गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

आधुनिक भारत के निर्माता-बाबा भीमराव अंबेडकर


आधुनिक भारत के निर्माता-बाबा भीमराव अंबेडकर

 लाल बिहारी लाल



नई दिल्ली। बाबा साहव डा. भीमराव अंबेडकर दलितों के अभिमन्यु संविधान के बास्तुकार और युग निर्माता थे।डा. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में आधुनिक मध्य प्रदेश के मऊ नामक स्थान पर हुआ था । महार परिवार में जन्में डा.अंबेडकर के पिता राम 
जी सकपाल ब्रिटीश फौज में सुबेदार थे जबकि माता भीमा बाई ईश्वर भक्त गृहिणी थी। एक संत ने भविष्यवाणी करते हुए भीमा बाई को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि तुम्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ती होगी। भीमा बाई के पुत्र का नाम भीम रखा गया। इनके पिता रामजी सकपाल सेवा निवृत होने के बाद महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में अम्बावडे गाँव में बस गये। इस कारण इनका नाम स्कूल में भर्ती करवाते समय भीम राव रामजी अम्बावडे लिखा गया। नाम के उच्चारण में परेशानी होने के कारण स्कूल के एक ब्राहम्ण शिक्षक- रामचंद्र भागवत अंबेडकर ने अपना उपनाम इन्हें रख दिया । तभी से इनका नाम अंबेडकर पडा।डा. अंबेडकर को महार जाति में पैदा होने के कारण स्कूली शिक्षा के दौरान उन्हें कई कटू अनुभव हुए । उन्हें कमरा में पीछे बैठाया जाता था,पानी पीने की अलग ब्यवस्था थी। उस समय समाज में काफी असमानतायें थी जिस कारण डा. अंबेडकर का जीवन काफी संर्घषमय एवं सामाजिक विडंबनाओं एवं 
कुरीतियों से लडते हुए बीता।इनकी प्रारमंभिक शिक्षा दापोली के प्राथमिक विद्यालय में हुई। बर्ष की आयु में इनके माता का निधन हो गया। फलस्वरुप इनका लालन पालन इनकी बुआ ने की। 1907 में इन्होंने मैट्रीक की परीक्षा पास किया। अपने 
बिरादरी का मैट्रीक पास करने वाले पहले छात्र थे। फिर इनकी शादी भीकूजी वालगकर की पुत्री रमा से हो गई। उच्च शिक्षा के लिए सतारा से मुम्बई के एलिफिंसटन कालेज में गये।इस दौरान बडौदा महाराज की ओर से उन्हे 25रु प्रतिमाह वजीफा मिलने लगे। 1912 में बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद बडौदा राज्य की सेवा में वित फिर रक्षा में लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्त हुए। बडौदा महाराज ने उच्च शिक्षा के लिए सन 1913 में इन्हें न्यूय़ार्क भेज दिया। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद स्वदेश आये और भारत में फैले अस्पृश्यता को रोकने के लिए काफी प्रयास किया और संविधान में इसकी ब्यवस्था करवाया । स्वतंत्र भारत के प्रथम कानूनन मंत्री बने। दलितो के उद्दार के साथ साथ 
समाजिक भाईचारे को बढावा देने तथा वर्ण ब्यवस्था से ब्याप्त कुरीतियों को खत्म करने के लिए ता-उम्र लडते रहे और अंत में बाबा भीम राव अंबेडकर का  दिसंबर 1956 को इनका निधन हो गया।

पलायन पर वनी भोजपुरी फिल्म परदेस की शूटिंग संपन्न

यूपी बिहार से युवाओ के पलायन की समस्या पर बन रही फिल्म परदेस की शूटिंग संपन्न


 लाल बिहारी लाल



नई दिल्ली। अभिनव आर्ट्स और ऍम जी फिल्म्स प्रोडक्शन द्वारा एक गंभीर मुद्दे पर बन रही फिल्म परदेस की शूटिंग बिहार के सिवान और गोपालगंज जिला में संपन्न हुआ यह फिल्म यूपी और बिहार के परिवारों और युवाओ से जुडी एक गंभीर समस्या पलायनको मद्दे नजर रखते हुए बनाई जा रही है इस फिल्म के निर्माण में यूपी और बिहार सरकार का भरपूर सहयोग मिल रहा है। इस फिल्म के जरिये एक परिवार में पलायन से उत्पन्न समस्या को दिखाने की कोशिश किया गया है और समाज को बताने का प्रयास किया गया है कि जब एक नौजवान (बेटा, भाई, पति) अपने घर को छोड़कर परदेस जाता है तो उसके पीछे उसका परिवार किन-किन कठनाईयो का सामना करता है और उस परिवार में क्या क्या घटना घटती है इस फिल्म में पलायन से उत्पन्न समस्या और समाधान को दिखाने का पूरा प्रयास किया गया है, इस फिल्म की पटकथा को देखते हुए यही लग रहा है की जो दर्शक भोजपुरी फिल्मो से दुरी बना चुके है वो भी इस फिल्म को एक बार अपने परिवार के साथ सिनेमा घरो तक जरूर खींचे चले आएंगे,
इस फिल्म के निर्माता-अभिनेता शाहिद शम्स है और सह-निर्माता मुकेश कुमार गुप्ता है, पदम् गुरुंग जी इस फिल्म के निर्देशक है और गीत-संगीत और पटकथा विनय बिहारी जी का है, इस फिल्म के मुख्य कलाकार अभिनेता शाहिद शम्स, आनंद मोहन पांडेय, अभिनेत्री रूपा सिंह, गुंजन कपूर, मुकेश कुमार गुप्ता, कल्पना झा, समीर साह, राजा भोजपुरिया, विजय जी, तरुण तूफानी, रिंकू भारती, अर्जुन यादव मुखिया, जूही पांडेय, रुपेश आर बाबू, और कमांडो अर्जुन यादव है
आपको बता दे की परदेस फिल्म का पोस्ट प्रोडक्शन भी जोर शोर से चल रहा है, ताजा जानकारी मिलने तक 40 प्रतिशत फिल्म की एडिटिंग पूरी हो चुकी है और जल्द ही पोस्ट प्रोडक्शन का काम पूरा हो जायेगा, यह फिल्म होली के आस पास रिलीज़ होने की उम्मीद है, भोजपुरी में बहुत समय बाद दर्शको को एक ऐसी फिल्म देखने को मिलेगी ।

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018


गुदरी के लाल - देशरत्न डा.राजेन्द्र प्रसाद
लाल बिहारी लाल


   गुदरी के लाल देशरत्न डा.राजेन्द्र प्रसाद का जन्म दिसम्बर 1884 को बिहार के  तत्कालिन सारण जिला (अब सीवान)के  जीरादेई गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता महादेव सहाय हथुआ रियासत के दीवन थे। अपने पाँच भाई-बहनों में वे सबसे छोटे थे इसलिए पूरे परिवार में सबके लाडले थे। इन्हें चाचा भी काफी लार प्यार करते थे।
       राजेन्द्र बाबू के पिता महादेव सहाय  संसकृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं।इसका इसर राजेन्द्र बाबू का जीवन पर भी पड़ा ।ये बचपन से ही काफी मेधावी एवं बहुभाषी थे। इनकी हायर सेकेन्ड्री की पढ़ाई जिला स्कूल छपरा से शुरु हुई औऱ कोलकाता से डिग्री मिली । अपनी वकालत का अभ्यास भागलपुर में किया। इनकी शादी 13 साल की उम्र में ही हो गई परन्तु इनके पढाई पर कोई असर नहां पड़ा। इनका झुकाव बचपन से ही समाज और साहित्य के प्रति काफी था इसलिए गांधी जी से प्रभावित होकर अपनी नौकरी छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का झंडा उठा लिया। और साहित्य की श्रीवृद्धि में भी अपना योगदान दिया।
     1920 ई. में जब  अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का 10वाँ अधिवेशन पटना में हुआ तब भी वे प्रधान मन्त्री थे। 1923 ई. में जब सम्मेलन का अधिवेशन कोकीनाडा में होने वाला था तब वे उसके अध्यक्ष मनोनीत हुए थे परन्तु रुग्णता के कारण वे उसमें उपस्थित न हो सके अत: उनका भाषण जमना लाल बजाज ने पढ़ा था। 1926 ई० में वे बिहार प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के और 1927 ई० में उत्तर प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति थे। हिन्दी में उनकी आत्मकथा (1946)बड़ी प्रसिद्ध पुस्तक है। इसके अतिरिक्त कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें बापू के कदमों में (1954)इण्डिया डिवाइडेड (1946)सत्याग्रह ऐट चम्पारण (1922)गान्धीजी की देनभारतीय संस्कृति  खादी का अर्थशास्त्र  इत्यादि उल्लेखनीय हैं। अंग्रेजी में भी उन्होंने कुछ पुस्तकें लिखीं। उन्होंने हिन्दी के देश और अंग्रेजी के पटना लॉ वीकली  समचार पत्र का सम्पादन भी किया था।
  भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन  में उनका पदार्पण वक़ील के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करते ही हो गया था।चम्पारण में गांधी जी ने एक तथ्य अन्वेषण समूह भेजे जाते समय उनसे अपने स्वयंसेवकों के साथ आने का अनुरोध किया था। राजेन्द्र बाबू  महात्मा गाँधी की निष्ठासमर्पण एवं साहस से बहुत प्रभावित हुए और 1921 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पदत्याग कर दिया। गाँधीजी ने जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार की अपील की थी तो उन्होंने अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसादजो एक अत्यंत मेधावी छात्र थेउन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में दाखिल करवाया था। उन्होंने सर्चलाईट और देश जैसी पत्रिकाओं में इस विषय पर बहुत से लेख लिखे थे और इन अखबारों के लिए अक्सर वे धन जुटाने का काम भी करते थे। 1914 में विहार औऱ वंगाल  मे आई वाढ़ में उन्होंने काफी बढ़चढ़ कर सेवा-कार्य किया था। विहार के 1934 के बूकंप  के समय राजेन्द्र बाबू कारावास में थे। जेल से दो वर्ष में छूटने के पश्चात वे भूकम्प पीड़ितों के लिए धन जुटाने में तन-मन से जुट गये और उन्होंने वायसराय के जुटाये धन से कहीं अधिक अपने व्यक्तिगत प्रयासों से जमा किया।  सिंध औफ क्वेटा के भूकम्प के समय भी उन्होंने कई राहत-शिविरों का इंतजाम अपने हाथों मे लिया था।
      1934 में वे भा. रा. कांग्रेस के मुंबई  अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गये।नेता जी एश. सी. बोस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने पर कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार उन्होंने एक बार पुन: 1939 में सँभाला था। फिर 1942 में अंग्रैजो भारत छोड़ो आंदोलन में भी अपनी महती भूमिका निभाया
। स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण में भी सहयोग किया था। किसानों के प्रति लगाव एवं जमीनी स्तर पर जूडे होने के कारण स्वतंत्र भारत के प्रथम कृषी एवं खाद्य मंत्री बने थे फिर 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया लेकिन वे भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गये।  26 जनवरी 1950 को वे स्वतंत्र भारत के प्रथम  राष्ट्रपति बने। राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतन्त्र रूप से कार्य करते रहे। हिन्दू अधिनियम पारित करते समय उन्होंने काफी कड़ा रुख अपनाया था। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई ऐसे दृष्टान्त छोड़े जो बाद में उनके परवर्तियों के लिए मिसाल के तौर पर काम करते रहे। 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात उन्होंने 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की। अवकाश ले लेने के बाद ही उन्हें भारत सरकार  द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान  भारत रत्न से नवाज़ा गया। अपने जीवन के आख़िरी महीने बिताने के लिये उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम चुना। यहाँ पर 28 फ़रवरी 1963 में उनके जीवन की कहानी का अंत हो गया। यह कहानी थी श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों और परम्परा की चट्टान सदृश्य आदर्शों की। हमको इन पर गर्व है और ये सदा राष्ट्र को प्रेरणा देते रहेंगे। ऐसे राष्ट्रभक्त बहुत कम ही जन्म लेते है जो सबकुछ छोड़कर देश की सेवा में सदा लगा रहे।
       उनकी वंशावली को जीवित रखने का कार्य उनके प्रपौत्र अशोक जाहन्वी प्रसाद कर रहे हैं। वे पेशे से एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त वैज्ञानिक औऱ मनोचिकित्सक हैं। उन्होंने बाई-पोलर डिसऑर्डर की चिकित्सा में लीथियम के सुरक्षित विकल्प के रूप में सोडियम वैलप्रोरेट की खोज की थी। अशोक जी प्रतिष्ठित अमेरिकन अकैडमी ऑफ आर्ट ऐण्ड साइंस के सदस्य भी हैं।
लेखक-वरिष्ठ साहित्यकार एवं लाल कला मंच,नई दिल्ली के सचिव हैं।