पुस्तक समीक्षा
जीवन मूल्यों को समाहित करती - पीहू पुकार - लाल बिहारी लाल
रवीन्द्र जुगरान हिंदी काब्य जगत में एक उद्यमान प्रतिभा हैं। इनकी 49 अतुकांत कविताओं का संग्रह –पीहू
पुकार शीर्षक से अनुराधा प्रकाशन ,नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है।इस एकल संकलन में
शुरुआत मंगल गान से है में – हे मां बिलख रहे है तेरे लाल में कवि ने इस प्रतिकूल
वातावरण में अपने दायित्वो का बा-खूबी विर्वाहन किया है।वही प्रेम को
परिभाषित किया है कि प्रेम जब आँखों में छलकते है तो शब्द मौन हो जाते हैं।वही आगे
कहते हैं कि चंद्रमा के प्यार में चकोर पागल हो जाता है तो पीहू-पीहू की पुकार
करता है। इस कविता मे कवि ने बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है। प्रियतम एवं
प्रियतमा के शब्दों को पीहू के माध्यम से
। आगे कवि कहता है जीवन दर्शन की बात –जीवन में उल्लास रखों पूरे होंगे काम,तुम आश
रखो.....।मन में करो कल्पना तो उसे पूरा होने का विश्वास के साथ कठिन साधना भी
जरुरी है।तुम लौट के इस तरह आना इस उजड़े चमन को बसाना। संघर्ष ही जीवन है को
चरितार्थ करती कविता –यही जीवन मेरा प्रेम तोरा प्रेम सबसे है अमोल प्रेम ।ए पगली
भी अपनी ब्यथा को ब्यक्त करती है।
विरह मिलन प्यार मोहब्त से होकर जीवन को संघर्ष रुपी सागर में अनुभवो के गोता
लगाती हुई ..अपनी परिभाषा कहती हुई लहरों की तरह आगे बढ़ती है। कुछ
संवेदनाओं,परिपक्वता की और रे मन बहाने ढ़ूढ़ते हैं।प्रेम से बसा घर संसार ,इक वो
जो मिला से जरने के बाद सुख की घनी छाया आ ही जाती है।लाख जतन कर लो पर जीवन की
सच्चाई से मुँह मोड़ना संभव नही है।इसके लिए तुम निश्चिंत रहो की हर कोई तुम-सा
नहीं होता है।
कुल मिलाकर 49 कविताओ की मणिका से बने
पीहू पुकार की माला जीवन मे काफी रोमांच
भर देती है..।एक से बढ़कर एक प्रेम प्यार
एंव जीवन मूल्य की कविताओं का संग्रह है पीहू पुकार। इस साहित्यिक सागर में आप भी
डूबकी लगा सकते हैं। पुस्तक की कवितायें जितना सुंदर है उतनी ही सुंदर कलेवर भी
है। इसके लिए लेखक को रचनाधर्मिता के लिए तो प्रकाशक को बुक के कवर डिजाइन के लिए
साधुवाद। आशा है हिंदी काब्य जगत में पीहू की पुकार जरुर पाठको तक पहुँचेगी।
काब्य कृति- पीहू - पुकार
कवियित्री- रवीन्द्र जुगरान
प्रकाशक-अनुराधा प्रकाशन ,नई दिल्ली
मूल्य-65 रु., वर्ष -2018
समीक्षक-लाल बिहारी लाल
(कवि,लेखक एवं पत्रकाऱ)
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