मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

मां समान पृथ्वी का रखें ख्याल-लाल बिहारी लाल

22 अप्रैल पृथ्वी दिवस पर विशेष 
मां समान पृथ्वी का रखें ख्याल-लाल बिहारी लाल


सबसे पहले विश्व में सितम्बर 1969 में सिएटलवाशिंगटन में एक सम्मलेन में विस्कोंसिन के अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन घोषणा की कि 1970 की वसंत में पर्यावरण पर एक राष्ट्रव्यापी जन साधारण प्रदर्शन किया जायेगा। सीनेटर नेल्सन ने पर्यावरण को एक राष्ट्रीय एजेंडा में जोड़ने के लिए पहले राष्ट्रव्यापी पर्यावरण विरोध की प्रस्तावना दी."यह एक जुआ था," वे याद करते हैं "लेकिन इसने अपना काम किया."
जानेमाने फिल्म और टेलिविज़न अभिनेता एड्डी अलबर्ट ने पृथ्वी दिवस, के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। हालांकि पर्यावरण सक्रियता का सन्दर्भ में जारी इस वार्षिक घटना के निर्माण के लिए अलबर्ट ने प्राथमिक और महत्वपूर्ण कार्य किये, जिसे उसने अपने सम्पूर्ण कार्यकाल के दौरान प्रबल समर्थन दिया, लेकिन विशेष रूप से 1970 के बाद पृथ्वी दिवस को अलबर्ट के जन्मदिन22 अप्रैल, को मनाया जाने लगा। उनके इस प्रयास ने तत्कालीन सांस्कृतिक और पर्यावरण चेतना पर बहुमूल्य प्रभाव डाला।
         22 अप्रैल , 1970, पृथ्वी दिवस आधुनिक पर्यावरण आंदोलन की शुरुआत की. के बारे में 20 लाख अमेरिकियों , एक स्वस्थ है ,  स्थायी  हिस्सा लेने के उद्देश्य से पर्यावरण. हेस और अपने पुराने कर्मचारियों को भारी तट से तट रैलियों का आयोजन किया. कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के हजारों  पर्यावरण के प्रदूषण  के खिलाफ संगठित विरोध की. उस समूह  तेल रिसाव की , प्रदूषण, कारखानों और  बिजली संयंत्रों , कच्चे  मलजल , विषाक्त हार के कगार पर ,  जो कीटनाशकों ,  जिस तरह से खुला ,  जंगल को नुकसान , और  वन्यजीव   उन्मूलन  लड़ाई की, वह था  अचानक एहसास हुआ कि वे आम मूल्यों साझा कर रहे हैं . कर रहे हैं सेन नेल्सन पर पृथ्वी दिवस कहा  लोग  . "काम" के स्तर पर सहज प्रतिक्रिया का , 1970, महत्वपूर्ण कानूनों की एक संख्या के साथ पृथ्वी दिवस, कांग्रेस द्वारा पारित किए गए . सहित: -  स्वच्छ वायु अधिनियम , जंगली भूमि और  महासागर , और  संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी  के सृजन. 175 दुनिया के देशों, यह मनाया जाता है , और गैर लाभ  पृथ्वी दिवस नेटवर्क  द्वारा समन्वित है. जो पृथ्वी दिवस "दुनिया का सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष छुट्टी के अनुसार , अधिक एक अरब आधे से एक वर्ष से मनाया जाता है जो ".
     सन 1990 में 200 मिलियन लोगों का 141 देशों में आगमन और विश्व स्तर पर पर्यावरण के मुद्दों को उठा कर, पृथ्वी दिवस ने  22 अप्रैल को पूरी दुनिया में पुनः चक्रीकरण के प्रयासों को उत्साहित किया और रियो डी जेनेरियो में 1992 के संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी सम्मलेन के लिए मार्ग बनाया।
   2000 में, इंटरनेट ने पूरी दुनिया के कार्यकर्ताओं को जोड़ने में पृथ्वी दिवस की मदद किया । 22 अप्रैल के आते ही, पूरी दुनिया के 5000 समूह एकजुट हो गए, और 184 देशों के सैंकडों मिलयन लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। 2007 का पृथ्वी दिवस अब तक के सबसे बड़े पृथ्वी दिवसों में से एक था, जिसमें अनुमानतः हजारों स्थानों जैसे कीव, युक्रेन; काराकास, वेनेजुएला; तुवालु; मनीला, फिलिपींस; टोगो; मैड्रिड, स्पेन, लन्दन; और न्यूयार्क के करोड़ों लोगों ने हिस्सा लिया
.

ग्लेशियरों के पिघल जाने पर आने वाले कुछ दशकों में पृथ्वी के अस्तित्व के समक्ष खतरा पैदा होने जैसी बातों को महज अटकलबाजीकरार देते हुए भारत के शीर्ष हिम वैज्ञानिक रैना ने कहा है कि हिमालय के जिन ग्लेशियरों के पिघलने की बात उठ रही है, उनमें से महज दो से तीन हजार को ही भूमंडलीय तापमान में वृद्धि के चलते खतरा हो सकता है।आईपीसीसी की चौथी आकलन रिपोर्ट में हिमालयी ग्लेशियरों के 2035 तक पूरी तरह पिघलने के अनुमान को गलत साबित करती पर्यावरण और वन मंत्रालय की रिपोर्ट को पिछले वर्ष तैयार चुके भारतीय भूविज्ञान सर्वेक्षण के पूर्व उप निदेशक रैना ने कहा कि यह कहना सरासर गलत है कि आने वाले दशकों में सारे ग्लेशियरों के पिघल जाने के बाद पृथ्वी ही खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि पृथ्वी 4.5 सौ करोड़ वर्ष पुरानी है और चंद दशकों में उसके अस्तित्व को खतरा नहीं हो सकता। हालाँकि, तापमान को ग्लेशियर ही प्रभावित करते हैं और कार्बन उत्सर्जन की बेहद गंभीर समस्या के चलते उन्हें नुकसान भी पहुँच रहा है। रैना ने कहा कि हिमालय के भारतीय क्षेत्र में करीब 9,575 ग्लेशियर हैं। इनमें अगर खतरा होगा तो सिर्फ दो से तीन हजार ग्लेशियरों को होगा। गौरतलब है कि आईपीसीसी की रिपोर्ट के दावे के प्रत्युत्तर के रूप में आई पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया था कि हिमालय ग्लेशियर पिघल रहे हैं लेकिन उनके पिघलने की रफ्तार ऐसी नहीं है कि 2035 तक वे पूरी तरह विलुप्त होकर पृथ्वी के अस्तित्व के समक्ष खतरा
पैदा कर देंगे।
      ग्रीन हाउस गैस  के प्रभाव को कम करने के लिए दिसंबर 1997 में क्योटो पोटोकाँल लाया गया । जिसमें विश्व के 160 देशों ने यह स्वीकार किया कि ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाई जायेगी परन्तु भारत,चीन सहित कुछ देशों ने ही पहल किया जबकि कूल ग्रीन हाउस गैस का 80 प्रतिशत से ज्यादा उत्सर्जक अमेरिका आज भी इससे बचते आ रहा है।
 ग्रीन हाउस गैस पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले गैर.सरकारी संगठन टॉक्सिक लिंक्सके रवि अग्रवाल कहते हैं, 'अगर हमें पृथ्वी को बचाना है तो हमें कार्बन उत्सर्जन में कटौती पर ध्यान केंद्रित करना होगा।'  विकसित देशों को व्यापक कार्बन कटौती के लिये राजी नहीं किया गया तो पृथ्वी का अस्तित्व खतरे में होगा। अग्रवाल ने कहा कि पृथ्वी को बचाना है तो सरकारों को उद्योग जगत को साथ लेकर चलना होगा क्योंकि उन्हीं के चलते कार्बन उत्सर्जन और अन्य तरह के प्रदूषण में इजाफा हुआ है।

उन्होंने कहा कि खासतौर पर भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये कार्य योजना जरूर तैयार की है लेकिन इस योजना को सही मायनों में लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा।
  
पृथ्वी की रक्षा करने के कुछ सरल उपाय-
1.   बाजार जाते समय घर से कपडे,जूट का थैला या बास्केट लेते जायें।
2.   प्लास्टिक के उपयोग किये हुए थैले को पुनः उपयोग करे ।
3.   अलग-अलग समान के बजाये एक ही प्लासटिक थैली में अनेक समान एक साथ रखें .
4.   घर पर कम से कम प्लास्टिक थैले का उपयोग करें।
5.   पर्यावरण के प्रति स्वंय जागरुक रहे और औरों को भी जागरुक बनायें।
6.   बच्चों को प्रोत्साहित करें पर्यावरण के प्रति और प्लास्टिक से हेने वाले नुकसान को समझायें। 
7.   ताकि कल वो इसे समझ सकें।
8.   पानी की बर्बादी रोके।
9.   बच्चों के पुराने खिलौने कबाडी को न बेंचे बल्कि अपने से छोटे बच्चों को गिफ्ट में दे दें।
1. इसके अलावें कई ऐसे प्रयास है जिसके तहत पृथ्वी को होनेवाले नुकसान से बचाया जा सकता है।

लेखक –लाल बिहारी लाल, 
पर्यावरण प्रेमी ,सचिव-लाल कला मंच,नई दिल्ली

पीएच. 09868163073

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें