गुरुवार, 16 जुलाई 2015

क्या है भूमि अधिग्रहण नियम/अधिनियम तथा अध्यादेश (तब से अब तक) लाल बिहारी लाल

 

क्या है भूमि अधिग्रहण नियम/अधिनियम तथा अध्यादेश (तब से अब तक)

लाल बिहारी लाल
 भारत में सबसे पहले भुमि अधिग्रहण कानून सन 1894 में बने थे और इसी  के तहत वर्ष 2013 तक काम हो रहा था ।भूमि अधिग्रहण अधिनियम, १८९४ (The Land Acquisition Act of 1894) भारत और पाकिस्तान दोनों का एक कानून है जिसका उपयोग करके सरकारें निजी भूमि का अधिग्रहण (अपने कब्जे में लेना) कर सकतीं हैं। इसके लिये सरकार द्वारा भूमि मालिकों को बदले में क्षतिपूर्ति  (मुआवजा) देना आवश्यक है।
    भूमि अधिग्रहण को सरकार की एक ऐसी गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा यह भूमि के स्‍वामियों से भूमि का अधिग्रहण(अपने कब्जे में लेना) करती है,जिसमें सार्वजनिक प्रयोजन या किसी कंपनी के लिए इसका उपयोग किया जा सके। यह अधिग्रहण स्‍वामियों को मुआवज़े के भुगतान या भूमि में रुचि रखने वाले व्‍यक्तियों के भुगतान के अधीन होता है। आमतौर पर सरकार द्वारा भूमि का अधिग्रहण अनिवार्य प्रकार का नहीं होता है,ना ही भूमि के बंटवारे के अनिच्‍छुक स्‍वामी पर ध्‍यान दिए बिना ऐसा किया जाता है। संपत्ति की मांग और अधिग्रहण समवर्ती सूची में आता है, जिसका अर्थ है केन्द्र और राज्‍य दोनों सरकारे  इस मामले में कानून बना सकती हैं। ऐसे अनेक स्‍थानीय और विशिष्‍ट कानून है जो अपने अधीन भूमि के अधिग्रहण प्रदान करते हैं किन्‍तु भूमि के अधिग्रहण से संबंधित मुख्‍य कानून भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 है।
  यह अधिनियम सरकार को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए भूमि के अधिग्रहण का प्राधिकरण प्रदान करता है जैसे कि योजनाबद्ध विकास, शहर या ग्रामीण योजना के लिए प्रावधान, गरीबों या भूमिहीनों के लिए आवासीय प्रयोजन हेतु प्रावधान या किसी शिक्षा, आवास या स्‍वास्‍थ्‍य योजना के लिए सरकार को भूमि की आवश्‍यकता हो जिसमें जनता का लाभ हो तो सरकार भूमि अधिग्रहित (अपने कब्जे में लेना) कर सकती है।
इसे सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए शहरी भूमि के पर्याप्‍त भण्‍डार के निर्माण हेतु लागू किया गया था, जैसे कि कम आय वाले आवास, सड़कों को चौड़ा बनाना, उद्यानों तथा अन्‍य सुविधाओं का विकास करना आदी । इस भूमि को प्रारूपिक तौर पर सरकार द्वारा बाजार मूल्‍य के अनुसार भूमि के स्‍वामियों को मुआवज़े के भुगतान के माध्‍यम से अधिग्रहण किया जाता है।
चूकि इस अधिनियम में अधिग्रहण करने पर काफी विवाद होता था इसलिए यू.पी.ए. सरकार ने सन 2011 में एक भूमि अधिग्रहण बिला संसद में लेकर आई जो 2 सालो तक जद्दोजेहद करने के बाद वर्ष 2013 में भारतीय संसद में पास हुआ ।
    इस अधिनियम का उद्देश्‍य सार्वजनिक प्रयोजनों तथा उन कंपनियों के लिए भूमि के अधिग्रहण से संबंधित कानूनों को संशोधित करना है साथ ही उस मुआवज़े के राशि का  निर्धारण करना भी है, जो भूमि अधिग्रहण के मामलों में करने की आवश्‍यकता होती है। इसे लागू करने से बताया जाता है कि अभिव्‍यक्‍त भूमि में वे लाभ शामिल हैं जो भूमि से उत्‍पन्‍न होते हैं और वे वस्‍तुएं जो मिट्टी के साथ जुड़ी हुई हैं या भूमि पर मजबूती से स्‍थायी रूप से जुड़ी हुई हैं। मुआवजे का विरोध होने पर मुआवजे की राशि या दिशा निर्देश तय करने के लिए सरकार /किसान न्यायालय का सहारा ले सकते हैं।
 केन्द्र सरकार के लिए नोडल एजेंसी का काम शहरी विकास मंत्रालय तथा राज्यों के लिए जिला कलेकेटर या उपायुक्त या कोई अन्य अधिकारी  नियुक्‍त किया जाता है। कलेक्‍टर द्वारा घोषणा तैयार की जाती है और इसकी प्रतियां प्रशासनिक विभागों तथा अन्‍य सभी संबंधित पक्षकारों को भेजी जाती है। तब इस घोषणा की आवश्‍यकता इसी रूप में जारी अधिसूचना के मामले में प्रकाशित की जाती है। कलेक्‍टर द्वारा अधिनिर्णय जारी किए जाते हैं, जिसमें कोई आपत्ति दर्ज कराने के लिए कम से कम 15 दिन का समय दिया जाता है।
सभी राज्‍य विधायी प्रस्‍तावों में संपत्ति के अधिग्रहण या मांग के विषय पर कोई अधिनियम या अन्‍य कोई राज्‍य विधान, जिसका प्रभाव भूमि के अधिग्रहण और मांग पर है, में शामिल हैं, इनकी जांच राष्‍ट्रपति की स्‍वीकृति पाने के प्रयोजन हेतु धारा 200 (विधयेक के मामले में) या संविधान की धारा 213 (1) के प्रावधान के तहत भूमि संसाधन विभाग द्वारा की जाती है। इस प्रभाग द्वारा समवर्ती होने के प्रयोजन हेतु भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 में संशोधन के लिए राज्‍य सरकारों के सभी प्रस्‍तावों की जांच भी की जाती है, जैसा कि संविधान की धारा 254 की उपधारा (2) के अधीन आवश्‍यक है।
'भूमि अधिग्रहण तथा पुनर्वास एंव पुनर्स्थापना विधेयक 2011' के मसौदा के अनुसार मुआवज़े की राशि शहरी क्षेत्र में निर्धारित बाजार मूल्य के दोगुने से कम नहीं होनी चाहिए जबकि ग्रामीण क्षेत्र में ये राशि बाजार मूल्य के छह गुणा से कम नहीं होनी चाहिए.

पुनर्वास पैकेज

·         ज़मीन के मालिकों और आश्रितों के लिए विस्तृत पुनर्वास पैकेज का होना अनिवार्य है।
·         मुआवज़ा: ग्रामीण ज़मीन के लिए बाज़ार मूल्य से छह गुना और शहरी भूमि के लिए दोगुना होना चाहिये।
·         प्रभावित परिवार को 12 महीने तक तीन हज़ार निर्वाह भत्ता, इसके बाद 20 साल तक दो हज़ार रुपए वार्षिक भृत्ति
·         प्रभावित परिवार के एक सदस्य को अनिवार्य रूप से रोज़गार या दो लाख रुपए
·         अधिग्रहण के लिए 80 प्रतिशत परिवारों की मंज़ूरी अनिवार्य कर दिया गया है।
·         सोशल इंपैक्ट असेसमेंट अर्थात भुमि पर आश्रितों के लिए भी मुआवजा का प्रावधान रखा गया।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि ज़मीन के अधिग्रहण और पुनर्वास के मामलों को एक ही क़ानून के तहत लाए जाने की योजना है. बिधेयक में इस बात का प्रावधान है कि अगर सरकार निजी कंपनियों के लिए या प्राइवेट पब्लिक भागीदारी के अंतर्गत भूमि का अधिग्रहण करती है तो उसे 80 फ़ीसदी प्रभावित परिवारों की सहमति लेनी होगी.सरकार ऐसे भूमि अधिग्रहण पर विचार नहीं करेगी जो या तो निजी परियोजनाओं के लिए निजी कंपनियाँ प्राप्त करना चाहेंगी या फिर जिनमें सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए बहु-फ़सली ज़मीन लेनी पड़े।

इसमें एक 'अरजेंसी क्लाज़' जोडा गया जिसके तहत सरकार भूमिका अधिग्रहण जरुरी आधार पर कर सकती है इसमें-

1.   राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा प्रायोजन
2.   आपात परिस्थितियों या प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में पुनर्वास और पुनर्स्थापन आवश्कताएं
3.   दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में

इस विधेयक का उद्देश्य भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को सरल,पारदर्शी और प्रत्येक मामले में दोनों पक्षों के लिए तटस्थ बनाना है। हाल के वर्षों में हुए भूमि अधिग्रहण में अरजेंसी प्रावधान की काफ़ी आलोचना हुई है. इसके तहत सरकारें ये कहकर किसानों की ज़मीने बिना सुनवाई के तुरत फुरत ले लेती हैं कि परियोजना तत्काल शुरू करना ज़रूरी है.।मौजूदा क़ानून के इस प्रावधान ('अरजेंसी क्लाज़) में के तहत सरकार राष्ट्र हित में किसी भी ज़मीन का आधिग्रहण कर सकती है.
    अर्थात मसौदे के अनुसार सरकार राष्ट्रीय रक्षा एंव सुरक्षा के लिए, आपात परिस्थितयों या प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में पुनर्वास के लिए या दुलर्भ से दुलर्भतम मामलोंके लिए ही तात्कालिकता यानी अरजेंसी के प्रावधानों पर अमल करेगी। बिधेयक में ज़मीन के मालिकों और ज़मीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज का ज़िक्र है. इसमें उन भूमिहीनों को भी शामिल किया गया है जिनकी रोज़ी-रोटी अधिग्रहित भूमि से चलती है।    
  अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का प्रावधान है.लेकिन नए विधेयक में तात्कालिकता खंड नाम के इस प्रावधान को स्पष्ट किया गया है.।इसके अलावा पचास हज़ार का पुनर्स्थापना भत्ता, ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर और शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान भी दिया जाने का प्रावधान है.।
  इश नियम के बाद विकास की कई परियोजनायें लंबित हैं या अटके पडे हैं।
तब और अब भूमि अधिग्रहण क़ानून (मौदी सरकार का अध्यादेश) में क्या हुआ बदलाव?
इसके तहत 2013 में भूमि अधिग्रहण क़ानून में कुछ अहम बदलाव को मंज़ूरी दी गई है. इसमें

समाज पर असर वाले प्रावधान को ख़त्म किया गया है

भारत में 2013 क़ानून के पास होने तक भूमि अधिग्रहण का काम मुख्यत: 1894 में बने क़ानून के दायरे में होता था लेकिन मनमोहन सरकार ने मोटे तौर पर उसके तीन प्रावधानों में बदलाव कर दिए थे।ये भूमि अधिग्रहण की सूरत में समाज पर इसके असर, लोगों की सहमति और मुआवज़े से संबंधित थे।ये जबरन ज़मीन लिए जाने की स्थिति को रोकने में मददगार था पर सोशल इंपैक्ट असेसमेंट की मदद से ये बात सामने आ सकती थी कि किसी क्षेत्र में सरकार के ज़रिये भूमि लिए जाने से समाज पर इसका क्या प्रभाव हो सकता है.।
   ये इसलिए लागू किया गया था कि इससे ये बात सामने आ सकती थी कि इससे लोगों के ज़िंदगी और रहन-सहन पर क्या असर पड़ सकता है।सोशल इंपैक्ट असेसमेंट ये बात सामने ला सकता था कि पूरी अधिग्रहण प्रक्रिया का समाज पर क्या असर पड़ेगा.।इसके लिए आम सुनवाई की व्यवस्था पुराने क़ानून में थी पर इसमें नही है इसमें जमीन चाहियो तो चाहिये ही..।
   वित्त मंत्री अरूण जेटली ने पाँच क्षेत्रों का नाम लेते हुए कहा है कि इनमें सोशल इंपैक्ट असेसमेंट की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.
लोगों की रज़ामंदी के मामले से छुटकारा
2013 के क़ानून में एक प्रावधान रखा गया था लोगों सहमति का. इस अधेयादेश में सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में प्रभावित ज़मीन मालिकों में से 80 फ़ीसद की सहमती ज़रूरी थी.।आम तौर पर सरकारी परियोजनाओं के लिए ये 70 प्रतिशत था।नए क़ानून में इसे ख़त्म कर दिया गया है। वित्त मंत्री अरूण जेटली का कहना है कि रक्षा की तैयारी या सैन्य उत्पादन,, ग्रामीण बिजली य़ा इन्फ्रास्ट्रकटर, ग़रीबों के सस्ते दामों पर  पुर्नवास के लिए घर और पीपीपी को तहत चयनित औद्योगिक कॉरीडोर तथा रेल की लाइने बि अन्य इन्फ्रास्ट्रकटर जैसी परियोजनाओं में 80 फ़ीसद लोगों के सहमिति की आवश्यकता नहीं होगी.।

नहीं बढ़ा मुआवज़ा

हालांकि संशोधन में मुआवज़े की दर को पहले जैसा ही रखा गया है। शहरी क्षेत्रों में बाजार मूल्य के दोगुणा तथा ग्रामिण क्षेत्रों में छः गुणा राशि मावजा के रप में दी जायेगी।
लेखक -लाल कला मंच,नई दिल्लाी के सचिव है।
फोन-09868163073
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