सोमवार, 27 जून 2016

खण्ड काव्य मन की बात का लोकार्पण एवं काव्य–गोष्ठी आयोजित

खण्ड काव्य मन की बात का लोकार्पण एवं काव्यगोष्ठी आयोजित

लाल बिहारी लाल

नई दिल्ली।  हिन्दी के यशस्वी कवि डॉसधीर सिंह की काव्यकृति मन की बातका लोकार्पण समारोह अनुराधा प्रकाशन के तत्त्वावधान में नयी दिल्ली गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता शिक्षाविद् एवं वरिष्ठ साहित्यकार, व्यावहारिक अध्यात्म मासिक पत्रिका के मुख्य संरक्षक प्रो.ग्रुप कैप्टन ओ.पी. शर्मा ने की । मुख्य अतिथि थीं विश्व प्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवयित्री डॉसरोजिनी प्रीतम ।
          सभी अतिथियों का सांस्कृतिक विधि से स्वागतसम्मान की औपचारिकता के पश्चात अनुराधाप्रकाशन के मुक्य संपादक मनमोहन शर्मा शरणने डॉसुधीर सिंह को बधाई देते हुए कहा कि मन की बात मन में तो सभी मानव करते हैं परन्तु साहित्यकारसमाजसेवी जब मन की बात का मंथन करता है तब वह समाज को एक अच्छी दिशा प्रदान करने हेतु श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करता है । ऐसा ही विशाल मंथन इस पुस्तक में डॉसुधीर सिंह ने प्रस्तुत किया है ।वरिष्ठ साहित्यकार (कविआलोचक) डॉराहुल ने अपने उद्बोधन में मन की बातकृति के रचयिता डॉसुधीर सिंह को हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि ग्यारह खण्डों में विरचित इस कृति को खण्ड काव्य के स्थान पर मुक्तक काव्यकहना अधिक अर्थपूर्ण होगा क्योंकि खण्ड काव्य के गुणलक्षण की अपेक्षा इसमें मुक्तक काव्य के गुणवैशिष्ट्य विशेष विद्यमान हैं ।
          ‘मन की बातके कुछ पदों का विश्लेषण करते हुए डॉ. राहुल ने आगे कहा कि, मन बहुत चंचल होता है, अतः बहुत बलवान है । डॉ. शंकराचार्य के शब्दों में, ‘जिसने मन को जीत लिया उसने जगत को जीत लिया । डॉसधीर सिंह के कवि मन के तमाम भावों और मनोभावों को मनोवैज्ञानिक ढंग से इस खूबी से शब्दबद्ध किया है कि जैसे सन्तभक्त, अनेक कवियों की रचनाओं में भावबिम्ब व्यंजित होते हैं उनकी भावनायें यहाँ भी मिलती हैं परन्तु इस कवि के भावों और अभिव्यक्तियों में उसकी मौलिकता है जो उन्हें अन्यों से अलग करती है । प्रेम, त्याग, परोपकार को अपनाते हुए अहंकार, छलप्रपंच व पूर्वाग्रहइर्ष्या, द्वेष जैसी कुमनोवृत्तियों से परे रहकर सार्थक जीवन जीने का संदेश इस कृति में है- क्योंकि जीवन का सबसे बड़ा आनन्द प्रेम है । प्रेम आत्मत्याग है, बलिदान है, प्रेम ही दुःख को सुख में बदलता है । जीवन में सच्चा प्रेम सेवा से ही प्रकट होता है । कवि ने भी कहा है -करुणा, दया, प्रेम जीवन में है ईश्वरीय वरदान ।’ (पृ– 89) ऐसे अनेक सूत्रात्मक कथन कृति के पदों में - प्रवाहमयी शैली में शिल्पबद्ध है ।
          डॉसरोजिनी प्रीतम ने अपने संक्षेप वक्तव्य में जहाँ कृतिकार को उसकी पहली और अच्छी कृति को सराहा वहाँ रचनाओं की सम्प्रेषणीयता और दूरगामीप्रभाववत्ता के प्रति इंगित किया । उन्होंने कहा कि ऐसी सफल रचनाएं आज के परिवेश में क्रमशः अधिक नहीं मिलती जहाँ रचना के अर्थअभिप्राय से अलग हटकर व्यावसायिक दृष्टि से रची जा रही है । अच्छी और असरदार रचनाएं ही समाज में जनजुबान पर बनी रह जाती हैं । निश्चय ही यह कृति समकालीन राजनीतिक माहौल में सामाजिक व्यवस्था को दृष्टिदिशा देने में अपनी अहम भूमिका निभाएगी ।
          अनुराधा प्रकाशन की संरक्षक एवं मानवता पुस्तक की सम्पादक श्रीमती कविता मल्होत्रा ने अपने सधे अन्दाज में कृति के मानवीय पक्षों को बड़ी बारीकी से उद्घाटित किया और कहा कि यह कृति आज के जनजीवन जगत में जिजीविषा की शक्ति देती हुई मानवीय महान मूल्यों को पुनर्स्थापित की राह सुझाती है ।
          सुप्रसिद्ध समाजसेवी श्री धर्मेन्द्र कुमार ने राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति अपना गहरा लगाव आत्म प्रेम प्रकट करते हुए कहा कि मन की बातमें किसानों, मजदूरों, मजलूमों, उपेक्षितों, शोषितोंपीड़ितों की दर्दभावना और व्यंजना है । यदि इसे प्रेमचन्द के महान उपन्यास गोदानकी कथावस्तु से जोड़कर देखें तो वही स्थितियों और उनके प्रति जनवाणी की तलफलाहट बारबार मुखरित हुयी है । ये कवि के लिए भोगे, देखे, सुने की यथार्थ अभिव्यक्तियाँ है ।
          अपने अध्यक्षीय अभिभाषण में प्रो. ग्रुप कैप्टन ओ,पी, शर्मा ने इस कृति को वर्तमान जीवन के लिए जीने का सन्देश बताया । शर्मा जी ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में कहा कि कविताओं की भाषा में बड़ी सरलतासुबोध है । कहीं बनावट या बुनावट नहीं है । एक नये शिल्पसंधान की सार्थक यह रचना पुनः-पुनः पठनीय एवं संग्रहनीय है ।
          समारोह के द्वितीय सत्र में दिल्ली, हरियाणा के अलावा अन्य प्रान्तों से पधारे चर्चित कवियों/कवयित्रियों शुभदा वाजपेयी, नीतू सिंह राय, नरेश मलिक, शिव प्रभाकर ओझा, नरपाल सिंह, वसुधा कनुप्रिया, ए.एस. खान, सरोज शर्मा, पुनीत गुप्ता, पूजा प्रियदर्शनी, हीरेन्द्र चैधारी आदि ने सरस काव्य पाठ कर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया।अंत में लाल बिहारी लाल के मन की वात पर दोहा से कार्यक्रम का समापन हुआ।
          धन्यवाद ज्ञापन में सभी का आभार व्यक्त करते हुए विशेष रूप से वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप राजपूत, लाल बिहारी लाल जी, अगस्ता वेलियथ जी को मंच पर बुलाकर सम्पानित किया और बताया कि मन की बातपुस्तक की ई-बुक लाइव हो चुकी है जिसे आप देशविदेश में कहीं भी बैठे पढ़ सकते हैं । कार्यक्रम का संयुक्त सफल संचालन पहले सत्र का प्रियंका और कवि गोष्ठी का नीलू नीलपूरीने किया।    

       सचिव-लाल कला मंच, नई दिल्ली
   फोन9868163073 या 7042663073








शुक्रवार, 17 जून 2016

एक मुकम्मल शख़्सियत-राहुल गांधी : फ़िरदौस ख़ान

राहुल गांधी जी की सालगिरह 19 जून पर विशेष
भारतीय राजनीति का सितारा- राहुल गांधी
-फ़िरदौस ख़ान 
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी एक ऐसी शख़्सियत के मालिक हैं, जिनसे कोई भी मुतासिर हुए बिना नहीं रह सकता. उनके कट्टर विरोधी भी कहते हैं कि राहुल का विरोध करना उनकी पार्टी की नीति का एक अहम हिस्सा है, लेकिन ज़ाती तौर पर वे राहुल गांधी को बहुत पसंद करते हैं. वे ख़ुशमिज़ाज, ईमानदार, मेहनती और सकारात्मक सोच वाले हैं.।राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 को दिल्ली में हुआ. वे देश के मशहूर गांधी-नेहरू परिवार से हैं. उनकी मां श्रीमती सोनिया गांधी हैं, जो अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं. उनके पिता स्वर्गीय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. राहुल गांधी कांग्रेस में उपाध्यक्ष हैं और लोकसभा में उत्तर प्रदेश में स्थित अमेठी चुनाव क्षेत्र की नुमाइंदगी करते हैं. राहुल गांधी को साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली शानदार जीत का श्रेय दिया गया था. वे सरकार में कोई किरदार निभाने की बजाय पार्टी संगठन में काम करना पसंद करते हैं, इसलिए उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री का ओहदा लेने से साफ़ इंकार कर दिया था.।राहुल गांधी की शुरुआती तालीम दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में हुई. उन्होंने प्रसिद्ध दून विद्यालय में भी कुछ वक़्त तक पढ़ाई की, जहां उनके पिता ने भी पढ़ाई की थी. सुरक्षा कारणों की वजह से कुछ अरसे तक उन्हें घर पर ही पढ़ाई-लिखाई करनी पड़ी. साल 1989 में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज में दाख़िला लिया. उनका यह दाख़िला पिस्टल शूटिंग में उनके हुनर की बदौलत स्पोर्ट्स कोटे से हुआ. उन्होंने इतिहास ऑनर्स में नाम लिखवाया. वे सुरक्षाकर्मियों के साथ कॉलेज आते थे. तक़रीबन सवा साल बाद 1990  में उन्होंने कॊलेज छोड़ दिया. उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रोलिंस कॉलेज फ़्लोरिडा से साल 1994 में अपनी कला स्नातक की उपाधि हासिल की. इसके बाद उन्होंने साल 1995 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज से  डेवलपमेंट स्टडीज़ में एम.फ़िल. की उपाधि हासिल की.।राहुल गांधी को घूमने-फिरने और खेलकूद का बचपन से ही शौक़ रहा है. उन्होंने तैराकी, साईलिंग और स्कूबा-डायविंग की और स्वैश खेला. उन्होंने बॊक्सिंग सीखी और पैराग्लाइडिंग का भी प्रशिक्षण लिया. उनके बहुत से शौक़ उनके पिता राजीव गांधी जैसे ही हैं. अपने पिता के तरह उन्होंने दिल्ली के नज़दीक हरियाणा स्थित अरावली की पहाड़ियों पर एक शूटिंग रेंज में निशानेबाज़ी सीखी. उन्हें भी आसमान में उड़ना उतना ही पसंद है, जितना उनके पिता को पसंद था. उन्होंने भी हवाई जहाज़ उड़ाना सीखा. वे अपनी सेहत का भी काफ़ी ख़्याल रखते हैं. कितनी ही मसरूफ़ियत क्यों न हो, वे कसरत के लिए वक़्त निकाल ही लेते हैं. वे रोज़ दस किलोमीटर तक जॉगिंग करते हैं।स्नातक की पढ़ाई करने के बाद वे लंदन चले गए, जहां उन्होंने प्रबंधन गुरु माइकल पोर्टर की प्रबंधन परामर्श कंपनी मॉनीटर ग्रुप के साथ तीन साल तक काम किया. हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफ़ेसर माइकल यूजीन पोर्टर को ब्रैंड स्ट्रैटजी का विद्वान माना जाता है. सुरक्षा कारणों की वजह से राहुल गांधी ने रॉल विंसी के नाम से काम किया. उनके सहयोगी नहीं जानते थे कि वे राजीव गांधी के बेटे और इंदिरा गांधी के पौत्र के साथ काम कर रहे हैं.  राहुल गांधी हमेशा सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहे हैं, इसलिए उन्हें वह ज़िन्दगी नहीं मिल पाई, जिसे कोई आम इंसान जीता है. वे अपनी ज़िन्दगी जीना चाहते थे, एक आम इंसान की ज़िन्दगी. राहुल गांधी ने एक बार कहा था, "अमेरिका में पढ़ाई के बाद मैंने जोखिम उठाया और अपने सुरक्षा गार्डो से निजात पा ली, ताकि इंग्लैंड में आम ज़िन्दगी जी सकूं." 
विदेश में रहते राहुल गांधी को दस साल हो गए थे. वे स्वदेश लौटे और फिर साल 2002 के आख़िर में उन्होंने देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई में एक इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी आउटसोर्सिग फ़र्म, बेकॉप्स सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाई. रजिस्ट्रार ऑफ़ कंपनीज़ में दर्ज आवेदन के मुताबिक़ इस कंपनी का मक़सद घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को सलाह और सहायता मुहैया करना, सूचना प्रौद्योगिकी में परामर्शदाता और सलाहकार की भूमिका निभाना और वेब सॉल्यूशन देना था. साल 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग को दिए हल्फ़नामे के मुताबिक़ बेकॉप्स सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड में राहुल गांधी की हिस्सेदारी 83 फ़ीसद थी. उनकी पढ़ाई की तरह उनके कारोबार में भी काफ़ी दिक़्क़तें आईं. सियासत की वजह से वे अपने कारोबार पर ख़ास तवज्जो नहीं दे पाए।राहुल गांधी की सियासी ज़िन्दगी की शुरुआत भी अचानक ही हुई. वे साल 2003 में कांग्रेस की बैठकों और सार्वजनिक समारोहों में नज़र आए. एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट श्रृंखला देखने के लिए एक सद्भावना यात्रा पर वह अपनी बहन प्रियंका गांधी के साथ पाकिस्तान भी गए. इसके बाद जनवरी 2004 में उन्होंने अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र अमेठी का दौरा किया, तो उनके सियासत में आने की चर्चा शुरू हो गई. इस बारे में पूछने पर उन्होंने सिर्फ़ इतना कहकर कोई भी प्रतिक्रिया देने से साफ़ इंकार कर दिया था, "मैं राजनीति के ख़िलाफ़ नहीं हूं. मैंने यह तय नहीं किया है कि मैं राजनीति में कब प्रवेश करूंगा और वास्तव में, करूंगा भी या नहीं."
फिर मार्च 2004 में लोकसभा चुनाव का ऐलान हुआ, तो राहुल गांधी ने सियासत में आने का ऐलान कर दिया. उन्होंने अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा. इससे पहले उनके चाचा संजय गांधी ने भी इसी क्षेत्र का नेतृत्व किया था. उस वक़्त उनकी मां सोनिया गांधी यहां से सांसद थीं. तब मीडिया के साथ अपने पहले साक्षात्कार में राहुल गांधी ने देश को जोड़ने वाले शख़्स के तौर पर ख़ुद को पेश किया. उन्होंने कहा था कि वे जातीय और धार्मिक तनाव को कम करने की कोशिश करेंगे. इलाक़े की अवाम ने राहुल गांधी को भरपूर समर्थन दिया. उन्होंने अपने नज़दीकी प्रतिद्वंदी को एक लाख वोटों से हराकर शानदार जीत हासिल की. इस दौरान उन्होंने सरकार या पार्टी में कोई ओहदा नहीं लिया और अपना सारा ध्यान मुख्य निर्वाचन क्षेत्र के मुद्दों और उत्तर प्रदेश की राजनीति पर ही केंद्रित किया। फिर जनवरी 2006 में आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुए कांग्रेस के एक सम्मेलन में पार्टी के हज़ारों सदस्यों ने राहुल गांधी से पार्टी में और महत्वपूर्ण नेतृत्व की भूमिका निभाने की ग़ुज़ारिश की. इस पर राहुल गांधी ने कहा, "मैं इसकी सराहना करता हूं और मैं आपके जज़्बात और समर्थन के लिए शुक्रगुज़ार हूं. .मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि मैं आपको मायूस नहीं करूंगा, लेकिन अभी धैर्य रखें." यह कहकर उन्होंने नेतृत्व वाली कोई भी बड़ी भूमिका निभाने से मना कर दिया. राहुल गांधी को 24 सितंबर 2007 में पार्टी सचिवालय के एक फेरबदल में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का महासचिव नियुक्त किया गया था. उन्हें युवा कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ की ज़िम्मेदारी भी सौंपी गई.  साल 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने नज़दीकी प्रतिद्वंद्वी को तीन लाख तैंतीस हज़ार से शिकस्त देकर जीत दर्ज की. इस चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 21 जीतीं. इस तरह राहुल गांधी ने प्रदेश में कांग्रेस को ज़िन्दा करने का काम किया और उन्हें इसका श्रेय दिया गया. उन्होंने डेढ़ महीने में देश भर में 125 रैलियों को संबोधित किया।राहुल गांधी को 19  जनवरी 2013 में कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया. क़ाबिले-ग़ौर है कि इससे पहले कांग्रेस में उपाध्यक्ष का पद नहीं होता था,लेकिन पार्टी में उनका महत्व बढ़ाने और उन्हें सोनिया गांधी का सबसे ख़ास सहयोगी बनाने के लिए पार्टी ने उपाध्यक्ष के पद का सृजन किया।     राहुल गांधी अपनी जनसभाओं में जिस तरह सांप्रदायिकता, जातिवाद, भ्रष्टाचार और अपराध को लेकर भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, समाजवादी पार्टी व अन्य सियासी दलों को निशाना बनाते हैं, उससे सभी दलों के होश उड़ जाते हैं. वे उन पर सधे राजनीतिक अंदाज़ में हमले करते हैं. एक संजीदा वक्ता की तरह तार्किक ढंग से वे सियासी दलों को चुन-चुन कर व्यंग्यात्मक लहजे में जवाब देते हैं. उनके इसी अंदाज़ से दलों में बौखलाहट पैदा हो जाती है. वे समझ नहीं पाते कि राहुल के ‘आम आदमी’ का कौन सा तोड़ निकालें।राहुल गांधी भाजपा के झूठे वादों और लोकपाल पर उसके चरित्र की जमकर बखिया उधेड़ते हैं. वे भाजपा द्वारा भ्रष्टाचारी नेताओं से हाथ मिलाने पर लोगों से सवाल करते हैं, तो उन्हें भीड़ से खुलकर जवाब भी मिलते हैं. उन्हीं जवाबों को आगे बढ़ाते हुए मंच से राहुल गांधी लोगों को बताते हैं कि ग़रीबों का मसीहा बनने वाले नेता कहते हैं कि राहुल गांधी पागल हो गया है, और इसके बाद वह आक्रामक हो जाते हैं. अपनी आस्तीनें चढ़ाकर हमलावर अंदाज़ में कहते हैं- ‘‘हां, मैं ग़रीबों का दुख-दर्द देखकर, प्रदेश की दुर्दशा देखकर पागल हो गया हूं. कोई कहता है कि राहुल गांधी अभी बच्चा है, वह क्या जाने राजनीति क्या होती है. तो मेरा कहना है कि हां, मुझे उनकी तरह राजनीति करनी नहीं आती. मैं सच्चाई और साफ़ नीयत वाली राजनीति करना चाहता हूं. मुझे उनकी राजनीति सीखने का शौक़ भी नहीं है. मायावती कहती हैं राहुल नौटंकीबाज़ है. तो मेरा कहना है कि अगर ग़रीबों का हाल जानना, उनके दुख-दर्द को समझना, नाटक है तो राहुल गांधी यह नाटक ताउम्र करता रहेगा."राहुल गांधी प्रदेश को बदहाली से निकालने के लिए युवाओं से साथ के लिए हाथ बढ़ाते हैं. इस दौरान राहुल गांधी यह बताना नहीं भूलते कि वे यहां चुनाव जीतने नहीं, प्रदेश को बदलने आए हैं. यह उनकी इस साफ़गोई का सियासी दलों के पास कोई जवाब नहीं होता. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राहुल गांधी की बातों में दम है।यह हक़ीक़त है कि वे हवाई नेताओं की तरह आसमान में नहीं उड़ते और न ही किसी पंचतारा सेलिब्रिटी की तरह रथ पर चढ़कर ज़िलों का दौरा करते हैं. उन्होंने खाटी देसी अंदाज़ में गांवों में रात रात बिताई. पगडंडियों पर कीचड़ की परवाह किए बिना चले और आम आदमी से बेलाग संवाद स्थापित करने की कोशिश की. आम आदमी को नज़दीक से जानने-समझने और अपना हाथ उसके हाथ में देने की पहल की।राहुल गांधी एक परिपक्व राजनेता हैं. इसके बावजूद उन्हें अमूल बेबी कहना उनके ख़िलाफ़ एक साज़िश का हिस्सा ही कहा जा सकता है. भूमि अधिग्रहण मामले को ही लीजिए. राहुल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर जिस तरह पदयात्रा की, वह कोई परिपक्व राजनेता ही कर सकता है. हिंदुस्तान की सियासत में ऐसे बहुत कम नेता रहे हैं, जो सीधे जनता के बीच जाकर उनसे संवाद करते हैं. नब्बे की दहाई में बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम ने गांव-गांव जाकर पार्टी को मज़बूत करने का काम किया था, जिसका फल बसपा को सत्ता के रूप में मिला. चौधरी देवीलाल ने भी इसी तरह हरियाणा में आम जनता के बीच जाकर अपनी एक अलग पहचान बनाई थी. दक्षिण भारत में भी कई राजनेताओं ने पद यात्रा के ज़रिये जनता में अपनी पैठ बनाई और सत्ता हासिल की।कुल मिलाकर राहुल गांधी ऐसे क़द्दावर नेताओं की फ़ेहरिस्त में शुमार हो चुके हैं, जिनके तूफ़ान से सियासी दलों के  हौसले  पस्त हो जाते हैं. हालत यह हो गई है कि कोई सियासी दल दाग़ी को लेता है, तो कोई दग़ाबाज़ी को सहारा बना लेता है. जब कोई चारा नहीं दिखता, तो कुछ सियासी दल राहुल पर व्यक्तिगत प्रहार करने में जुट जाते हैं.  मगर इससे राहुल गांधी को कोई नुक़सान नहीं होता, क्योंकि राजनीति की विरासत को संभालने वाला यह युवा नेता अब युवाओं, और अन्य वर्गों के साथ-साथ बुजुर्गों का भी चहेता बन चुका है. राहुल गांधी की जनसभाओं में दूर-दूर से आए बुज़ुर्ग यही कहते हैं कि लड़का ठीक ही तो कह रहा है, यही कुछ करेगा. महिलाओं में तो राहुल गांधी को लेकर काफ़ी क्रेज है. यह बात तो विरोधी दलों के नेता भी बेहिचक क़ुबूल  करते हैं. वे तो मज़ाक़ के लहजे में यहां तक कहते हैं कि अगर महिलाओं को किसी एक नेता को वोट देने को कहा जाए, तो सभी राहुल गांधी को ही देकर आएंगी. राहुल युवाओं ही नहीं, बल्कि बच्चों से भी घुलमिल जाते हैं. कभी किसी मदरसे में जाकर बच्चों से बात करते हैं, तो कभी किसी मैदान में खेल रहे बच्चों के साथ बातचीत शुरू कर देते हैं. यहां तक कि गांव-देहात में मिट्टी में खेल रहे बच्चों तक को गोद में उठाकर उसके साथ बच्चे बन जाते हैं. बच्चे उन्हें बहुत अच्छे लगते हैं. उन्हें अपनी भांजी मिराया और भांजे रेहान के साथ वक़्त बिताना भी बहुत अच्छा लगता है. उनके अच्छे बर्ताव की वजह से ही बुज़ुर्ग उन्हें स्नेह करते हैं, उनके सर पर शफ़क़त का हाथ रखते हैं, उन्हें दुआएं देते हैं.  वे युवाओं के चहेते हैं. राहुल गांधी अपने विरोधियों का नाम भी सम्मान के साथ लेते हैं, उनके नाम के साथ जी लगाते हैं.  सच है कि संस्कार विरासत में मिलते हैं, संस्कार घर से मिला करते हैं. अपने से बड़ों के लिए उनके दिल में सम्मान है, तो बच्चों के लिए प्यार-दुलार है.।जब भ्रष्टाचार और महंगाई के मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार का चौतरफ़ा विरोध हो रहा था, ऐसे वक़्त में राहुल गांधी गांव-गांव जाकर जनमानस से एक भावनात्मक रिश्ता क़ायम कर रहे थे. वे लोगों से मिलने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते. वे उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोयडा के नज़दीकी गांव भट्टा-पारसौल गए. उन्होंने आसपास के गांवों का भी दौरा कर ग्रामीणों से बात की, उनकी समस्याएं सुनीं और उनके समाधान का आश्वासन भी दिया- इससे पहले भी वे सुबह मोटरसाइकिल से भट्टा-पारसौल गांव जा चुके हैं. उस वक़्त उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया था. इस बार भी वह गुपचुप तरीक़े से ही गांव गए थे. न तो प्रशासन को इसकी ख़बर थी और न ही मीडिया को इसकी भनक लगने दी गई. हालांकि उनके दौरे के बाद प्रशासन सक्रिय हो गया था. इसके बाद भी वे गांव लखीमपुर में पीड़ित परिवार के घर गए और उन्हें इंसाफ़ दिलाने का वादा किया. और चौकस प्रशासन को भनक तक नहीं लगी. ऐसे हैं राहुल गांधी।भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर राहुल गांधी द्वारा निकाली गई पदयात्रा से सियासी हलक़ों में चाहे जो प्रतिक्रिया हुई हो, लेकिन यह हक़ीक़त है कि राहुल गांधी ने ग्रेटर नोएडा के ग्रामीणों के साथ जो वक़्त बिताया, उसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे. इन लोगों के लिए यह किसी सौग़ात से कम नहीं था कि उन्हें कांग्रेस के युवराज के साथ वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिला. अपनी पदयात्रा के दौरान पसीने से बेहाल राहुल ने शाम होते ही गांव बांगर के किसान विजय पाल की खुली छत पर स्नान किया. फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद उन्होंने घर पर बनी रोटी, दाल और सब्ज़ी खाई. ग्रामीणों ने उन्हें पूड़ी-सब्ज़ी की पेशकश की, लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया. गांव में बिजली की क़िल्लत रहती है, इसलिए ग्रामीणों ने जेनरेटर का इंतज़ाम किया, लेकिन राहुल ने पंखा भी बंद करवा दिया. वे एक आम आदमी की तरह ही बांस और बांदों की चारपाई पर सोये. यह कोई पहला मौक़ा नहीं था जब राहुल गांधी इस तरह एक आम आदमी की ज़िंदगी गुज़ार रहे थे. इससे पहले भी वे रोड शो कर चुके थे और उन्हें इस तरह के माहौल में रहने की आदत है. कभी वे किसी दलित के घर भोजन करते हैं, तो कभी किसी मज़दूर के  साथ ख़ुद ही परात उठाकर मिट्टी ढोने लगते हैं. राहुल गांधी के आम लोगों से मिलने-जुलने के इस जज़्बे ने उन्हें लोकप्रिय बनाया. राहुल जहां भी जाते हैं, उन्हें देखने के लिए, उनसे मिलने के लिए लोगों का हुजूम इकट्ठा हो जाता है. हालत यह है कि लोगों से मिलने के लिए वह अपना सुरक्षा घेरा तक तोड़ देते हैं।राहुल गांधी समझ चुके हैं कि जब तक वे आम आदमी की बात नहीं करेंगे, तब तक वे सियासत में आगे नहीं ब़ढ पाएंगे. इसके लिए उन्होंने वह रास्ता अख़्तियार किया, जो बहुत कम लोग चुनते हैं. वे भाजपा की तरह एसी कल्चर की राजनीति नहीं करना चाहते. राहुल गांधी का कहना है कि उन्होंने किसानों की असल हालत को जानने के लिए पदयात्रा शुरू की थी, क्योंकि दिल्ली और लखनऊ के एसी कमरों में बैठकर किसानों की हालत पर सिर्फ़ तरस खाया जा सकता है, उनकी समस्याओं को न तो जाना जा सकता है और न ही उन्हें हल किया जा सकता है।संसद में भी राहुल गांधी बेहद आक्रामक अंदाज़ में नज़र आते हैं. कालेधन पर तंज़ कसते हुए राहुल गांधी ने कहा था,  "काला धन सफ़ेद कर रहे हैं वित्तमंत्री. पहले कालाधन वापस लाने का वादा किया, अब उसे ही सफ़ेद करने का, यह उनकी फ़ेयर एंड लवली स्कीम है, काले पैसे को आप गोरा कर सकते हो. फ़ेयर एंड लवली योजना के तहत किसी को जेल नहीं होगी, जेटली जी के पास जाइये, आपका पैसा सफ़ेद हो जाएगा."  महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का ज़िक्र करते हुए राहुल गांधी ने कहा, "महात्मा गांधी हमारे हैं, सावरकर आपके हैं. आपने सावरकर को उठाकर फेंक दिया क्या? फेंक दिया, तो बहुत अच्छा किया." राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वह रोज़गार सृजन के लिए काले रंग का एक बड़ा सा बब्बर शेर लिए घूम रहे हैं, लेकिन उसके बावजूद युवाओं को नौकरी नहीं दे पा रहे हैं. उन्होंने कहा, "आपने बब्बर शेर दिया तो दिया, लेकिन रोज़गार कितने दिए, यह किसी को मालूम नहीं. किसी के पास कोई आंकड़ा नहीं है." संसद में जब राहुल बोल रहे थे, तो भाजपा सांसद हंगामा करने लगे. इस पर राहुल गांधी ने कहा, मैं आरएसएस का नहीं हूं. मैं ग़लतियां करता हूं. मैं सब कुछ नहीं जानता, सब कुछ नहीं समझता. मैं जनता से बातचीत करके उनसे उनकी बात सुनकर और समझकर अपनी बात रखता हूं. हम में और आप में फ़र्क़ यही है कि आप सब जानते हैं और ग़लती नहीं करते, जबकि हम ग़लती करते हैं और उससे सीखते हैं।राहुल गांधी छल और फ़रेब की राजनीति नहीं करते. वे कहते हैं,  ''मैं गांधीजी की सोच से राजनीति करता हूं. अगर कोई मुझसे कहे कि आप झूठ बोल कर राजनीति करो, तो मैं यह नहीं कर सकता. मेरे अंदर ये है ही नहीं. इससे मुझे नुक़सान भी होता है. 'मैं झूठे वादे नहीं करता. "  वे कहते हैं, "जब भी मैं किसी देशवासी से मिलता हूं. मुझे सिर्फ़ उसकी भारतीयता दिखाई देती है. मेरे लिए उसकी यही पहचान है. अपने देशवासियों के बीच न मुझे धर्म, ना वर्ग, ना कोई और अंतर दिखता है."  क़ाबिले-ग़ौर है कि एक सर्वे में विश्वसनीयता के मामले में दुनिया के बड़े नेताओं में राहुल गांधी को तीसरा दर्जा मिला हैं, यानी दुनिया भी उनकी विसनीयता का लोहा मानती है.।प्रभावशाली घराने से होने के बावजूद राहुल गांधी में सादगी है. खाने के वक़्त मेज़ पर वे साथियों को प्लेटें दे देते हैं, अपनी प्लेटें ख़ुद किचन में रख आते हैं. किसी बुज़ुर्ग के पानी मांगने पर सेवकों से कहने की बजाय ख़ुद किचन से पानी लाकर दे देते हैं. सार्वजनिक मंचों पर उन्हें अकसर डॊ. मनमोहन सिंह व अन्य लोगों को पानी देते हुए देखा गया है. दुनिया की सबसे महंगी खुदरा हाई स्ट्रीट में शुमार दिल्ली की ख़ान मार्केट में राहुल का भी सबसे प्रिय हैंगआउट है.  उन्हें बरिस्ता में कॉफी पीते हुए या बाज़ार की बाहरी तरफ़ बुक शॊप्स में किताबों के वर्क़ पलटते देखा जा सकता है. वे खाने के बहुत शौक़ीन हैं. पुरानी दिल्ली का खाना भी उन्हें यहां ख़ींच लाता है. अपनी सुरक्षा की परवाह किए बग़ैर वे शाहजहानाबाद पहुंच जाते हैं।राहुल गांधी को ख़ामोश शामें बहुत पसंद हैं. इसके साथ ही उन्हें दुनिया की चकाचौंध भी ख़ूब लुभाती है।वे रिश्तों को बहुत अहमियत देते हैं. अगर किसी से कोई वादा कर लें, तो उसे पूरा ज़रूर करते हैं.   बिल्कुल ऐसे हैं राहुल गांधी, जिन्हें लोग प्यार से ’आरजी’ भी कहते हैं.





शुक्रवार, 10 जून 2016

विश्व पर्यावरण दिवस पर कवियों ने लिया पर्यावरण बचाने का संकल्प


लाल कला मंच एवं युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच ने मनाया पर्यावरण दिवस
 नीरज पांडे
नई दिल्ली । नई दिल्ली रेलवे ऑफिसर क्लब में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर लाल कला मंच और युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के संयुक्त तत्वाधान मे आयोजित काव्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना था।  कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों का स्वागत लाल बिहारी लाल एव लाल कला मंच के अध्यक्ष सोनू गुप्ता तथा युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के अध्यक्ष राम किशोर उपाध्याय ने अतिथियों को माल्यार्पण  एव गुलदस्ता भेट कर किया इस गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ गजलकार जनाब नंदा नूर ने किय़ा मुक्य अतिथि के रुप में हमारा मैट्रो के संपादक राजकुमार अग्रवाल मौयूद थे। इस कार्यक्रम का संयोजन दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल का था तथा मंच का संचालन श्वेताभ पाठक ने किया। इस अवसर पर सभी कवियो एवं वक्ताओं ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर शपथ लिया की तन,मन कर्म एवं वचन से पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास करुगा। इस अवसर पर लालकला मंच की ओर से विचित्र तरीके से प्रर्यावरण प्रहरी-2016 का चयन किया गया ।फलस्वकरुप यह सम्मान कवि ओम प्रकाश शुक्ल को अतिथियों द्वारा प्रदान किया गया।
काब्य गोष्ठी की शुरुआत वरिष्ठ साहित्यकार मीरा शलभ के सरस्वती वंदना से शुरु हुई।जिसमें दिल्ली एवं एन.सी.आर के लगभग 37 कवियों ने  अपनी-अपनी कविताओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण एवं बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एवं वीर रस के कवियों ने देश के भ्रष्ट नेताओं पर व्यंग कसते हुए देशभक्त के अमर सपूतों को भी नमन किया ।उपस्थित कवियों में श्वेताभ पाठक,ओम प्रकाश ,बी पी सिंह ,निधि शर्मा ,डा.कृष्णानंद तिवारी, अकेला इलाहाबादी ,ए.एस. खान अली, वसुधा कनुप्रिया ,अमृता रानी ,शिव प्रभाकर ओझा,महेंद्र प्रीतम, दक्ष ,श्यामा अरोड़ा ,मीरा सलभ, डॉ सीमा गुप्ता, दीपक गोस्वामी ,सौलभ भंडारी ,राम किशोर उपाध्याय ,नंद्रा नूर ,नानकचंद,जे.पी. गौतम ,राजेन्द्र अग्रवाल, संजय साह,नरायण गौरव डा. के.के. तिवारी आदि ने अपनी सुमधुर कविताओं से समा बांध दिया जिससे पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान था। इस कार्यक्रम के सह आयोजक होलिस्टिक अवार्नेस मिशन के अध्यक्ष डा.के.के. तिवारी ने सभी आगन्तुको का हार्दिक धन्यवाद दिया।











बुधवार, 1 जून 2016

विश्व तंबाकू दिवस पर कव्य-गोष्ठी एवं जागरुकता अभियान का आयोजन

विश्व तंबाकू दिवस पर कव्य-गोष्ठी एवं जागरुकता अभियान का आयोजन
posted by लाल बिहारी लाल
नई दिल्ली।सामाजिक संस्था होलिस्टिक अवारनेस मिशन द्वारा विश्व तंबाकू दिवस पर एक कव्य गोष्ठी एवं जागरुकता अभियान का आयोजन मीठापुर में पं. दीनदयाल चेरिटेबुल हांस्पिटल में किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन दो सत्रों में किया गया। पहले सत्र में कव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले कवियों में दिल्लीरत्न लाल बिहारी लाल, जय प्रकाश गौतम, महेन्द्र प्रीतम, के.पी.सिंह कुंवर, नानक चंद,शिव प्रभाकर ओझा,महेश शर्मा आदी ने अपनी-अपनी कविताओं से तंबाकू से होने वाली समस्याओं से बचने की वात कही।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में बदरपुर क्षेत्र के विधायक नारायण दत्त शर्मा मुख्य अतिथि , निगम पार्षद/डिप्टी चेयरमैन स्टैंडिग कमेटी (एस.डी.एम.सी) धर्मवीर अवाना विशिष्ट अतिथि, श्री जगदीश चंद्र चेयरमैन, हरि ओम शर्मा वाइस प्रिंसिपल एवं श्री हवलदार सिंह शास्त्री की गरिमामय उपस्थिति रही।कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजसेवी पं. शिव दयाल शर्मा ने की । इस अवसर पर संस्था के संस्थापक अध्यक्ष डां. कृष्ण कुमार तिवारी ने लोगो को तम्बाकू से होने वाली परेशानी को बताते हुए कहा कि एक सिगरेट के धुय़ें में 4000 से ज्यादा घातक रसायन होते है जो शरीर के विभिन्न हिस्सों को क्षतिग्रस्त करते है और 90% मुह के कैंसर तंबाकू के सेवन से ही होते है। अन्य किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहने की अपील की। इस अवसर पर अनेक लोगों ने भविष्य मे किसी भी तरह के नशा सेवन से दूर रहने का संकल्प लिया। इm अवसर पर लाल कला मंच की अध्यक्षा श्रीमती सोनू गुप्ता,आशा श्रीवास्तव,मलखान सैफी,लोक नाथ शुक्ला,मनोज सिंह,भवानी शंकर शुक्ला सहित क्षेत्र के कई गन्यमान्य स्थानीय लोगों ने बढ चढ कर हिस्सा लिया।
इm कार्यक्रम का संचालन डा. कांत ने किया।