शुक्रवार, 11 मई 2018

माँ " पर कुछ कवि एवं साहित्यकारों के रचनात्मक विचार

शीर्षक " माँ " पर कुछ कवि एवं साहित्यकारों के रचनात्मक विचार  


1-
माँ के क़दमों में है जन्नत ये बताने वाले
मुझको लगता है कि जन्नत से वो आगे न गए 

दीक्षित दनकौरी 
2-
जीवन के हर मोड़ पर, छले गए हर बार।
मां की ममता साथ थी,हार गया संसार।।

सरिता गुप्ता,दिल्ली
3-
माँ जीवन का सार है, माँ है तो संसार।
माँ बिन जीवन लाल का,समझो है बेकार।।
 लाल बिहारी लाल

4--
रहे खुद भूखी फिर भी , दे पेट भर खाना |
भाव है उसका ऐसा ,खिला खुश हो जाना ||

संजय वर्मा "दृष्टि" मनावर 
5--
मैं घंटे बतियाता हूं माँ की कब्र से,
एै "रंग"--एैसा लगता है की जैसे,
माँ की कब्र से भी अपने बेटे को दुआ आती है।

रंगनाथ द्विवेदी।
6--
माँ के कदमो में रहूँ, टूटे सभी गुरूर !
माँ ममता की छाव से , कभी न रखना दूर !!

कृष्णा नन्द तिवारी 
7--
माँ से ही संसार है,माँ ही ममता रूप।
देती सबको छाँव है,खुद सहती है धूप।।

मनोज कामदेव
8--
जाकर छत पर देखता ,चंदा तारे रोज ।
माँ उसको मिलती नहीं ,बालक करता खोज ।।

संजय कुमार गिरि
9--
मांग लूं यह मन्नत ,फिर यही जहाँ मिले
फिर यही गोद मिले , फिर यही माँ मिले 

माधवी राठी
10-
सुख-दुख दोनों में रहे, कोमल और उदार।
कैसी भी सन्तान हो, माँ देती है प्यार।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक
प्रस्तुति :-श्री लाल बिहारी लाल 

संकलन कर्ता   :-संजय कुमार गिरि ,

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