बुधवार, 16 जून 2021

पर्यावरण संरक्षण में जनभागिदारी जरुरी - लाल बिहारी लाल

 

पर्यावरण संरक्षण में जनभागिदारी जरुरी - लाल बिहारी लाल


जब इस श्रृष्टि का निर्माण हुआ तो इसे संचालित करने के लिए जीवों एवं निर्जीवों का एक सामंजस्य  स्थापित करने के लिए जीवों एवं निर्जीवोके बीच एक परस्पर संबंध का रुप प्रकृति ने दिया जो कलान्तर मे पर्यावरण कहलाया।जीवों के दैनिक जीवन को संचालित करने के लिए  उष्मा रुपी उर्जा की जरुरत होती है। और यह उर्जा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षरुप से धरती के गर्भ में छिपे खनिज लवण ,फसलों के उत्पादन से अन्न एवं फल-फूल से प्राप्त होती हैं लेकिन धीरे धारे आबादी बढ़ी तो इनकी मांग भी बढ़ी। आबादी तो गुणात्मक रुप से बढ़ी पर संसाधन प्राकृतिक रुप से ही बढ़े । इस बढ़ती हुई आबादी की मांग को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनो पर दबाब तेजी से बढ़ा फलस्वरुप प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तेजी से हुआ। जिससे पर्यावरण की नीव हिल गई  और इस प्रकृति द्वारा दिए सीमित संशाधनों के भण्डार के दोहन से मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।  

  सन् 1844 में औद्योगिक क्रांति के बाद पर्यावरण पर दवाव काफी बढ़ा जिससे बढ़ती हुई आबादी को बसाने ,यातायात के लिए परिवहन हेतु सड़कों का निर्माण से वनों की अंधाधुंध कटाई एवं कल कारखानों से निकले धुआं से वायु प्रदूषित होने एवं शहरो में जमीन को कंक्रीट में बदल देने के कारण पर्यावऱण का स्तर काफी दयनीय होने लगा ।इसे बचाने के लिए देश दुनिया में अलग-अलग प्रयास किये गये।

  आज से ठीक 291 साल पहले सन 1730 में राजस्थान के खेजड़ी गांव के लोगों ने खेजड़ी के वनों को बचाने के लिए सामुहिक रुप से 363 विश्नोई समाज के लोगों ने खेजड़ी के वन को बचाने के लिए बलिदानी दी थी। कलान्तर में दुनिया के अनेक स्थानों पर अलग-अलग प्रयास होते रहे। पर सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा एंव यू.एन.डी.पी. के संयुक्त प्रयास से जल,जमीन एवं पर्यावरण को बचाने तथा राजनैतिक एवं समामाजिक जागृति फैलाने के लिए पुरी दुनिया में पहली बार स्टाँकहोम में 5 जून से 16 जून तक एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसके बाद सन 1973 से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते आ रहे है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज में जागरुकता फैलाना है।क्योंकि बिना सामाजिक भागिदारी के पर्यावरण को संरक्षित नही किया जा सकता है।

      सन 1947 में भारत जब आजाद हुआ तो आजादी के समय अनेक समस्यायें थी इसलिए सरकार पर्यावरण पर कोई खास ध्यान केन्द्रित नहीं कर पायी। जिससे संविधान में इस बात की चर्चा नहीं हो सकी। पर 1948 में बड़े-बड़े उद्योगों को नियंत्रित करने के लिए फैक्ट्री नीतियाँ बनाई गई जो पर्यावरण का ही एक हिस्सा थी। सन 1972 में स्टाकहोम सम्मेलन के बाद भारत द्वारा 1976 में संविधान संशोधन कर संविधान में दो धाराय़े जोड़ी गई । पहली धारा 48ए तथा धारा 51ए(जी),धारा 48ए के तहत सरकार पर्यावरण संरक्षण से संबंधित जल,जमीन,वायुएवं वन्य जीव संरक्षण के लिए नीतियाँ बना सकती है वही धारा 51ए (जी) के तहत नगरिकों का भी दायित्व बनता है कि वे पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे। इसके बाद सरकार द्वारा जल स्त्रोतों को बचाने के लिए जल प्रदूषण निवारण अधिनियम 1974 तथा 1977,वायु को बचाने के लिए वायु प्रदूषण निवारण अधिनियम 1981 लाया गया। वन एंव वन्य जीव रक्षा के लिए वन्य जीव संरक्षण अधिनियम1972, 1986 एवं 1991 तथा वनो के संरक्षण के लिए वन संरक्षण अधिनियम 1980,ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए ध्वनि प्रदूषण निवारण अधिनियम 1987 लेकर आई । इन सभी को सामूहिक रुप सें मजबूत करने के लिए 1886 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लेकर आई। इसी वर्ष विज्ञान एवं प्रैद्योगिकी मंत्रालय से पर्यावरण एव कृषी मंत्रालय से वन को निकालकर एक अलग मंत्रालय-पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का गठन किया गया। ताकि देश में पर्यावरण एवं वनों के संरक्षण हेतु आवश्यक एवं प्रभावी कदम उठाया जा सके।

    सन 2002 में जैव विविधता संरक्षण अधिनियम लाया गया। जैव विविधता में भारत विश्व में 12वें, स्थान पर है। अकेले भारत में 45,000 पेड़-पौधे तथा 81,000 जानवरों की प्रजातियाँ पाई जाती है। जो विश्व की लगभग 7.1 %बनस्पतियाँ तथा 6.5% जानवरो की प्रजातियाँ मे से है। जैव विविधता संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार ने गैर सरकारी संगठनो वैज्ञानिकों , पर्यावरणविद्यों तथा आम जनता की भागिदारी से इसे बचाने के लिए उठाया गया सही कदम है क्योकि बिना जनभागिदारी के पर्यावरण को बचाया नहीं जा सकता है।

   राष्ट्रीय जल नीति 1 अप्रैल 2002 को लागू किया गया । राष्ट्रीय जल संससाधन परिषद  द्वारा पारित इस नीति के मुख्य उद्देश्य जल के संरक्षण पर बल देना है। इसके तहत नदियों का जल संरक्षण पर आम सहमति बनाना, जल बंटवारे को सुलझाना, जलसंसाधनों के विकास एवं प्रबंधन के साथ-साथ जन भागिदारी एवं जागरुकता पर बल देना ताकि जल को मानव के उपयोग के लिए बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जा सके।

   राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2004 के तहत संकट ग्रस्त पर्यावरण संसाधनों का संरक्षण करना, जीवों के समान अधिकारों की रक्षा करना,वर्तमानमें संससाधनो के उचित एवं भावी पीढ़ी के ध्यान में रखकर उपयोग करना तथा आर्थिक एवंसमाजिक नीतियाँ बनाते समय पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखने की वकालत करता है। वन अधिकार अधिनियम 2006 वन संबंधित अधिकारों का एक महत्वपूर्ण दास्तावेज है। यह 18 दिसंबर 2006 से लागू है। यह कानून जंगल में रह रहे लोगो के भूअधिकार तथा प्रकृति पर निर्भरता को लेकर है ,जो उन्हें संरक्षण प्रदान करता है।इससे जनजातियों को काफी फायदा होगा। उन्हें पुर्नस्थापना में मदद मिलेगी।

     उक्त अधिनियमों के तहत सबको संवैधानिक स्वच्छ पर्यावरण एवं सेहत को मान्यता दी गई है जिसकी पुष्टि समय समय पर सर्वोच्च न्यायालय भी करता है।सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कुछ अहम फैसले निम्नवत है-

1987 मे देहरादून के चूना खान को बंद करना ,

1987 में में श्री रामगैस रिसाव मामले के तहत संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सबको जीने का अधिकार के संदर्भ में पीडितों को मुआवजा दिलाने की ब्यवस्था करना।

1988 मे कानपुर मे गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 5000 से ज्यादा फैक्ट्रियों को बंद या स्थानान्तरित करना एवं उनमें पर्यावरण से संबंधित उपकरण लगवाना।

1992 मे दिल्ली बार्डर पर हरियाणा मे पत्थर पीसने पर रोक लगाना। 1992 में पर्यावरण पर  जागरुकता फैलाने के लिए सरकार को दिशा निर्देश देना जिसमें रेड़ियो,समाचार पत्र,टीवी के माध्यम से जागरुकता फैलाना एवं विश्वविद्यालयों में पर्यावरण प्रबंधन पर पाठ्यक्रम शुरु करना मुख्य रुप से शामिल है।1994 में दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए सरकार को दिशा निर्देश देना जिसके तहत 15 साल से पुरानी डीजल एव पेट्रोल के गाड़ियों के परिचालन पर रोक। 1997 में आगरा के ताजमहल के सुरक्षा के लिए जेनरेटर पर प्रतिबंध एवं 24 घंटे बिजली मुहैया कराने का आदेश देना तथा उसके आस पास हरित पट़टी विकसित करना।

2010 राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की स्थापना करना जो आज देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयासरत अग्रणी संस्था है।समय समय पर सरकार भी इसके अलावे पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठाती रहती है मसलन दिल्ली मे ओड और इवेन फार्मूला ,दिल्ली में सी.एन.जी बसों को चलाना,मैट्रो रेल पर जोड़ देना मुख्य है। लेकिन यह तभी संभव है जब जनता भी पर्यावरण संरक्षण में अपनी भागिदारी का रखे ख्याल और पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका निभाने के लिए आगे आये। मानव प्रकृतिक संसाधने का उपयोग करे न की दोहन ,तभी पर्यावरण संरक्षण के सही तरीके से कारगर बनाया जा सकता है और विश्व पर्यावरण दिवस की सार्थकता सिद्ध हो पायेगी।

 

लेखक-पर्यावरण प्रहरी तथा

लाल कला मंच,नई दिल्ली के सचिव है।

 

शनिवार, 5 जून 2021

प्लास्टिक छोड़े ,जीवन से नाता जोड़े, पर्यावरण बचायें

 

प्लास्टिक छोड़े जीवन से नाता जोड़े पर्यावरण बचायें- -  लाल  बिहारी लाल







नई दिल्ली ।  आज भागमभाग भरी  जिंदगी  में  मानव इस कदर उलझ  गया   है  कि  वो न अपने सेहत  पे औऱ  नाहीं प्रकृति  को बचाने  के प्रति ध्यान दे पाता हैं। इसके परिणामस्वरुप वातावरण  दूषित और  स्वंय  बिमार  रहने  लगा है।
                          
  यूं तो प्रकृति  को सबसे ज्यादा खतरा  प्रदूषण से है  क्योंकि  बढ़ती हुई आबादी  की मांग  को पूरा करने के लिए  प्राकृतिक  संसाधनों का दोहन अंधाधुंध हो  रहा  है। जिस कारण जलवायु दूषित हो  चुके है। प्रदूषण  को बढ़ने  या फैलने  के लिए कई कारक  उतरदायी है। उन्हीं कारकों में एक  कारक (प्रदूषक ) प्लास्टिक भी है। जी हां हम  बात कर रहे  है प्लास्टिक  की  जो आज निर्माण  के 120 साल के अंदर ही  समस्त जीवों के लिए  संकट  बनते 

जा  रहा  है। क्योँकि पर्यावरण में इनका विघटन होने में  200-500 साल  तक लग जाते है । प्लास्टिक के ढक्कण का विघटन होने में तो लगभग 1000 वर्ष लग जाते है । ये नन बायोडिग्रेडेबल  पदार्थ है जो वातावरण में आसानी से घूलते नहीं है।
                      
प्लास्टिक एवं पदार्थ का अलग-अलग गुण है। एक गुण के रुप में प्लास्टिक  उन पदार्थों की विशेषता का प्रतीक है जो अधिक  खींचने या तनने के बाद  स्थायी रुप से अपना रुप बदल देते है तो अपने मूल रुप में वापस  नहीं आते  है।  इसके निर्माण का भी एक रोचक कहानी है- एक दिन एक जर्मन केमिस्ट(वैज्ञानिक)  हान्स बोन  पेंचामीन  1898 ई में  डायजोमीथीन का प्रयोग कर रहे थे तभी गलती से प्ला्टिक  का निर्माण हो गया।  जिसके लगभग 35 साल बाद  एक अन्य केमिस्ट (वैज्ञानिक) एरिक फाउसेंट  ने औद्योगिक रुप से  इसका  इस्तेमाल प्रारंभ  किया।  सन 1960 ई में पूरी दुनिया में  प्लास्टिक के  50 लाख टन कचरा फैला था जो आज 609 करोड़ टन से ज्यादा हो गया है । अर्थात  आज  हरेक(हर एक) आदमी के हिस्सें में आधा किलो से ज्यादा प्लास्टिक  का कचरा आ गया है। दुनिया  में 1 करोड़  टन  प्लास्टिक  बैग का प्रतिदिन  उपयोग   करते  है। बात करे भारत की तो केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के  अनुसार  25,940 टन प्रतिदिन प्लास्टिक का उपयोग  हो  रहा है। वही 500 खरब प्लास्टिक बैग पूरी दुनिया में रोजाना प्रयोग किया जा  रहा है। प्लास्टिक बैग जहरीली केमिकल  जायलेन, इसीटोन बेंजोन से मिलकर बने होते है जो सेहत के लिए हानिकारक है।

          
 प्लास्टिक मनुष्य के रीढ की हड्डी की तरह  सामाजिक  हिस्सा बन चुकी है। ये जीवन के हर मोड़ पर सस्ता एंव सुगम होने के कारण  इसका प्रयोग लोग बहुतायत रुप से करते हैं। मानव इसका प्रयोग करने के बाद इसका निपटान भी सही से नहीं कर पाता है । यह पर्यावरण में नही घुलता है यानी कि यह नन बायोडिग्रेडेबल है। इसे  पर्यावरण में  घूलने में 200  से 500 साल तक औऱ बोतल के ढक्कण को तो लगभग 1000 वर्ष घुलने में  लग जाते है । इस बीच जमीन पर परे रहते है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट होने लगती है। नाली जाम हो जाते है जिससे सड़न फैलने लगती है औऱ लोगों के सेहत पर असर पड़ता है।  इधर उधऱ फेकने के कारण नदियों के रास्ते सागर तक पहुँच जाते है और जलीय जीव को नुकसान पहुंचाते हैं। डाल्फिन सहित पूरी दुनिया में लगभग 1 लाख से ज्यादा जलीय जीव समय से पहले काल के गाल में समा जाते है। इसके जलाने  से जहरीली  गैसें निकलती है   जो वातावरण(वायु) को दूषित करती है।  अर्थात  इसके कारण जल, थल एवं नभ  तीनों दूषित  हो रहे है। भारत में तेजी से प्लासटिक का उपयोग बढ़ रहा है। पूरी दुनिया में 28 किलोग्राम प्रति ब्यक्ति प्रतिवर्ष हो रहा है जबकि भारत में इसका उपयोग 11 किलोग्राम प्रति ब्यक्ति प्रतिवर्ष हो रहा है । इसी को ध्यान में रखकर दुनिया के 128 देश पहले ही प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिवंध लगा  चुके है। भारत भी इस कड़ी में सुमार हो गया है। जहां 2 अक्टूबर 2019  से सिंगल यूज प्लास्टिक बैन हो गया है।  इसकी घोषणा लाल किले से प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2019 को की थी हालाकि पिछले दो दशक से इस पर बातचीत चल रही थी  लेकिन साष्ट्रीय स्तर पर एक्शन में अब आया है ।   प्रधानमंत्री ने दुकानदार भाईयों से कहा कि आप बिल्कुल ही इसका उपयोग न करे और ग्राहकों को भी प्रोत्साहित करे और जनता से भी निवेदन किया है कि भारत को प्रदूषण रोकने में मदद कीजिये और सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग नहीं कीजिये।  क्योंकि प्लास्टिक को खाने से रोजाना देश के किसी न किसी कोने में गाये मर रही है। इसलिए जरुरी है कि अपने स्वास्थ्य औऱ आने वाली पीढ़ी को बेहतर पर्यावऱण देने के लिए प्लास्टिक से नाता छोड़े जीवन से नाता जोड़े। आम जन आगे आये तभी सरकार की यह पहल कामयाब  हो पायेगी। आने वाले दिनों में देखना है कि से कितना पर्यावरण सुधार होगा। 

लेखक- पर्यावरण पर्यावरण प्रेमी

  


मंगलवार, 1 जून 2021

साहित्य टी.वी.,साहित्यिक उड़ान का सुगम मंच-लाल बिहारी लाल

 

       साहित्य टी. वी. ने मनाया पहली बर्षगांठ

 

नीरज पांडे


नई दिल्ली। आज देश करोना महामारी से जूझ रहा है। इससे निपटने के लिए सबसे पहले लाँक डाउन का सहारा लिया गया। लोग अचानक घरों में कैद हो गये। ऐसे में साहित्यकारों के सकारात्मक सोंच को बढ़ावा देने और रचनात्मक लेखनी को देश दुनिया में पहुँचाने के उदेश्य से 18 मई 2020 को साहित्य टी.वी. की नींव रखी गई। इसकी शुरुआत 1 जून 2020 को इंदौर के ऊषा गुप्ता की शुभकामनाओं        सबका हित साहित्य में से शुरु हुई  औऱ आज देश के कोने-कोने से 100 से ज्यादा साहित्यकारों को मंच प्रदान की गई  और आज 500 वाँ विडियो असम की लेखिका शमां जैन सिगल की प्रसारित की गई।

  आज इसकी पहली वर्षगांठ पर देश को कोने-कोने से साहित्यकार बधाई दे रहे हैं। उनमें मुजफपरनगर से डा. कीर्तिवर्धन, कानपुर से ड़ा कमलेश शुक्ला कीर्ति, गोरखपुर से राजकुमार सिंह,प्रतापगढ़ से सुरेन्द्र कुमार शुक्ल,इंदौर से ऊषा गुप्ता, गाजियाबाद से संतोष भोजपुरिया, मुम्बई से विनय महाजन, नोयड़ा से अनिल कुमार, राजकुमार अग्रवाल,दिल्ली से नीरज पांडे, सोनू गुप्ता, मनोज सिंह, प्रदीप भट्ट, जय प्रकाश गौतम,सुरेश मिश्र अपराधी,सुभाष प्रसाद,जगदीश चंद्र शर्मा आदी शामिल है। इसके संपादक लाल बिहारी लाल का कहना है कि इस डिजीटल दौड़ में देश के साथ-साथ विदेश के साहित्यकारों को भी मंच सुलभ कराया जायेगा , अभी तक हिंदी भोजपुरी,गढवाली,कुमाउनी,संस्कृत आदी भाषाओं को शामिल किया गया है और आगे अन्य भाषाओं को भी विस्तार दिया जायेगा। इस मंच पर साहित्य के हर विद्धा का प्रसारण किया जाता है चाहे कविता,कहानी,गीत ,गजल, साहित्यिक खबरे, प्ररक प्रसंग ,हास्य ब्यंग्य आदि शामिल है। साहित्य टी.वी. यूं ही साहित्य के पटल पर अपना परचम देश दुनिया में लहराता रहे।