वानों ने भोजपुरी साहित्य व रामनाथ पांडेय की कृतियों पर अपने विचार व्यक्त कि

शनिवार, 4 जून 2022

तंबाकू छोड़ो जीवन से नाता जोड़ो

 तंबाकू छोड़ो जीवन से नाता जोड़ो

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तंबाकू के इतिहास की बात करे तो सन 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने  पहली बार  सैन साल्वाडोर द्वीप पर  तंबाकू की खोज की थी। और अपनी दूसरी यात्रा के दैरान  स्पेन में तंबाकू के पते लेकर आए। सन1558 में  तंबाकू के बीज पूरे यूरोप महाद्वीप में फैल गए और  उपनिवेशवादियों के  आक्रमण के साथ  धीरे –धीरे  यह सारी दुनिया में फैल गई ।
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लाल बिहारी लाल
 
 
सन 1988 से 31 मई को दुनिया भर में हर साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य तंबाकू सेवन के व्यापक प्रसार से नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों की ओर आम जन का ध्यान आकर्षित करना और इसके दुष्प्रभावो से जीवों को बचाना हैजो वर्तमान में दुनिया भर में हर साल 70 लाख से अधिक मौतों का कारण बनता हैजिनमें से 8,90,000 गैर-धूम्रपान करने वालों का परिणाम दूसरे नंबर पर हैं।  विश्व स्वास्थ्य  संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य देशों ने सबसे पहले  1987 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाने को सोंचा औऱ सनं 1988 से लगातार मनाते आ रहे है। पिछले  तीन दसक से  दुनिया भर में  इसके पक्ष औऱ विपक्ष दोनों तरफ के लोग खड़े मिले है। विश्व स्वास्थ्य  संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 7 अप्रैल 1988 को एक संकल्प पारित किया जिसके  तहत 24 घंटे दुनिया को तंबाकू पर रोक लगाने का आह्वाहन किया गया जिससे इसे छोड़ने वाले को प्रेरित किया जा सके इसी सोंच का परिणाम निकला कि 31 मई 1988 से हर साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाते आ रहे है।
      तंबाकू के इतिहास की बात करे तो सन 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने  पहली बार  सैन सेल्वाडोर द्वीप पर  तंबाकू की खोज की थी। और अपनी दूसरी यात्रा के दैरान  स्पेन में तंबाकू के पते लेकर आए। सन1558 में  तंबाकू के बीज पूरे यूरोप महाद्वीप में फैल गए और  उपनिवेशवादियों के  आक्रमण के साथ  धीरे –धीरे  यह सारी दुनिया में फैल गई ।
     वर्ष 2003 में विश्व स्वास्थ्य  संगठन (डब्ल्यूएचओ) के पहल पर तंबाकू निषेध के लिए एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर संधि हुआ। वर्ष 2008 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस की पूर्व संध्या पर विश्व स्वास्थ्य  संगठन (डब्ल्यूएचओ) की और से एक आह्वाहन  सारी दुनिया को की गई की तंबाकू के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाई जाये। वही इसे हर साल एक श्लोगन भी दिया जाने लगा बात करे 2017 का तो इस बर्ष का श्लोगन था- विकास के लिए खतरा , 2018 का  तंबाकू दिल तोड़ता है।  इस साल( 2022) का श्लोगन है- पर्यावरण के लिए खतररनाक है तंबाकू
      तंबाकू के सेवन से श्वसन तंत्र, हृदय तंत्र, पाचन तंत्र, तंत्रिका तंत्र,  आदि के नुकसान होने के खतरे बढ़ जाते है। तंबाकू के सेवन से 30 प्रतिशत. कैंसर के मरीजों की संख्या है जिसमें लंग्स और मुँह के कैंसर मुख्य है। विश्व स्वास्थ्य  संगठन (डब्ल्यूएचओ के अनुसार हर साल 60 लाख लोग मरते है धूम्रपान  जनित रगो से यानी प्रति 6 सेकेंड में एक की मौत होती है। दुनिया में  उच्च रक्त चाप के बाद तंबाकू विश्व का दूसरा सबसे बड़ा  हत्यारा है। तंबाकु की खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति 35 लाख हेक्टेयर प्रति वर्य़ नष्ट हो जाते है जिसका असर सीधे पर्यावरण पर पड़ता है। तंबाकू उद्योग से हर साल 84 मीट्रिक टन कार्बन डाई आँक्साइड उत्सर्जित होते है जो वारतावरण को दूषित करते है।
 भारत में राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम  की शुरुआत वर्ष 2007-08 में  21 राज्यों के 42 जिलो में पायलेट परियोजना के रूप में किया गया। सर्वप्रथम राजस्थान के जिलों जयपुर व झुंझुनू को सम्मिलित कर गतिविधियाँ प्रारम्भ की गयी। वर्ष 2015-16 में जयपुरझुन्झुनू के अतिरिक्त अजमेरटॉकचूरूउदयपुरराजसमन्दचित्तौडगढकोटाझालावाडभरतपुरसवाईमाधोपुरअलवरजैसलमेरपालीसिरोहीश्रीगंगानगर जिले (कुल 17 जिले) योजनान्तर्गत सम्मिलित किये गये । आज देश के कोने कोने में इस पर काम हो रहा है। इसका परिणाम भी सकारात्मक मिल रहा रहा है।
    आज जरुरी है कि ध्रूम्रपान को न कहा जाये क्योकि इसके परिणाम से कितना जीव और घऱ बर्वाद हो चुके है। स्वास्थ्य एं पर्यावर दोनों जरुरी है  इसलिए भारत को आज तंबाकू मुक्त बनाने की जरुरत है।

लेखक- साहित्य टी.वी के संपादक है
 
 

उपन्यास रेत समाधि को मिला 2022 का बुकर सम्मान

 उपन्यासकार एवं कथाकार गितांजलि श्री को मिला 2022 का बुकर सम्मान

 
 लाल बिहारी लाल


 
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इस साल का मैन बुकर सम्मान भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री का उपन्यास 'रेत समाधिके अंग्रेज़ी अनुवाद 'टॉम्ब ऑफ़ सैण्डके लिए दिया गया है जिसे डेजी राकवेल ने अंग्रैजी अनुवाद किया है। यह पहली बार है कि किसी भारतीय भाषा के अनुवाद को यह अवॉर्ड मिला है।
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नई दिल्ली। उपन्यासकार एवं कथाकार गितांजली श्री का जन्म 12 जून 1957 को उ. प्र. के मैनपुरी में हुआ था। इनके पिता अनिरुद्ध पांडेय सिविल सेवा में थेउनका स्थानांतरण हुआ तो जन्मस्थान उनसे छूट गया। अपनी मां 'श्री पांडेयके नाम को अपने नाम में जोड़ने वाली गीतांजलि श्री  उत्तर-प्रदेश के अलग-अलग शहरों में रही हैं।  लेखिका बताती हैं कि बचपन में अंग्रेज़ी किताबों के अभाव के कारण उनकी रुचि हिंदी की तरफ़ हुई और यहीं से शुरू हुई एक लेखिका की यात्रा। मुंशी प्रेमचंद की पोती से उनकी गहरी मित्रता ने भी इस यात्रा की ओर सहज मुड़ने में सहयोग दिया। दिल्ली आकर उन्होंने लेडी श्रीराम और जे.एन.यू.से आधुनिक भारतीय साहित्य की पढ़ाई की जबकि वह हिंदी साहित्य की तरफ़ झुकाव महसूस करती थीं। प्रेमचंद पर पीएचडी के लिए उन्होंने एक किताब तैयार की जिसे वह हिंदी में उनके प्रवेश की एक महत्वपूर्ण सीढ़ी मानती हैं। 
   उनकी पहली कहानी 'बेलपत्र' 1987 में देश के प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका हंस में छपी। 1991 में छपे कहानी-संग्रह 'अनुगूंजसे उन्होंने औपचारिक तौर पर हिंदी साहित्य में कदम रख दिया था।सन् 1994 में इनकी कहानी संग्रह अनुगुंज को यू.के. कथा सम्मान से सम्मानित किया गया।  उपन्यास 'माईसे उन्हें प्रसिद्धि मिलीइस किताब का अनुवाद सर्बियनकोरियन और उर्दू समेत कई भाषाओं में हुआ हैइसी किताब के अंग्रेज़ी अनुवाद को 'साहित्य अकादमीसम्मान 2000-01 में मिला। इसके अलावा श्री ने 'हमारा शहर उस बरसऔर 'ख़ाली जगहउपन्यास भी लिखे हैं जिनके अनुवाद फ़ेंच और जर्मन में हुए हैं। हाल ही में प्रकाशित 'रेत समाधि (2018) से चर्चा में है। इसी उपन्यास को  डेजी राकवेल ने टाँम्ब आँफ सैण्ड नाम से अंग्रैजी में अनुवाद किया है। जिसे वर्ष 2022 का मैन बुकर सम्मान दिया गया है। उपन्यास के अलावा उनके लिखे कई कथा-संग्रह भी हैं। इस उपलब्धि के लिए हमारी ओर से बहुत –बहुत बधाई।
 लेखक- साहित्य टी.वी. के संपादक है।
 
 

सोमवार, 7 मार्च 2022

नारी का सम्मान जग का कल्याण

 अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष :

  
 
नारी का  सम्मान जग  का  कल्याण
  - लाल बिहारी लाल





      हमारी भारतीय संस्कृति में सदैव ही नारी जाति का स्थान पूज्यनीय एवं वन्दनीय रहा हैनारी का रूप चाहे मां के रूप में होबहन के रुप में होबेटी के रुप में हो या फिर पत्नी के रूप में हो सभी रुपों में  नारी का सम्मान किया जाता है।  यह बात आदिकाल से ही हमारे पौराणिक गाथाओं में विद्यमान रही है  और आज भी जगह –जगह देवी के रुप में पूजी जाती हैं। नौ रात्रों में कन्या खिलाने की प्रथा आज भी विद्यमान है। हमें यह भी ज्ञात है कि नारी प्रेमस्नेहकरूणा एवं मातृत्व की प्रतिमूर्ति है। इसलिए नारी का ख्याल रखना जरुरी है। दूसरे  शब्दों   में कहे  तो  नारी  के सम्मान से ही   जग का कल्याण  संभव है।
महिलाओं की दशा  को  सुधारने  के लिए   सबसे  पहले अमरिकी  सोशलिस्ट  पार्टी के  आह्वान  पर 28  फरवरी  1909 के  महिला  दिवस नाया  गया। इसके  बाद फरवरी  के  अंतिम  रविवार  को  मनाया  गया। 1910  में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के  कोपेनहेगन सम्मेलन  में इसे अन्तर्राष्ट्रीय  स्तर  का  दर्जा  दिया  गया । इसका  मुख्य  उदेश्य महिलाओं   को  वोट  का अधिकार  दिलाना था। कलान्तर  में  महिलाओं  की जागरुकता  के  लिए बहुत  काम  हुआ और 8  मार्च 1921 से अन्तर्राष्ट्रीय महिला  दिवस मनाते  आ  रहे  है और इसका परिणाम भी  दिखने  लगा  है  कि महिलाये समाजके विभिन्न पक्षों को आत्मसात कर  सारी दुनिया में आगे बढ़ रही है और पुरुषओं के साथ कदम ताल कर रही है। वर्तमान में युक्रेन के युद्ध में भी महिलायें बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही है।
   भारत  की बात  करे  तो  यहां नारी की दीनहीन दशा देखकर कई समाज सुधारको ने प्रयत्न किया और आज सरकारी स्तर पर इन्हे समान दर्जा प्राप्त है। राजाराम मोहन राय के अथक प्रयास से सती प्रथा का अंत हुआ । फिर नारी की दशा सुधारने के लिए आचार्य विनोवा भावे ,स्वामी विवेकानंद ने भी काम किया। ईश्वर चंद विद्या सागर के प्रयास से विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 आया। नारी की स्थिति सुधारने के लिए- अनैतिक ब्यापार रोकथाम अधिनियम-1956,दहेज रोक अधिनियम-1961,पारिश्रमिक एक्ट 1976,मेडिकल टर्म्मेशन आँफ प्रिगनेंसी एक्ट 1987,लिंग परीक्षण तकनीक( नियंत्रक और गलत इस्तेमाल)एक्ट 1994, बाल विबाह रोकथाम एक्ट 2006,कार्य स्थलो पर महिलाओं का शोषण एक्ट 2013, 2019 में भी तीन तलाक रोकने के लिए पर्तमान सरकार ने तीन लताक बिल पास किया है जिसके तहत पुलिस बिना बारंट के गिरफ्तार कर सकती है। इसके आलावे महिलाओं के सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक स्तर सुधारने के लिए काफी प्रयास किये गये है। इसी का परिणाम है कि 2001 की जनगणना में जहा महिलाओं की संख्या प्रति 1000 पुरुषों  पर 933 थी जो 2011 की जनगणना में 943 हो गई  यानी  एक  दशक  में  प्रति 1000 पर 10  की वृद्धि हुई ।  भारत  में 13  फरवरी को राष्ट्रीय  महिला दिवस मनाने की घोषणा सरोजनी नायडू के जन्मदिवस  पर 2014 में की  गई ।
 आज विश्व की  लगभग आधी आबादी महिलाओं की हैलेकिन भारतीय समाज में महिलाओं को वह स्थान आज तक प्राप्त नहीं हो सका है जिसकी वह हकदार है। भारतीय समाज सदैव से ही पुरुष प्रधान समाज माना गया हैलेकिन 21 वीं सदी में अब स्थिति बदलने लगी है। स्त्रियों को पुरुष के समान दर्जा दिया जाने लगा है।आज भारतीय महिलाये प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर अपना योगदान दे रही है।चाहे बात शिक्षा की होबैंकिंग क्षेत्र की होस्वास्थ्य की हो,रक्षा की हो,  मनोरंजन की हो,रेल चलाने की हो या हवाई जहाज उड़ाने की आई.टी. क्षेत्र हो अथवा राजनैतिक क्षेत्र हो हर क्षेत्र में सक्रिय हैं।कई राज्यो ने तो स्थानीय निकाय चुनावों में 50 %  का आरक्षण  भी दिया  गया है।  इसके विपरीत हमारे देश में महिलाओं पर अत्याचार की बढ़ती घटनाओं ने भारतीय नारी की सुरक्षा पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। देश की राजधानी दिल्ली सहित कई प्रदेशों में नारी के साथ अत्याचार अभी भी जारी है।
   पितृसतात्मक सत्ता में नारी को सम्बल बनाने की जरुरत है  ताकि  इनकी सामाजिक,आर्थिक औऱ राजनैतिक  स्तर सशक्त हो सके। आज समस्त समाज एकजुट होकर ,   नारी सम्मान एवं उसकी सुरक्षा के सम्मान का संकल्प लेना चाहिय़े।  हम जानते हैं कि नारी के बिना सृष्टि सृजन की कल्पना अधूरी है। वंश चलाने की बात करने वालों लड़के को भी नारी ही जन्म देती है। इसके सहयोग के बिना  लड़का हो या लड़की कोई भी पैदा नही हो सकता है। जिस प्रकार कोई भी पक्षी एक पंख के सहारे उड़ नहीं सकताउसी प्रकार नारी के बिना पुरुष की कल्पना भी नहीं की जा सकती।  यदि हम नारी को भयमुक्त वातावरण देने   और आत्मसम्मान के साथ खड़ा करने में सहयोगी बन सकेतो यह हमारे औऱ समाज के लिए गर्व की बात होगी।