गुरुवार, 4 सितंबर 2014

संत साहित्य की पहली संगोष्ठी समपन्न

 संत साहित्य की पहली  संगोष्ठी समपन्न

लाल बिहारी लाल
फरीदाबाद। संत साहित्य की पहली  संगोष्ठी  इसके अध्यक्ष डा. वलदेव बंशी के निवास पर इन्ही की अध्यक्षता में  फरीदाबाद में समपन्न हुई। इस गोष्ठी में दिल्ली एवं फरीदाबाद के कई कवियो ने हिस्सा लिया। इस गोष्ठी की शुरुआत अजय अक्श के गजल से हुई-बेटी के हाथ पीले तो हो गये मगर,मां के बदन से जितने थे गहने उतर गये। वही आशमा कौल ने बच्चो की मासूम हंसी पर कहा-क्या तुमने किसी/ बच्चे की हंसी सुनी है/दिल से निकली हंसी,दुआ –सी होती है।  इस गोष्ठी को आगे बढाया जय प्रकाश गौतम ने भक्ति रस से । हबीब सैफी ने कहा कि मिजाज अपना बदलना चाहती है /अना मेरी पिघलनी चाहिये। नागेश चंद्रा तथा वीरेन्द्र कमर ने अपनी-अपनी रचनाओं से इसे औऱ रवानगी दी। वही विजय एरोडा ने कहा कि आज रिश्ता स्वेटर के धागो की तरह हो गये है एक उधडा तो सारा बिखड गया । ज्योति जंग ने भी प्रकृति पर कविता सुनाया लाल कला मंच के सचिव लाल बिहारी लाल ने दोहा के माध्यम से भ्रुण हत्या पर कहा कि- आबादी निश-दिन बडे,लडकी कम पर होय़।देशहित समाज में यह अदभूत संकट होय।। अब्दूल रहमान मंसुर ने भी समाजिक सरोकार की कवितायें सुनाई इसके आलावें शिव प्रभाकर ओझा ने भी भक्ति रस सराबोर कविता पाठ किया। वही हरेराम समीप ने नदियो की दशा एवं दिशा पर ब्यंग्य करते हुए कहा कि- लगता है इस वक्त के नहीं इरादे नेक।नदी सुखाने वास्ते हुये किनारे एक।। गोष्ठी के समापन के बाद डा वंशी ने सभी को धन्यवाद दिया. 


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