भारत रत्न- लालबहादुर शास्त्री
लाल
बिहारी लाल,नई दिल्ली
लालबहादुर
शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में मुंशी शारदा प्रसाद
श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे अत: सब
उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की
नौकरी कर ली थी।]लालबहादुर की माँ का नाम
रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले
प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें अठारह महीने का हुआ दुर्भाग्य
से पिता का निधन हो गया। पिता की असामयिक मृत्यु के बाद इनका लालन-
पालन ननिहाल में हुआ। नन्हें की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में
रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई
स्कूल और काशी
विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही प्रबुद्ध
बालक ने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया
और अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया। इसके पश्चात्
शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।
वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्युपर्यन्त लगभग अठारह महीने भारत के
प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा।भारत की
स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर
प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में
नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें
पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने
प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मन्त्री होने के
बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का
प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल
नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये।
उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के
लिये बहुत परिश्रम किया। जवाहरलाल
नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के
कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण
शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया।उनके
शासनकाल में 1965 का भारत पाक
युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष
पूर्वचीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध
में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में
भी नहीं की थी।
ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त
करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय
परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये
मरणोपरान्त भारत
रत्न से सम्मानित किया गया।
*सचिव -लाल कला मंच,नई दिली
E-mail.-lalkalamunch@rediffmail.com
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