मानव
अधिकार दिवस पर विशेष-
10
दिसंबर मानव अधिकारों के जागरुकता का दिन
लाल बिहारी लाल
नई
दिल्ली। आज मानव के अधिकारों के संरक्षण का संवैधानिक दर्जा पूरी दुनिया प्राप्त है। मानव
अधिकारों से अभिप्राय ''मौलिक
अधिकारों एवं स्वतंत्रत से है जिसके सभी मानव प्राणी समान रुप से हकदार है। जिसमें
स्वतंत्रता, समाजिक ,आर्थिक औऱ राजनैतिक रूप में देना है। जैसे कि जीवन और आजाद
रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के
सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और
सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार, काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार।''
आदि शामिल है।
मानवाधिकारों के इतिहास और इसकी चिंताओं को
देखें तो सर्वप्रथम इसके बारे में हमें भारतीय वांग्मय में व्यापक तौर पर सामग्री
मिलती है। दुनिया कि आदि ग्रंथ कहे जाने वाले सबसे प्राचीन ग्रंथों के रूप में
मान्य वेदों में यह सर्वप्रथम दिखाई देते हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद से
लेकर अथर्ववेद में अनेक ऋचाएं हैं, जो इस बात पर
चिंता व्यक्त करती हैं कि व्यक्ति के स्वतंत्रता के अधिकार के साथ उसके बोलने की
आजादी का संपूर्ण रूप से ख्याल रखा जाए। राज्य के स्तर पर या स्थानीय निकाय में
प्रत्येक नागरिक कानूनी समानता, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के स्तर पर एक समान हो। भारत में
इन वैदिक ग्रंथों के बाद अन्य पौराणिक ग्रंथों, जातक कथाओं, अपने समय के कानूनी दस्तावेजों सहित धार्मिक और दार्शनिक
पुस्तकों में ऐसी अनेक अवधारणाएं, नियम, सिद्धांत मिलते हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि भारत में मानवाधिकार
की चिंता शुरू से की जाती रही है।
इसके बाद युरोप के देशों समेत दुनिया के तमाम
देशों में किसी न किसी रूप में मानव के अधिकारों और उनके संरक्षण की बातें उठने
लगीं। तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा अंगीकार की ।इन प्रपत्रों को
लगभग विश्व के 380 भाषाओं में अनुवाद
कराया गया जिसके कारण इस अधिनियम को गिनीज बुक आफ रिकार्ड में नाम दर्ज हुआ। और 4
दिसंबर 1950 से विधिवत इसे लागू भी कर दिया गया। जिसमें यह बात साफ तौर पर लिखी गई
कि राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं जो कभी छीने
नहीं जा सकते, मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान
अधिकार हैं। इस घोषणा के परिणामस्वरूप विश्व के कई राष्ट्रों ने इन अधिकारों को
अपने संविधान में शामिल करना आरंभ कर दिया।इशका लोगो 23 सितंबर 2011 को न्यूयार्क
में जारी किया गया। इस अधिनियम से पूरी दुनिया में मानवहितों की रक्षा करने में
काफी सहयोग मिला है।
भारत में इसका गठन 28 सितंबर 1993 को हुआ और
12 अक्टूबर 1993 से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग काम करना शुरु कर दिया। इसके
अध्यक्ष(चेयरमैन) सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत जज होते हैं। इसका मुख्यालय नई
दिल्ली में है। और इसके प्रथम चेयरमैन जस्टिस रंगनाथ मिश्रा थे वही वर्तमान में
इसके चेयरमैन 29 फरवरी 2016 से जस्टिस एच.एल दतु हैं।
भारत
में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 21 में राज्य में मानवाधिकार आयोग गठन का प्रावधान है और सभी
राज्यों में इस आयोग का गठन हो चुका है। इन आयोगों के वित्तीय भार का वहन राज्य
सरकारों द्वारा किया जाता है। संबंधित राज्य का राज्यंपाल, अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है। आयोग का मुख्यालय
राज्य में कहीं भी हो सकता है। ''सन 1993 की धारा 21 (5) के तहत राज्य
मानव अधिकार के हनन से संबंधित उन सभी मामलों की जांच कर सकता है, जिनका उल्लेख भारतीय संविधान की सूची में किया गया, वहीं धारा 36 (9) के अनुसार
आयोग ऐसे किसी भी विषय की जांच नहीं करेगा, जो किसी
राज्य आयोग अथवा अन्य आयोग के समक्ष विचाराधीन है। मानव के हीतो की रक्षा करना ही
इस आयोग का मुख्य काम है जिसे संवैधानिक मानयता प्राप्त है। इस मानवहितों की रक्षा
के उद्देश्यों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हर साल पूरी दुनिया में 10 दिसंबर को
विश्व मानव अधिकार दिवस मनाते हैं।
(लेखक
वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार हैं।)