गुरुवार, 14 अगस्त 2014

जम्मू-काश्मीर और मीडिया लेखक लाल बिहारी लाल

जम्मू-काश्मीर और मीडिया
                   लाल बिहारी लाल
नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2014 को देश के प्रधान मंत्री के रुप में जब शपथ लिया था तो इसके कुछ दिनों बाद ही प्रधान मंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जीतेन्द्र सिंह  ने धारा 370  के पुर्नविचार का राग अलाप कर जम्मू काश्मीर के दुखती रग पर हाथ रख दिया । इन खबरो को देश एवं दुनिया के प्रिंट मीडिया के सभी छोटे-बडे समाचारपत्रो  एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रमुख टी.वी.चैनलों तथा इंटरनेट पर भी पूर-जोर तरीके से धारा 370 के गुण-धर्मों पर चर्चा किया और फिर आज पूर्व की भांति इतिहास के पन्नों में गुम हो गया। जम्मू-काश्मीर पर एक संक्षिप्त नजरिया डाल रहे है वरिष्ठ लेखक लाल बिहारी लाल ।

      अगर फिरदौस बर रुये जमी अस्त ।
      हमी अस्ती हमी अस्ती हमी अस्ती ।।

ये लाइनें शाहजहा द्वारा निर्मित दिल्ली के लाल किले के दीवाने खास में लिखी है जिसे काश्मीर के साथ जोड दिया जाता है। शाहजहां को जन्नत धरती पर उतार लाने की इच्छा थी और ता-उम्र  उसने पूरी लगन से इस पर काम भी किया । धरती पर नैसर्गिक रुप से जन्नत कही उतरी है तो वह जगह काश्मीर ही है। किन्तु  पिछले साठ-पैंसठ सालों में वहां पसरे आतंकवाद ने इस स्वर्ग सी-भूमी को जलते नर्क में बदल दिया है।
     काश्मीर /कश्मीर का प्राचीन नाम कश्यप मेरु या कश्यपपीर (कश्यप का झील) था। किंवदंती है कि महर्षि कश्यप  श्री नगर से तीन मील दूर हरि पर्वत पर रहते थे । जहां आजकल काश्मीर घाटी है।अति प्राचीन प्रागैतिहासिक काल में यहां एक बहुत बडी झील थी जिसके पानी को निकाल कर  महर्षि कश्यप  ने मनुष्यों(जीवों) के रहने लायक बनाया था। काश्मीर को भारत का स्विटजरलैड भी कहते हैं।
    काश्मीर 1587- से 1739 तक मुगल साम्राज्य के अधीन था। जहांगीर, शाहजहां काल के स्मारक आज भी निशांत बाग, शालिमार बाग आदि बिद्यमान है। काश्मीर पर 1739 से 1819 तक काबूल के राजाओं का अधिकार था। सन् 1819 में  पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह ने काबूल के अमीर दोस्त मुहम्मद  से  इसे छिन लिया और काश्मीर शीघ्र ही अंग्रेजो के हाथों में चला गया। सन् 1846 में  सिख अंग्रैजो से युद्ध हारे तो लाहौर की संधि के अनुसार  उन्हें हर्जाने के रुप में डेढ करोड रुपये देने थे। परन्तु लाहौर दरबार के पास इतना धन नहीं था इसलिए  लाहौर की संधि के तहत काश्मीर को 60 लाख रुपये नगद और सलाना 6 पसमीना साल अंग्रैजो को नजर करने के एवज में  जम्मू के राजा गुलाब सिंह को बेंच दिया गया।  डोगरों ने लद्दाख को पहले ही तिब्बत से जीत लिया था और इस काश्मीर को जम्मू में शामिल होने से वर्तमान जम्मू-काश्मीर रियासत स्वरुप में आयी। और इस वंश का 1947 तक वहां शासन रहा जम्मू और काश्मीर के बारे में आगे बढ़ने से पहले इसका आप से परिचय कराते चलें। मूल जम्मू और काश्मीर रियासत को भौगोलिक व सांस्कृतिक रूप से चार भागों में बांटा जा सकता है- बाल्टिस्तान, काश्मीर घाटी, लद्दाख और जम्मू। ये सभी क्षेत्र सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से सर्वथा भिन्न है। बाल्टिस्तान-गिलगित व भारतीय कारगिल का क्षेत्र न सिर्फ शिया बाहुल्य है वरन् सामाजिक आधार पर भी ये घाटी के मुसलमानों से भिन्न है। काश्मीर घाटी सुन्नी बाहुल्य क्षेत्र है जो वर्तमान में उपद्रव का केन्‍द्र है। लद्दाख मूलतः तिब्बत का अंग है जहां बौद्ध धर्मानुयायी रहते हैं जबकि जम्मू हिन्दू बाहुल्य है। इस धार्मिक सांस्कृतिक विविधता वाले क्षेत्र को डोगरा शासकों ने बड़ी ही कुशलता से एक राजनैतिक सूत्र में पिरोये रखा।
   सन 1947 में 15 अगस्त को भारत स्वतंत्र हुआ तो अंग्रेजो के कुटनीतिकत चाल कि रियासतें  अपनी इच्छा अनुसार भारत या पाकिस्तान में विलय कर लें या चाहें तो स्वतंत्र रहें। परंतु तत्कालिन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के राजनीतिक  पहल पर 500 से अधिक रियासते भारत में विलय हो गई ।
    आजादी के समय जम्मू काश्मीर के तत्कालिन राजा हरि सिंह ने  जम्मू काश्मीर का अस्तित्व स्वतंत्र ही बरकरार रखना चाहा।और इसका बिलय नाहीं पाकिस्तान और नाहीं हिन्दुस्तान में किया । पाकिस्तान को उम्मीद थी कि जम्मू काश्मीर मुस्लिम बाहूल्य  रियासत होने के कारण इसका बिलय राजा हरि सिंह पाकिस्तान में करेगें पर ऐसा नहीं होता देख पाकिस्तान के तत्कालिन प्रधानमंत्री मो. जिन्ना ने कबाइलियों के सहयोग से जम्मू काश्मीर पर आक्रमण कर दिया। महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी  पर भारत बिना बिलय के मदद को तैयार नहीं हुआ । अतः जम्मू -काश्मीर को बिलय की सहमति के बाद भारत हरकत में आया और अक्टूबर 1947 में दोनों नव राष्ट्रों की सेनायें काश्मीर में आमने-सामने थीं। युद्ध को लंबा खींतचा देख यह मसला  संयुक्त राष्ट्र संघ में गया। और संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर सीज फायर का ऐलान हुआ। तब तक पाकिस्तान काफी हिस्सों पर कब्जा कर लिया था।
      जम्मू काश्मीर मसले को  मीडिया  में पूरजोर तरीके से उठाने का ही परिणाम है कि  सरकारी महकमा भी मीडिया के कारण काफी चुस्त दुरुस्त है और यहां तक कि वादी में सुधारात्मक प्रक्रिया के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के सोंच में परिवर्तन आया है  और  संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा समिति  जम्मू काश्मीर को अनसुलझे बिवादित मुद्दों की सूची से  2010 में बाहर कर दिया। यह भारत की कूटनीतिक  सफलता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सैन्य पर्यवेक्षक कार्यालय ने दिल्ली में अपना दफ्तर भी बंद कर लिया है और शीघ्र ही श्रीनगर में भी अपना दफ्तर बंद करने वाली है।
    अगर इसी तरह मीडिया अपनी सकारात्मक भुमिका निभाती रही तो वह दिन दूर नहीं जब जम्मू कास्मीर से आतंकवाद का खात्मा होगा होगा और वहां के लोग सामान्य जीवन बसर कर सकेंगे और काश्मीर धरती के स्वर्ग को पुनः सकार कर सकेगी। इसके लिए मीडिया बधाई के पात्र है। 
   ****सचिव लाल कला मंच,
        बदरपुर,नई दिल्ली -110044

        फोन-9868163073