जवाहर लाल नेहरू के 125 वीं जन्म दिवस
पर विशेष
(14 नवंबर,बाल दिवस के शुभ अवसर पर)
बच्चों के चाचा-जवाहर लाल नेहरू
लाल बिहारी लाल
नई दिल्ली। बच्चे हर देश का भविष्य और उसकी तस्वीर होते हैं. बच्चे ही किसी
देश के आने वाले भविष्य को तैयार करते हैं. लेकिन भारत
जैसे देश में बाल मजदूरी, बाल विवाह और बाल
शोषण के तमाम ऐसे अनैतिक और क्रूर
कृत्य मिलेंगे जिन्हें देख आपको यकीन नहीं होगा कि यह वही देश है जहां भगवान विष्णु को बाल रूप में पूजा
जाता है और जहां के प्रथम प्रधानमंत्री को बच्चे
इतने प्यारे थे कि उन्होंने अपना जन्म दिवस ही उनके नाम कर दिया.
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बच्चों से
विशेष प्रेम था। यह प्रेम ही था जो उन्होंने
अपने जन्म दिवस को बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। जवाहरलाल नेहरू को बच्चों से लगाव था तो वहीं
बच्चे भी उन्हें चाचा नेहरू के नाम से जानते थे। जवाहरलाल नेहरू ने नेताओं की छवि से
अलग हटकर एक ऐसी तस्वीर पैदा की जिस पर चलना
आज के नेताओं के बस की बात नहीं। आज चाचा नेहरू का जन्मदिन है, तो चलिए जानते हैं जवाहरलाल नेहरू के उस पक्ष के बारे
में जो उन्हें बच्चों के बीच चाचा बनाती थी।
14
नवंबर, 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मे पं.
नेहरू (P. Nehru) का बचपन काफी
शानोशौकत से बीता. उनके पिता देश
के उच्च वकीलों में से एक थे. पं. मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) एक धनाढ्य वकील थे. उनकी मां का नाम स्वरूप रानी नेहरू था. वह
मोतीलाल नेहरू के इकलौते पुत्र थे.
इनके अलावा मोती लाल नेहरू (Motilal Nehru)
की
तीन पुत्रियां थीं. उनकी बहन
विजयलक्ष्मी पंडित बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं.
वह महात्मा गांधी के कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के
खिलाफ लड़े. चाहे असहयोग आंदोलन की बात हो या फिर नमक सत्याग्रह या फिर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की बात हो
उन्होंने गांधी जी के हर आंदोलन में
बढ़-चढ़ कर भाग लिया. नेहरू की विश्व के बारे में जानकारी से गांधी जी काफी प्रभावित थे और इसीलिए
आजादी के बाद वह उन्हें प्रधानमंत्री पद पर देखना
चाहते थे. सन् 1920 में उन्होंने उत्तर
प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहले
किसान
मार्च का आयोजन किया. 1923 में वह अखिल भारतीय
कांग्रेस समिति के महासचिव चुने गए.
1929
में
नेहरू भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए. नेहरू आजादी के आंदोलन के दौरान बहुत बार जेल गए. 1920 से 1922
तक
चले असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें दो बार
गिरफ्तार किया गया.
नेहरू जहां गांधीवादी मार्ग से आजादी के आंदोलन के
लिए लड़े वहीं उन्होंने कई बार सशस्त्र संघर्ष
चलाने वाले क्रांतिकारियों का भी साथ दिया। आजाद हिन्द फौज के सेनानियों पर अंग्रेजों द्वारा चलाए गए मुकदमे में
नेहरू ने क्रांतिकारियों की वकालत की। उनके प्रयासों
के चलते अंग्रेजों को बहुत से क्रांतिकारियों का रिहा करना पड़ा। 27 मई,
1964 को
उनका निधन हो गया.
बच्चों के चाचा नेहरू
एक दिन तीन मूर्ति भवन के बगीचे में लगे पेड़-पौधों के बीच
से गुजरते हुए घुमावदार रास्ते पर नेहरू जी टहल
रहे थे।उनका ध्यान पौधों पर था, तभी पौधों के बीच से उन्हें एक बच्चे के रोने की आवाज आई. नेहरूजी ने आसपास देखा तो
उन्हें पेड़ों के बीच एक-दो माह का बच्चा दिखाई
दिया जो रो रहा था।
नेहरूजी ने उसकी मां को इधर-उधर ढूंढ़ा पर वह नहीं मिली.
चाचा ने सोचा शायद वह बगीचे में ही कहीं माली के साथ काम कर रही होगी. नेहरूजी यह सोच ही
रहे थे कि बच्चे ने रोना तेज कर दिया। इस पर उन्होंने
उस बच्चे की मां की भूमिका निभाने का मन बना लिया।
वह बच्चे को गोद में उठाकर खिलाने लगे और वह तब तक उसके
साथ रहे जब तक उसकी मां वहां नहीं आ गई। उस बच्चे
को देश के प्रधानमंत्री के हाथ में देखकर उसकी मां को यकीन ही नहीं हुआ।
दूसरा वाकया जुड़ा है तमिलनाडु से. एक बार जब पंडित नेहरू
तमिलनाडु के दौरे पर गए तब जिस सड़क से वे गुजर
रहे थे वहां लोग साइकलों पर खड़े होकर तो कहीं दीवारों पर चढ़कर नेताजी को निहार रहे थे। प्रधानमंत्री की एक झलक
पाने के लिए हर आदमी इतना उत्सुक था कि जिसे जहां समझ आया वहां खड़े होकर नेहरू जी
को निहारने लगा.
इस भीड़ भरे इलाके में नेहरूजी ने देखा कि दूर खड़ा एक गुब्बारे वाला पंजों के बल खड़ा डगमगा रहा था. ऐसा लग रहा था कि उसके हाथों के तरह-तरह के रंग-बिरंगी गुब्बारे मानो पंडितजी को देखने के लिए डोल रहे हों. जैसे वे कह रहे हों हम तुम्हारा तमिलनाडु में स्वागत करते हैं. नेहरूजी की गाड़ी जब गुब्बारे वाले तक पहुंची तो गाड़ी से उतरकर वे गुब्बारे खरीदने के लिए आगे बढ़े तो गुब्बारे वाला हक्का-बक्का-सा रह गया.
नेहरू जी ने अपने तमिल जानने वाले सचिव से कहकर सारे गुब्बारे खरीदवाए और वहां उपस्थित सारे बच्चों को वे गुब्बारे बंटवा दिए. ऐसे प्यारे चाचा नेहरू को बच्चों के प्रति बहुत लगाव था. नेहरू जी के मन में बच्चों के प्रति विशेष प्रेम और सहानुभूति देखकर लोग उन्हें चाचा नेहरू के नाम से संबोधित करने लगे और जैसे-जैसे गुब्बारे बच्चों के हाथों तक पहुंचे बच्चों ने चाचा नेहरू-चाचा नेहरू की तेज आवाज से वहां का वातावरण उल्लासित कर दिया. तभी से वे चाचा नेहरू के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
लेखक-वरिष्ठ साहित्यकार एवं लाल कला
मंच,नई दिल्ली के सचिव हैं।