सोमवार, 29 मई 2017

शुक्रवार, 26 मई 2017

बदरपुर डायरेक्ट्री भेंट करते हुए आपका मित्र एवं डायरेक्ट्री . के संपादक लाल बिहारी लाल।


गायिका राधा जी को बदरपुर डायरेक्ट्री भेंट करते हुए आपका मित्र एवं डा. के संपादक लाल बिहारी लाल।

बदरपुर डायरेक्ट्री भेंट करते हुए आपका मित्र लाल बिहारी लाल।



गायिका पूजा भारती को बदरपुर डायरेक्ट्री भेंट करते हुए आपका मित्र एवं डायरेक्ट्री . के संपादक लाल बिहारी लाल।

गुरुवार, 18 मई 2017

हिंदी और मराठी फिल्मों की अदाकारा- रीमा लागू नहीं रही


हिंदी और मराठी फिल्मों की अदाकारा- रीमा लागू का निधन

लाल बिहारी लाल


नई दिल्ली। हिंदी और मराठी फिल्मों की अभिनेत्री रीमा लागू का जन्म एक मराठी परिवार में नागपुर में 1958 में हुआ था। इनकी माता मंदाकनी भदभड़े मराठी थियेटर की जानी मानी अभिनेत्री थी। रीमा के बचपन का नाम नयन भदभड़े था। इनकी शिक्षा स्थानीय हाई स्कूल में ही हुई। इन्होनें बाल कलाकार के रुप में 9 फिल्में कर ली। इनके परिवार वाले आगे पढ़ाना चाहते थे पर पारिवारिक माहौल के कारण ही ये अभिनेभी बन गई। सन 1970-80 के दशक में मराठी थियेटर के कलाकार विवेक लागू से इनकी शादी हुई ।इन्होंने शादी के बाद अपना नाम बदलकर रीमा लागू  कर लिया।
  उन्होने 1980 में कलयुग,आक्रोश,नासुर आदि जैसी फिल्मे की पर समय से पहले ही बालीवूड के निर्देशकों ने इन्हें माँ बना दिया जिसका मलाल इन्हें मरते दम तक रहा। माँ की भूमिका में कुछ प्रमुख फिल्में रही उनमें- मैने प्यार किया, आशिकी, साजन, हम आपके हैं कौन, वास्तव, कुछ-कुछ होता है, कल हो ना हो, हम सब साथ-साथ आदी है। इन्होनें हिन्दी धारावाहिकों में भी काफी काम किया है – उनमें- 1985 में खानदान,1994 में डी.ड़ी. नेशनल औऱ सब टी.वी. पर प्रसारित श्रीमान-श्रीमती  में कोकिला यानी की कोकी की यादगार भूमिका जिससे इनकी पहचान भारत के हर घर मे होने लगी। फिर 1994-2000 तक डी.ड़ी नेशनल औऱ स्टार प्लस पर प्रसारित धारावाहिक  में देविका वर्मा की भुमिका में काफी मशहूर हुई जिसके लिए इन्हें पहला टी.वी पुरस्कार का बेस्ट अदाकारा का पुरस्कार मिला। फिर 1997 में जी टी.वी के लिए दो और दो पाँच की फिर धड़कन अभी वर्तमान में नामकरण में दमयंती मेहता की भूमिका निभा रही थी। रीमा अपने फिल्मीं  कैरियर में 95 से ज्यादा फिल्में की। आज रीमा भौतिक रुप से दिल का दौड़ा पड़ने के कारण हमलोगों के बीच नहीं रही पर अपने अदाकारी के दम पर आज भी हर भारतीय के दिलों में जिंदा है।
लेखक- लाल कला मंच ,नई दिल्ली के सचिव हैं




सोमवार, 15 मई 2017

शिरडी में तीन दिवसीय साहित्य महोत्सव धूमधाम से समपन्न

शिरडी में तीन दिवसीय  साहित्य महोत्सव धूमधाम से समपन्न
लाल बिहारी लाल


नई दिल्ली। अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के तत्वावधान में तीन दिवसीय साहित्य महोत्सव शिरडी धाम में धूमधाम से सम्पन्न हुआ। इस आयोजन के सुत्रधार संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष पं. श्री सुरेश नीरव तथा अध्यक्षता करते हुए स्वच्छता के प्रतीक पद्म-विभूषण, शलाका पुरुष पं. श्री विन्देश्वर पाठक जी एवं उनकी पूरी टीम को जाता है वहीं धर्म के ध्वजवाहक महामण्डलेश्वर स्वामी प्रज्ञानन्द जी महाराज जो मुख्य अतिथि एवं निर्णायक की भूमिका में मंच पर स्वयं शोभायमान थे, को भी जाता है।
  आयोजन का प्रथम सत्र उद्घाटन समारोह, दीप-प्रज्वलन के साथ, आगत अतिथियों के सम्मान स्वरुप माल्यार्पण, अंग वस्त्र के साथ प्रतीक चिन्ह अर्पित किए जाने के उपरान्त पं. सुरेश नीरव जी द्वारा लिखित नवीन व्यंग रचना "नेता जी नर्क में" के विमोचन के बीच हुआ। यह संग्रह समकालीन सामाजिक, राजनैतिक हलचलों का एक रोचक एवं पठनीय दस्तावेज बन पड़ा है। जिसे
डायमंड पॉकेट बुक्स,नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है।यह संग्रह निश्चित रूप से पठनीय एवं संग्रहणीय है। इश आयोजन में धर्म और राजनीति का अंत:सम्बन्ध पर भी चर्चा हुई ।
 इस अवसर पर कई साहित्य मनिषियों का भी सम्मानित किया गया जिसमें सर्व श्री प्रो० डॉ० शम्भू सिंह मनहर, डॉ० पुष्पा जोशी, डॉ० रामवरण ओझा, डॉ० मधु मञ्जरी, डॉ० क़ाज़ी तनवीर, जयप्रकाश विलक्षण, डॉ० वीणा मित्तल, डॉ० नीलम शर्मा, शिवनरेश पाण्डेय, मुनीश भाटिया घायल, श्याम स्नेही, प्रदीप जैन, डॉ० नीलम शर्मा, सुश्री सुनीता श्रुति श्री, अनीता पाण्डेय, सृजन चतुर्वेदी, व्यंग्य शिल्पी प्रकाश प्रलय, नम्रता श्रीवास्तव, डॉ० मधुलिका सिंह, राजेश मंडार, प्रभा शर्मा, डॉ० रूचि चतुर्वेदी, डॉ० मधु मिश्रा आदि प्रमुख रहे ।
   तीसरे दिन एवं अंतिम सत्र मे सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के राष्ट्रीय
अध्यक्ष पंडित सुरेश नीरव के संचालन में एक सरस कवि सम्मेलन का भी
आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे कवियो ने हिस्सा
लिया जिसमें सर्व श्री डा. रुचि चतुर्वेदी [आगरा], डॉक्टर शंभू सिंह मनहर[खरगौन],
रामवरण ओझा [ ग्वालियर], प्रकाश प्रलय [कटनी], डॉक्टर मधूलिका सिंह, डॉक्टर
क़ाज़ी तनवीर [ग्वालियर], गुरुग्राम से आचार्य श्याम स्नेही  तथा कौमुदी ,मुनीष
भाटिया घायल [हांसी], राकेश पांडेय [दिल्ली], मधु चतुर्वेदी [गजरौला], नोएडा से
जयप्रकाश विलक्षण तथा डा. पुष्पा जोशी ,सुनीताश्री [गाजियाबाद]राकेश पांडेय,
प्रदीप जैन [दिल्ली], राजेश मंडार [बागपत] तथा इस कवि  सम्मेलन की
अध्यक्षता कर रहे  पद्मभूषण ड़ा. विन्देश्वर पाठक द्वारा काव्य पाठ के साथ ही
इस समारोह का समापन  किया गया।


रविवार, 14 मई 2017

माँ पर लाल बिहारी लाल के कुछ दोहे

माँ पर कुछ दोहा

लाल बिहारी लाल



माँ जीवन का सार है, माँ है तो संसार।
माँ बिन जीवन लाल का,समझो है बेकार।1

माँ की ममता धरा पर, सबसे है अनमोल।
माँ जिसने भूला दिया,सब कुछ उसका गोल।2

माँ सम गुरू नहीं मिले, ढ़ूढ़े इस संसार।
गुरु का जो मान रखा,नैया उसका पार।3

माँ के दूध का कर्जा, चुका न पाया कोय।
जन जो कर्ज चुका दिया,जग बैरी ना होय।4

माँ पीपल की छांव है,माँ बगिया के मूल।
माँ जीवन का सार है, हरे लाल के शूल।5

माँ से जग संसार है,माँ से जीवन मूल।
माँ बिना मोल कुछ नहीं,मुर्झाये सब फूल।6
*      सचिव-लाल कला मंच, नई दिल्ली

   फोन-9868163073 या 7042663073

मां, तुझे सलाम…....... -फ़िरदौस ख़ान

मांतुझे सलाम
-फ़िरदौस ख़ान
क़दमों को मां के इश्क़ ने सर पे उठा लिया
साअत सईद दोश पे फ़िरदौस आ गई...

ईश्वर ने जब कायनात की तामीर कर इंसान को ज़मीं पर बसाने का तसव्वुर किया होगा...यक़ीनन उस वक़्त मां का अक्स भी उसके ज़हन में उभर आया होगा... जिस तरह सूरज से यह कायनात रौशन है...ठीक उसी तरह मां से इंसान की ज़िन्दगी में उजाला बिखरा है...तपती-झुलसा देने वाली गर्मी में दरख़्त की शीतल छांव है मां...तो बर्फ़ीली सर्दियों में गुनगुनी धूप का अहसास है मां...एक ऐसी दुआ है मांजो अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाती है... मांजिसकी कोख से इंसानियत जनमी...जिसके आंचल में कायनात समा जाए...जिसकी छुअन से दुख-दर्द दूर हो जाएं...जिसके होठों पर दुआएं हों... जिसके दिल में ममता हो और आंखों में औलाद के लिए इंद्रधनुषी  सपने सजे हों...ऐसी ही होती है मां...बिल्कुल ईश्वर के प्रतिरूप जैसी...ईष्वर के बाद मां ही इंसान के सबसे क़रीब होती है...

सभी नस्लों में मां को बहुत अहमियत दी गई है. इस्लाम में मां का बहुत ऊंचा दर्जा है. क़ुरआन की सूरह अल अहक़ाफ़ में अल्लाह फ़रमाता है-"हमने मनुश्य को अपने मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करने की ताक़ीद की. उसकी मां ने उसे (पेट में) तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे तकलीफ़ के साथ जन्म भी दिया। उसके गर्भ में पलने और दूध छुड़ाने में तीस माह लग गए." हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि "मां के क़दमों के नीचे जन्नत है." आपने एक हदीस में फ़रमाया है-"मैं वसीयत करता हूं कि इंसान को मां के बारे में कि वह उसके साथ नेक बर्ताव करे." एक हदीस के मुताबिक़ एक व्यक्ति ने हज़रत मुहम्मद साहब से सवाल किया कि- इंसानों में सबसे ज़्यादा अच्छे बर्ताव का हक़दार कौन हैइस पर आपने जवाब दिया-तुम्हारी मां. उस व्यक्ति ने दोबारा वही सवाल किया. आपने फ़रमाया-तुम्हारी मां. उस व्यक्ति ने तीसरी बार फिर वही सवाल किया. इस बार भी आपने फ़रमाया कि तुम्हारी मां. उस व्यक्ति ने चौथी बार फिर भी यही सवाल किया. आपने कहा कि तुम्हारा पिता. यानी इस्लाम में मां को पिता से तीन गुना ज़्यादा अहमियत दी गई है. इस्लाम में जन्म देने वाली मां के साथ-साथ दूध पिलाने और परवरिश करने वाली मां को भी ऊंचा दर्जा दिया गया है. इस्लाम में इबादत के साथ ही अपनी मां के साथ नेक बर्ताव करने और उसकी ख़िदमत करने का भी हुक्म दिया गया है. कहा जाता है कि जब तक मां अपने बच्चों को दूध नहीं बख़्शती तब तक उनके गुनाह भी माफ़ नहीं होते.
भारत में मां को शक्ति का रूप माना गया है. हिन्दू धर्म में देवियों को मां कहकर पुकारा जाता है. धन की देवी लक्ष्मीज्ञान की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा को माना जाता है. नवरात्रों में मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना का विधान है. वेदों में मां को पूजनीय कहा गया है. महर्षि मनु कहते हैं-दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्या होता हैसौ आचार्यों के बराबर एक पिता होता है और एक हज़ार पिताओं से अधिक गौरवपूर्ण मां होती है। तैतृयोपनिशद्‌ में कहा गया है-मातृ देवो भव:. इसी तरह जब यक्ष ने युधिष्ठर से सवाल किया कि भूमि से भारी कौन है तो उन्होंने जवाब दिया कि माता गुरुतरा भूमे: यानी मां इस भूमि से भी कहीं अधिक भारी होती है. रामायण में श्रीराम कहते हैं- जननी जन्मभूमिश्च  स्वर्गादपि गरीयसी यानी जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है. बौद्ध धर्म में महात्मा बुद्ध के स्त्री रूप में देवी तारा की महिमा का गुणगान किया जाता है.

यहूदियों में भी मां को सम्मान की दृश्टि से देखा जाता है. उनकी धार्मिक मान्यता के मुताबिक़ कुल 55 पैग़म्बर हुए हैंजिनमें सात महिलाएं थीं. ईसाइयों में मां को उच्च स्थान हासिल है. इस मज़हब में यीशु की मां मदर मैरी को सर्वोपरि माना जाता है. गिरजाघरों में ईसा मसीह के अलावा मदर मैरी की प्रतिमाएं भी विराजमान रहती हैं. यूरोपीय देशों में मदरिंग संडे मनाया जाता है. दुनिया के अन्य देशों में भी मदर डे यानी मातृ दिवस मनाने की परंपरा है. भारत में मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है. चीन में दार्शनिक मेंग जाई की मां के जन्मदिन को मातृ दिवस के तौर पर मनाया जाता हैतो इज़राईल में हेनेरिता जोल के जन्मदिवस को मातृ दिवस के रूप में मनाकर मां के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है. हेनेरिता ने जर्मन नाज़ियों से यहूदियों की रक्षा की थी. नेपाल में वैशाख के कृष्ण पक्ष में माता तीर्थ उत्सव मनाया जाता है. अमेरिका में मई के दूसरे रविवार को मदर डे मनाया जाता है. इस दिन मदर डे के लिए संघर्ष करने वाली अन्ना जार्विस को अपनी मुहिम में कामयाबी मिली थी. इंडोनेशिया में 22 दिसंबर को मातृ दिवस मनाया जाता है. भारत में भी मदर डे पर उत्साह देखा जाता है.

मां बच्चे को नौ माह अपनी कोख में रखती है. प्रसव पीड़ा सहकर उसे इस संसार में लाती हैसारी-सारी रात जागकर उसे सुख की नींद सुलाती है. हम अनेक जनम लेकर भी मां की कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सकते. मां की ममता असीम हैअनंत है और अपरंपार है. मां और उसके बच्चों का रिश्ता अटूट है. मां बच्चे की पहली गुरु होती है. उसकी छांव तले पलकर ही बच्चा एक ताक़तवर इंसान बनता है. हर व्यक्ति अपनी मां से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. वो कितना ही बड़ा क्यों न हो जाएलेकिन अपनी मां के लिए वो हमेशा  उसका छोटा-सा बच्चा ही रहता है. मां अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्यौछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है. मां बनकर ही हर महिला ख़ुद को पूर्ण मानती है.

कहते हैं कि एक व्यक्ति बहुत तेज़ घुड़सवारी करता था. एक दिन ईश्वर ने उस व्यक्ति से कहा कि अब ध्यान से घुड़सवारी किया करो. जब उस व्यक्ति ने इसकी वजह पूछी तो ईश्वर ने कहा कि अब तुम्हारे लिए दुआ मांगने वाली तुम्हारी ज़िन्दा नहीं है. जब तक वो ज़िन्दा रही उसकी दुआएं तुम्हें बचाती रहींमगर उन दुआaओं का साया तुम्हारे सर से उठ चुका है. सचमां इस दुनिया में बच्चों के लिए ईश्वर का ही प्रतिरूप हैजिसकी दुआएं उसे हर बला से महफ़ूज़ रखती हैं. मातृ शक्ति को शत-शत नमन...     
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं।
प्रस्तुति- लाल बिहारी लाल