सोमवार, 12 मार्च 2018

कविता के विविध आयामों को अक्स देती- नीले अक्स-लाल बिहारी लाल


पुस्तक समीक्षा
कविता के विविध आयामों को अक्स देती- नीले अक्स-लाल बिहारी लाल

नीलू निलपरी हिंदी काब्य जगत में एक उभरती हुई कवियित्री हैं। इनकी  102 अतुकांत कविताओं का संग्रह –नीले अक्स शीर्षक से  सान्ध्य दैनिक लोक जंग प्रकाशन ,भोपाल ने प्रकाशित किया है। इस एकल संकलन में प्यार-मोहब्बत,त्याग –तपस्या ,प्रेम–विरह, मिलन–जुदाई के संग संग प्राकृतिक विषयों पर भी कई कविताये हैं।  नीलू नीलपरी पेशे से एक शिक्षिका  एंव मनोवैज्ञानिक है।पर साहित्य जगत  में भी अपनी पहली पुस्तक नीले अक्स से ही अपनी लेखनी का एहसास करा रही है। इनकी कुछ कविताओं को देखें- महकती मचलती हवा सी वो लड़की,वो जलपरी से नादान लड़की(पृष्ठ-32)। वही औरत के दशा दिशा पर  बेवकूफ औरत के तहत कहती है-रखती हर दुखी के जख्म पर ,आशाओं का स्नेहिल स्पर्श, रोते के आसु पोछ (पृष्ठ-37)। आगे कहती है कि नारी चट्टान से कम नहीं होती है-तोड़ नही पाओगे तुम कभी, जोड़  लगाओ कितना भी(पृष्ठ-38। सागर के लहरो की तरह है जिंदगी तभी तो उठती हो औऱ ढ़लती हो यू.ही मचलती हो,ए लहरो  तुम भी मेरी जैसी हो  (पृष्ठ-43)। एक नारी विरह-वेदना मे  काफी मुलायम-सी हो जाती है-विरह की काली अमावस सबको जमाने के मकरजाल में उलझा देती है(पृष्ठ-45)। आदमी अपने कर्मो का अक्स देखता है। अक्स शीर्षक कविता में लिखती है । जबकि एहसास  की बूंदें में लिखती है –रिश्ता है कुछ बूंदो का एहसास ही तो,मेरे दिल से तेरे दिल तक।  आगे आरजू में कहती है -माना मैं मुमताज ना सही, ताज महल ना सही एक विद्या का मंदिर ही बनवा देना ,जहां सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया जाये। (पृष्ठ-53)। इस कविता में परलोक की बाते बहुत ही सरलता से इहलोक में कह गई। औसी वाद एख उदार मन की लेखिका ही लिख सकती है। जो मरने के बाद भी समाज के हक की बात कर रही है।
     बाबुल का आंगन से लेकर प्रियतम के प्रीत की बातें इस संकलन में समाहित है। कभी रुठना तो कभी मनाना जिंदगी के विवध आयाम है जिसे लेखिका ने जीया है। तभी तो इस तरह की शीर्षक पर बोल जिंदगी में कहती है। इनकी प्रकृति प्रेम भी झलकती है नदी(पृष्ठ-60)। ।सदियों पुरुष प्रधान समाज  में आज आजादी के 70 साल  बाद भी  कुछ नही बदला शीषर्क से कहती है- इंसान की आरजू कभी पूरी नही होती। (पृष्ठ-114)।इंसान रिश्तो के बंधन में आया है और इसी के चक्कर में तार-तार हो जाता है। जिंदगी हवा के झोकों की तरह है पल-पल रंग बदलती है ऐ हवा((पृष्ठ-79)है।
  कुल मिलाकर 144 पृष्ठों की इस एकल संकलन में रचनायें भाव प्रधान है। जो कभी-कभी मिलजुलकर अपने साथ-साथ चलने का एहसास भी कराती है। कवयित्री की रचनाये यदा कदा विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं की शोभा बढ़ाते रहती है। इन्होंने शब्दों को जीने औऱ सीने के बाद ही कागजो पर उतारा है। जो एक सराहनीय प्रयास कहा जा सकता है। पर इस संकलन में शिल्प पक्ष के बजाये भाव पक्ष पर जोर दिया गया है। आशा है कव्य जगत में इस नीले  अक्स को पूरे कविता के पटल पर पढ़ा औऱ सराहा जायेगा।
काब्य कृति- नीले अक्स
कवियित्री- नीलू नीलपरी
प्रकाशक-दैनिक लोकजंग प्रकाशन ,भोपाल
मूल्य-200 रु., वर्ष -2017
समीक्षक-लाल बिहारी लाल
(कवि,लेखक एवं पत्रकाऱ)

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