लोक आस्था का
महापर्व- छठ व्रत
लाल बिहारी लाल
छठ मईया की महिमा,जाने सकल जहान।
“लाल पावे” जे पूजे, सदा करी कल्याण।।
(लाल बिहारी लाल)
छठ व्रत षष्टी यानी की छठे दिन मनाया जाता है इसलिए इसका नाम छठ पर्व पड़ गया। छठ व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित एक हिंदुऔं का विशेष पर्व है। उतर भारत के कई हिस्सों में खासकर यू.पी. और बिहार में तो इसे महापर्व के रुप में मानाया जाता है। शुद्धता, स्वच्छता और पवित्रता के साथ मनाया जाने वाला यह पर्व आदिकाल से मनाया जा रहा है। छठ व्रत में छठी माता की पूजा होती है और उनसे संतान व परिवार की रक्षा का वर मांगा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से छठ मैया का व्रत करता है। उसे संतान सुख जरुर प्राप्त होता है।
हर वर्ष
चैत एवं कार्तिक महिने में मनाया जाता है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में दीवाली
के चौथे दिन से शुरु होकर सातवें दिन तक कुल 4 दिनों तक मानाया जाता है। इसमें
पहले दिन यानी चतुर्थी को घऱबार साफ सुथरा करके स्नान करने के बाद खाना में चावल
तथा चने दाल तथा लौकी का सादा सब्जी बनाया जाता है फिर खाया जाता है जिसे नहा खाये
कहते है। अगले दिन संध्या में पंचमी के दिन खरना यानी के गुड़ में चावल का खीर
बनाया जाता है। उपले और आम के लकड़ी से मिट्टी के चूल्हें पर फिर सादे रोटी और
केला के साथ मां को याद करते हुए अग्रासन निकालने के बाद धूप हुमाद के साथ पूजा के
बाद पहले व्रती खाती है फिर घर के अन्य सदस्य खाते हैं। इसी के साथ मां का आगमन हो
जाता है। तत्पश्चात षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं। संध्या के समय पकवानों को बड़े बडे
बांस के डालों तथा टोकरीयों में भरकर नदी, तालाब, सरोवर आदि के किनारे ले जाया जाता है।जिसे छठ घाट
कहा जाता है। फिर व्रत करने वाले भक्त उन डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं षष्टी
माता को आर्घ्य
देते हैं।ताकि जाते हुए माता सभी दुख दर्द लेती जाये और फिर सूर्यास्त के पश्चात
लोग अपने-अपने घर आ जाते हैं। छठ व्रत के दौरान रात भर जागरण
किया जाता है और सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुन: संध्या
काल की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा
होते हैं। व्रत करने वाले सभी व्रतधारी सुबह के समय उगते सूर्य को
आर्घ्य देते हैं ताकि जीवन में नई उर्जा के संचार हो। इसमें अंकुरित चना हाथ में
लेकर षष्ठी व्रत की कथा कही और सुनी जाती है।कथाके बाद छठ घाट पर प्रसाद वितरण किया जाता है और फिर सभी अपने-अपने घर लौट आते हैं। तथा व्रत करने
वाले इस दिन पारण करते हैं। यह क्रम खरना के दिन से व्रती लगातार 36 घंटे निर्जल
एवं निराहार रहते हुए व्रत करती है।इसलिए इसे कठिनतम व्रत कहा गया है।
यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि
को मनाई जाती है। और यह भगवान
सूर्य को समर्पित है। बिहार और पूर्वांचल के निवासी आज जहां भी हैं वे सूर्य भगवान को अर्ग देने की परंपरा को आज भी कायम
रखे हुए हैं।यही कारण है कि आज यह पर्व
बिहार और पूर्वांचल की सीमा से निकलकर देश विदेश में मनाया जाने लगा है।
चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व बड़ा ही कठिन है। इसमें शरीर और मन को पूरी तरह साधना पड़ता है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार
भगवान राम सूर्यवंशी थे और उनके कुल देवता सूर्यदेव थे। इसलिए भगवान राम
जब लंका से रावण वध करके अयोध्या वापस लौटे तो अपने कुलदेवता का
आशीर्वाद पाने के लिए उन्होंने देवी सीता के साथ षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू
नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्टान
एवं अन्य वस्तुओं से अर्घ्य प्रदान
किया। सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का
आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद राजकाज संभालना शुरु किया। इसके बाद से आम जन
भी सूर्यषष्ठी का पर्व मनाने लगे ।
एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा प्रियव्रत थे उनकी पत्नी थी मालिनी ।राजा रानी नि:संतान होने से बहुत दु:खी थे। उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से मालिनी गर्भवती हुई परंतु नौ महीने बाद जब उन्होंने बालक को जन्म दिया तो वह मृत पैदा हुआ। प्रियव्रत इस से अत्यंत दु:खी हुए और आत्म हत्या करने हेतु तत्पर हुए ।प्रियव्रत जैसे ही आत्महत्या करने वाले थे उसी समय एक देवी वहां प्रकट हुईं। देवी ने कहा प्रियव्रत मैं षष्टी देवी हूं। मेरी पूजा आराधना से पुत्र की प्राप्ति होती है, मैं सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाली हूं। अत: तुम मेरी पूजा करो तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने देवी की आज्ञा मान कर कार्तिक शुक्ल
षष्टी तिथि को देवी षष्टी की पूजा की जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई । और उसी दिन से छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है।
इस त्यौहार को बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश एवं भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हर्षोल्लास एवं नियम निष्ठा के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार की यहां बड़ी मान्यता है। इस महापर्व में देवी षष्ठी माता एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के
लिए स्त्री और पुरूष दोनों ही व्रत रखते हैं। व्रत चार दिनों का होता है पहले दिन यानी चतुर्थी को आत्म शुद्धि हेतु व्रत करने वाले केवल अरवा खाते हैं । तत्पश्चात षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं। संध्या के समय पकवानों को बड़े बडे बांस के डालों तथा टोकरीयों में भरकर नदी, तालाब, सरोवर आदि के किनारे ले जाया जाता है। फिर व्रत करने वाले भक्त उन डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं षष्टी माता को आर्घ्य देते हैं। और फिर सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने-अपने घर आ जाते हैं। छठ व्रत के दौरान रात भर जागरण किया जाता है और सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुन: संध्या काल की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा होते हैं। व्रत करने वाले सभी व्रतधारी सुबह के समय उगते सूर्य को आर्घ्य देते हैं। अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी
एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा प्रियव्रत थे उनकी पत्नी थी मालिनी ।राजा रानी नि:संतान होने से बहुत दु:खी थे। उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से मालिनी गर्भवती हुई परंतु नौ महीने बाद जब उन्होंने बालक को जन्म दिया तो वह मृत पैदा हुआ। प्रियव्रत इस से अत्यंत दु:खी हुए और आत्म हत्या करने हेतु तत्पर हुए ।प्रियव्रत जैसे ही आत्महत्या करने वाले थे उसी समय एक देवी वहां प्रकट हुईं। देवी ने कहा प्रियव्रत मैं षष्टी देवी हूं। मेरी पूजा आराधना से पुत्र की प्राप्ति होती है, मैं सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाली हूं। अत: तुम मेरी पूजा करो तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने देवी की आज्ञा मान कर कार्तिक शुक्ल
षष्टी तिथि को देवी षष्टी की पूजा की जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई । और उसी दिन से छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है।
इस त्यौहार को बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश एवं भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हर्षोल्लास एवं नियम निष्ठा के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार की यहां बड़ी मान्यता है। इस महापर्व में देवी षष्ठी माता एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के
लिए स्त्री और पुरूष दोनों ही व्रत रखते हैं। व्रत चार दिनों का होता है पहले दिन यानी चतुर्थी को आत्म शुद्धि हेतु व्रत करने वाले केवल अरवा खाते हैं । तत्पश्चात षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं। संध्या के समय पकवानों को बड़े बडे बांस के डालों तथा टोकरीयों में भरकर नदी, तालाब, सरोवर आदि के किनारे ले जाया जाता है। फिर व्रत करने वाले भक्त उन डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं षष्टी माता को आर्घ्य देते हैं। और फिर सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने-अपने घर आ जाते हैं। छठ व्रत के दौरान रात भर जागरण किया जाता है और सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुन: संध्या काल की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा होते हैं। व्रत करने वाले सभी व्रतधारी सुबह के समय उगते सूर्य को आर्घ्य देते हैं। अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी
व्रत की कथा कही और सुनी जाती
है। कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और फिर सभी अपने-अपने घर लौट
आते हैं। तथा व्रत करने वाले इस दिन पारण करते हैं।
इस पर्व
के विषय में मान्यता है कि षष्टी माता और सूर्य देव से इस दिन जो भी मांगा जाता है वह मनोकामना पूरी होती है । इस अवसर
पर मनोकामना पूरी होने पर बहुत से लोग सूर्य देव को दंडवत प्रणाम करते हैं। सूर्य
को दंडवत प्रणाम करने
का व्रत बहुत ही कठिन होता है, लोग
अपने घर में कुल देवी या देवता को प्रणाम कर नदी तट तक दंड देते हुए जाते हैं। दंड
प्रक्रिया के अनुसार पहले सीधे खडे
होकर सूर्य देव को प्रणाम किया जाता है फिर पेट की ओर से ज़मीन पर लेटकर दाहिने हाथ से ज़मीन पर
एक रेखा खींची जाती है. यही प्रक्रिया नदी तट तक पहुंचने तक बार बार दुहरायी
जाती है । भगवान सूर्यदेव के प्रति भक्तों के अटल आस्था का अनूठा पर्व छठ हिन्दू
पंचांग के
अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के
चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता
है। इस साल छठ पर्व 24 अक्टूबर
से 27 अक्टूबर, 2017 तक मनाया जाएगा।
मार्कण्डेय
पुराण में छठ पर्व के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।दिवाली के ठीक छह दिन बाद मनाए
जानेवाले इस महाव्रत की सबसे कठिन और साधकों हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण
रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्टी की होती है, जिस कारण हिन्दुओं के इस परम पवित्र व्रत
का नाम छठ (Chhath Puja) पड़ा।
चार दिनों तक मनाया जानेवाला सूर्योपासना
का यह अनुपम महापर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष में बहुत ही
धूमधाम और हर्सोल्लास से मनाया जाता है ।
लाल बिहारी लाल
फोन-7042663073
(वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें