नदी की तरह आगे बढ़ते रहने का संदेश देती काव्य कृति – नदी के आस पास-लाल बिहारी लाल
दलित चेतना के प्रखर
लेखक एवं कवि डा. राजेश कुमार माँझी की नवीनतम एकल काव्य संकलन नदी के आसपास नाम से आया है। इस संग्रह में कुल
71 रचनायें हैं जो प्रार्थना से शुरु होकर
हिंद हमारा है पर खत्म हो रही हैं।
जिस तरह विश्व के अधिकांश सभ्यता नदियों के आस पास ही विकसित हुई है उसी
तरह इस संकलन में समाज के विभिन्न रीतियों एवं कुरीतियों का संग्रह है। इस संकलन
में मानो लेखक इस अंदाज में रचनाओं को पिरोया है जैसे वो खुद को अपने आप पर पाया
है औऱ जीया है।
कविताओं की मणिका में प्रार्थना के बाद माँ सरस्वती को समर्पित शब्द समर्पण के रुप में है। इसके आगे इन्द्र धनुषी मौसम,पेयबंद लगा कपड़ा के बाद
वास्तविक विकास के माध्यम से तंज कसते हुए कहते है- आजादी से आज तक,कहां प्रगति
हुई है- आर्थिक,सामाजिक मुझे तो पता ही नही ।। दलितों की आवाज के हुंकार कविता में
बुलंद किया है। गरीबों के दयनीय स्थिति पर उनके घर पलानी(झोपड़ी) में उनकी स्थिति
को चिन्हित किया है। साथ ही दलित आजकल पढ़ लिख कर फूंफकार भी मारने लगे है ।यही कविता
फूंफकार का संदेश है। डंके की चोट हो या मूल निवासी समान्य कवितायें हैं। लालची
बुढिया थोड़ी लंबी कविता है पर शिक्षाप्रद कविता है। इसमें एक मछली का सहारा लेकर बातें
कही गई है कि लालच बुरी बला है इससे बचना चाहिये जो काफी रोचक भी है। सबका एक दिन
अंत होता है यही ध्रुव सत्य है चाहे लालच ही क्यों न हो। नई रीत मे जमाना बदल गया
है और प्यार की रीत भी बदल दई है। जीवन के झंझावातो को ब्यक्त करती कविता- ये गई
वो गई।जीवन के विभिन्न मोड़ पर कभी खुशी तो कभी गम आते हैं।इसी को पिरोया है पतझड़
में। एक साधारण मजदूर की ब्यथा को ब्यक्त किया है
बंधुआ मजदूर में। इसके अलावे दलित चेतना, नारी स्वर,पर्यावरण संदेश एवं
चेतना, देश भक्ति से ओत प्रोत, रीतियो एवं कुरीतियों पर भी कई कवितायें हैं जो सामाजिक
समरसता को मजबूत करने का संदेश देती है।
इस समाज में विड़ले ही मिलती है कुलिन लड़की,
ताड़ की आड़ में सामाजिक रीतियो के दंश की बात है। जो दलितो के पीड़ा को ब्यक्त
करती है।उल्टी बयार ,धूमिल अस्तित्व एवं सभी सच्चाई को द्य़ोतक हैं। यही कड़वा सच
है कि समाज में पहले भी ऊँच -नीच की
खाई थी और आज भी ब्याप्त है।लाख कोशिश कर
ले सरकार या समाज पर यह ब्यवस्था बदल नहीं सकती है। आज के युग में हर मोड़ पर परेशां आदमी है कि कभी कभी उसे शोक सभा में भी जाने का मौका नहीं मिल पाता
है। आदमी को एक नदी से सीख लेनी चाहिये औऱ उसी की तरह लाख बाधाये आने के बावयूद भी
आगे बढ़ते रहना चाहिये। यही संदेश है इस कविता नदी के आस पास में।इस संकलन में कई
ऐसी कवितायें हैं जो पर्यावरण संरक्षण पर बल देती है तो कई देश भक्ति की ओर उन्मुख
करती है। इस तरह 71 कविताओं का यह अनूठा संग्रह साहित्य जगत में कितना मुकाम पाता
है आने वाले दिनों में पाठक ही तय करेंगे। लेकिन लेखक को तहे दिल से धन्यवाद की इस संग्रह में दलित पीड़ा
को पूरजोर तरीके से उठाया है।
काब्य कृति- नदी के आस पास
कवि- डा. राजेश कुमार माँझी
प्रकाशक-नवजागरण प्रकाशन ,नई
दिल्ली
मूल्य-250 रु., वर्ष -2018
समीक्षक-लाल बिहारी लाल
( वरिष्ठ कवि,लेखक एवं पत्रकाऱ)
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