समाजिक भाईचारे का पर्व है होली
-लाल बिहारी लाल
भारत
में फागुन महीने के पूर्णिंमा या पूर्णमासी के दिन हर्षोउल्लास के साथ मनाये जाने
वाला विविध रंगों से भरा हुआ हिदुओं का एक प्रमुख त्योहार है-होली।
होली का वृहद मायने ही पवित्र है। पौरानिक मान्यताओं के अनुसार फागुन माह
के पूर्णिमा के दिन ही भगवान कृष्ण बाल्य काल में राक्षसणी पुतना का बध किया था ।
इस प्रकार बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी तभी से इसे होली के रुप में मनाया जाता
है। एक अन्य पैरानिक कथा जो शिव एवं पार्वती से जुड़ा हुआ है। हिमालय पुत्री
पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थी पर शिव जी
तपस्या मैं लीन थे तब उन्होनें भगवान कामदेव की सहायता से भगवान शिव
की तपस्या भंग करवाई ।इससे शिवजी क्रोधित हो गये और अपना तीसरे नेत्र खोल दिये
जिससे क्रोध की ज्वाला में कामदेव भष्म हो गये । शिव जी ने पार्वती को देखा और
पार्वती की आराधना सफल हुई औऱ भगवान शिव पार्वती को अपनी अर्धागिनी के रुप में स्वीकार कर लिया इस प्रकार होली की अग्नी में
वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रुप से जलाकर सच्चे प्रेम का विजय का उत्सव मनाया
जाता है।यह पर्व खुशी और सौभाग्य का उत्सव है जो सभी के जीवन में वास्तविक
रंग और आनंद लाता है। रंगों के माध्यम से सभी के बीच की दूरियाँ मिट जाती है। इस
महत्वपूर्णं उत्सव को मनाने के पीछे प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका से संबंधित एक
पौराणिक कहानी है,जो काफी लोकप्रिय है। काफी समय पहले
एक असुर राजा था- हिरण्यकश्यप। वो प्रह्लाद का पिता और होलिका का भाई था।तप के वल
पर उसने ब्रम्हा जी से कठिन मौत का बगदान मांग लिया था जिसके तहत उसे ये वरदान
मिला था कि उसे कोई इंसान या जानवर मार नहीं सकता, ना ही किसी अस्त्र या शस्त्र से, न घर के बाहर न अंदर, न दिन न रात में। इस तरह असीम शक्ति और कठीन मौत
की वजह से हिरण्यकश्यप घमंडी हो गया था और भगवान को मानने के बजाए खुद को भगवान
समझता था साथ ही अपने पुत्र सहित सभी को अपनी पूजा करने का निर्देश देता
था।क्योंकि हर तरफ उसका खौफ था, इससे सभी उसकी पूजा करने लगे सिवाय प्रह्लाद के क्योंकि वो भगवान
विष्णु का भक्त था। पुत्र प्रह्लाद के इस बर्ताव से चिढ़ कर हिरण्यकश्यप ने अपनी
बहन के साथ मिलकर उसे मारने की योजना बनायी। उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को
अपनी गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश दिया। आग से न जलने का वरदान पाने वाली
होलिका भी आग की लपटो में भस्म हो गई वहीं दूसरी ओर भक्त प्रह्लाद को अग्नि देव ने
छुआ तक नहीं। उसी समय से हिन्दु धर्म के लोगों द्वारा होलिका के नाम पर होली उत्सव
की शुरुआत हुई। इसे हम सभी बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में भी देखते है।
रंग-बिरंगी होली के एक दिन पहले लोग लकड़ी, घास-फूस, और गाय के गोबर के ढ़ेर में अपनी सारी बुराईयों
को होलिका दहन के रुप में एक साथ जलाकर खाक कर देते है। और सामाजिक भाईचारे को
बढ़ावा देते है।
इस
दिन सभी इस उत्सव को गीत-संगीत, खुशबुदार पकवानों और रंगों में सराबोर होकर
मनाते है।आजकल रंगो के साथ-साथ गुलालों का भी प्रयोग दोपहर के बाद खूब होने लगा
है। होली के दिन सरकारी छुट्टी होने के कारण लोग इस खास पर्व को एक-दूसरे के साथ
मना सके। तभी तो लाल कला मंच के सचिव एवं दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल का कहना है
कि सामाजिक भाईचारे का अजब मिसाल है होली जो सारी दुनिया में इस तरह के अनोखा पर्व
नहीं है। जो सभी वैर भाव छोड़ कर एक साथ इस इन्द्र धनुषी रंगो एवं उमंगों के पर्व
को मनाते हैं।
सचिव- लाल कला मंच ,नई दिल्ली
फोन 7042663073
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