गुरुवार, 4 जुलाई 2013

बदरपुर ट्रैफिक पुलिस की तुगलकी फरमान से जनता परेशान-लाल बिहारी लाल

बदरपुर ट्रैफिक पुलिस की तुगलकी फरमान से जनता परेशान लाल बिहारी लाल


मीठापुर। बदरपुर इलाके में  जैतपुर मोड पर आय़े दिन जाम लगा रहता है। इस जाम के मुख्य वजह ट्रैफिक पुलिस की लापरवाही से जनता पहले से ही काफी परेशान थी। अब बदरपुर ट्रैफिक अधिकारी का ध्यान किधर है।पुलिस की तुगलकी फरमान कि जैतपुर मोड पर कोई भी वस नहीं रुकेगी औऱ अगर रुकी तो इसे चालान भुगतना पडेगा पिछलो दिनो जैतपुर मोड का स्टैंड खत्म करने के लिए काफी बसो का चालान किया गया है। ताकि बसो पर दवाव बने और वो  जैतपुर मोड पर नही रोके। इससे आम जन काफी परेशान है क्योंकि जैतपुर मोड से ही अधिकांश सवारियां- जैतपुर,मीठापुर,स्कूल एवं ठेका आदी जाती है। जैतपुर मोड पर जाम लगने का मुख्य कारण है यहा से चलने वाली थ्रीह्विलर और ग्रामिणसेवा है। स्थानीय एंव ट्रैफिक पुलिस दोहरी मानसिकता के शिकार है क्योकि जाम का मुख्य कारण थ्रीह्विलर और ग्रामिणसेवा है पर उल्टे  बस  स्टैंड ही खत्म कर दिया गया। स्टैंड खत्म कर गुरुद्वारा के बाद बदरपुर बार्डर पर बस रुकेगी तो फिर इन थ्रीह्विलर और ग्रामिणसेवा को भी वही (गुरुद्वारा या बदरपुर बार्डर) से चलाना चाहिए और यहां का का स्टैंड थ्रीह्विलर और ग्रामिणसेवा के लिए भी खत्म करना चाहिए या फिर जैतपुर मोड स्टैंड बहाल करना चाहिए। इस बात पर आम लोगो का कहना है कि स्थानीय एवं ट्रैफिक पुलिस लापारवाही इसलिए बरतती है कि उन्हें  जैतपुर मोड से हर महिने मोटी रकम की कमाई होती है ऐसे में इस कमाऊ पुत का ध्यान तो रखना पडेगा शायद यही कारण है कि वहां पर जाम रुपी दानव का साम्राज्य सुबह हो या शाम कायम है। थ्रीह्विलर और ग्रामिणसेवा   आडे-तीरछे ,टेढे-मेढे किसी भी तरह गाडी को सडक पर ही खडी कर देते हैं तथा समानांतर खडी करके सवारी भऱते हैं औऱ कहीं से भी मोड देते है। जैतपुर मोड से जैतपुर,स्कूल और ठेका जाने वाली सवारी गाडियां(टैम्पू,ग्रामिणसेवा) मीठापुर की भी सवारी नहीं बैठाती हैं जिससे ज्यादा समय लगता है और सवारी भऱने के लिए गाडियां वही समानातंर खडी रहती हैं जिससे जाम और लगती है। इस जाम से आम आदमी काफी परेशान है। इस और ट्रैफिक पुलिस एंव संबंधित अधिकारी इस औऱ शीघ्र ध्यान दे ताकि आम जनता को राहत मिल सके। डी.टी.सी. की बसे भी जैतपुर एवं मीठापुर के लिए सुबह एवं शाम आँफिस के टाइम पर नहीं मिलती है। समस्या इधर है न जाने पुलिस एवं प्रशासन के आला

सोमवार, 3 जून 2013

लाल कला मंच एवं हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा संयुक्त रुप से बिश्व पर्यावरण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित

लाल कला मंच एवं हिन्दी अकादमी दिल्ली संयुक्त रुप से बिश्व पर्यावरण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
नई दिल्लीः लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच(रजि.) तथा हिन्दी अकादमी दिल्ली के संयुक्त तात्वावधान  में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विश्व में बिगडते हुए पर्यावरण के संरक्षण में युवाओं की भूमिका पर एक परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन लाल किरण बिल्डिंग्स,मीठापुर में किया गया। जिसमें  वक्ता के रुप में डा. अख्तर अंसारी एवं बल्लवगढ कालेज के पूर्व प्रो.(आचार्य) हवलदार सिंह शास्त्री तथा रतन सिंह ने भाग लिया। इन्होंने पर्यावरण संरक्षण पर युवाओं की भूमिका पर कहा कि आज के नई पीढी ही इसमें अहम भूमिका निभा सकती है।क्येकि वर्तमान पीढी इस पर उदासीन होते जा रही है। इसी अवसर पर पर्यावरण प्रेमी लाल विहारी लाल ने कहा कि पर्यावरण  संरक्षण  के लिए इसकी विगडती हुई दशा के रफ्तार को कम किया जा सकता है क्योकि बढती हुई आवादी की आवश्यकताओं का पूर्ति प्रकृति ही करती है इसलिए इसे अपने छोटे-छोटे कर्मों से इसे कम किया जा सकता है। जैसे.कागज के दोनों पन्नों पर लिखना,रद्दी कापी से बचे हुए पन्नें को अलग कर एक नई कापी खुद को बनाना,पालिथीन के स्थान पर कपडे का बैग उपयोग में लाना, घर के हर सदस्यों का एक अलग-अलग गिलास हो जिसे बार-बार धोने के लिए पानी की बर्वादी न हो। बिजली एवं पानी के बर्बादी को रोकना तथा एक्वा गार्ड में निकले बेकार पानी को संचय कर इसे घरेलू वागवानी में उपयोग मे लाने सहित अन्य छोटे-छोटे उपाय द्वारा इसे संरक्षित किया जा सकता है। इस अवसर पर भारतीय संस्कृति के प्रतीक  तुलसी के पौधो का भी लाल कला मंच द्वारा वितरण  किया गया।
   पर्यावरण पर आधारित रचनाओं का काव्य पाठ भी किया गया  जिसमें भाग लेने वाले कवि थे-डा.ए.कीर्तिवर्धन, इसरार अहमद,पर्यावरणप्रेमी लाल बिहारी लाल,श्री शिव प्रभाकर ओझा ,श्री महेन्द्र गुप्ता प्रीतम ,आकाश पागल,सुरेश मिश्रा,संचालन दिल्ली एथेंस के लेखक श्री सुमित प्रताप सिंहने किया । इसके अलावे श्री अर्श अमृतसरी के गजल संग्रह जिन्दगी गजल है लोकार्पण किया अतिथियों द्वारा किया गया । इस कार्यक्रम के में अतिथि वरिश्ठ पत्रकार राजकुमार अग्रवाल थे। संयोजन दिल्ली रत्न  लाल बिहारी लाल का तथा अध्यक्षता कामरेड जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। इस अवसर पर हिन्दी अकादमी ,दिल्ली से प्रतिनिधि के रुप में श्री जगदीश चंद्र मौयूद थे। अंत में संस्था की अध्यक्षा श्रीमती सोनू गुप्ता ने  सभी आगन्तुको का धन्यवाद ज्ञपन किया।
                                     







प्रस्तुतिः श्री लाल बिहारी लाल(सचिवःलाल कला मंच,नई दिल्ली)
फोन-09868163073




सोमवार, 6 मई 2013

Rang Abir Utsav-2013

लाल कला मंच द्वारा रंग अबीर उत्सव-एवं सम्मान समारोह-2013 समपन्न   

नई दिल्लीःलाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच(रजि.) द्वारा सामाजिक भाईचारे का पावन पर्व होली के शुभ अवसर पर एक सरस काव्य गोष्ठी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मिला जुला रुप  रंग अबीर उत्सव-2013(काव्य गोष्टी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम) का आयोजन अल्फा शैक्षणिक संस्थान,मीठापुर के प्रांगण में वरिष्ठ सामाजसेवी मास्टर डंबर सिंह की  अध्यक्षता में समपन्न हुआ। इस कार्यक्रम की शुरुआत लाल बिहारी लाल के सरस्वती वंदना-ऐसा माँ वर दे/विद्या के संग-संग/सुख समृद्धि से सबको भर दे, से शुरु हुआ। कार्यक्रम के अतिथि कामरेड जगदीश चंद्र शर्मा,मीठापुर के पूर्व निगम पार्षद महेश आवाना, समाजवादी आत्मा राम पांचाल तथा गौरव बिन्दल थे। इस कार्यक्रम का संयोजन दिल्ली रत्न श्री लाल बिहारी लाल का था तथा संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डा. ए. कीर्तिबर्धन ने किया। इस अवसर पर कवियों एवं बच्चों को संस्था द्वारा काव्य सेवी सम्मान अतिथियों द्वारा एवं अतिथियों को डा.आर कान्त एवं डा.के.के. तिवारी द्वारा समाजसेवी सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरुप अंग वस्त्र एवं सम्मान-पत्र प्रदान किया गया।
इस कार्यक्रम में स्थानीय विभिन्न स्कूलों के बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं दर्जनों
कवियों ने भी इस समारोह मे भाग लिया जिसमें-राकेश महतों, रवि शंकर, कृपा शंकर,दिनेश चन्द्र पाण्डेय, लाल बिहारी लाल ने कहा- होली होली की तरह मिल के मनायें संग।
                             जतन करें मिज जूल के बिखरे खुशी के रंग।।
ओइसक् अलावें डा.ए.कीर्तिबर्धन, सुश्री शिवरंजनी,,श्री के.पी. सिंह,श्री राकेश कन्नौजी, डा. सी.एन.शर्मा, हवलदाऱ शास्त्री,ब्रजवासी तिवारी मा.डंबर सिंह तनवर आदी प्रमुख थे। तुलसी शर्मा, मुरारी कुमार, महेश सिंगला, मलखान सैफी, श्रीमती शारदा गुप्ता,श्री मनोज गुप्ता सहित अनेक गन्य-मान्य ब्यक्ति मैयूद थे। अन्त में संस्था के आध्यक्ष श्रीमती सोनू गुप्ता ने  कवियो, अतिथियों एवं विभिन्न स्कूल से आये हुए बच्चों को धन्यवाद  दिया।                                                           

                                                                          
                           प्रस्तुति
 लाल बिहारी गुप्ता लाल,  सचिव लाल कला मंच






पुण्यतिथि 24 अप्रील पर विशेष (राष्ट्रकविः रामधारी सिंह दिनकर)

पुण्यतिथि 24 अप्रील पर विशेष
राष्ट्रकविः रामधारी सिंह दिनकर
   *लाल बिहारी लाल
जन्मः 23 सितम्बर 1908                         देहान्तः 24 अप्रैल 1974
आधुनिक हिंदी काव्य में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद करने वाले तथा युग चारण नाम से विख्यात । दिनकर जी का जन्म 23 सितम्बर 1908 ई0 को बिहार के तत्कालीन मुंगेर(अब बेगुसराय) जिला के सेमरिया घाट नामक गॉव में हुआ था। इनकी शिक्षा मोकामा घाट के स्कूल तथा पटना कॉलेज में हुई जहॉ से उन्होने इतिहास विषय लेकर बी ए (आर्नस) किया था ।
          एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, बिहार सरकार के अधीन सब रजिस्टार,जन संपर्क विभाग के उप निदेशक, लंगट सिंह कॉलेज, मुज्जफरपुर के हिन्दी विभागाध्यक्ष, 1952 से 1963 तक राज्य सभा के सदस्य,1963 में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति
,1965 में भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार (मृत्युपर्यन्त) आदी जैसे विभिन्न पदो को
सुशोभित किया एवं अपने प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया।
         साहित्य सेवाओं के लिए इन्हें डी लिट् की मानद उपाधि, विभिन्न संस्थाओं से इनकी पुस्तकों पर पुरस्कार। इन्हें 1959 में साहित्य आकादमी एवं पद्मविभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया । 1972 में काव्य संकलन उर्वशी के लिए इन्हें
ज्ञानपीठ पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया था।
दिनकर के काव्य में परम्मपरा एवं आधुनिकता का अद्वितीय मेल है
     राष्ट्रीयता दिनकर की काव्य चेतना के विकास की एक अपरिहार्य कडी है। उनका राष्ट्रीय कृतित्व इसलिए प्राणवाण है कि वह भारतवर्ष की सामाजिक,संस्कृतिक और उनकी आशा अकाकांक्षाओं को काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करने में सक्षम है। वे वर्त्तमान के वैताली ही नहीं बल्कि मृतक विश्व के चारण की भूमिका भी उन्हें निभानी पडी थी ।
    परम्मपरा एवं आधुनिकता की सीमाओं से निकलकर उनका ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण ही दिनकर की राष्ट्रीयता के फलक को व्यापक बनाती है।
      दिनकर के काव्य में जहॉ अपने युग की पीडा का मार्मिक अंकन हुआ है,वहॉ वे शाश्वत और सार्वभौम मूल्यों की सौन्दर्यमयी अभिव्यक्ति के कारण अपने युग की सीमाओं का अतिक्रमण किया है। अर्थात वे कालजीवी एवं कालजयी एक साथ रहे हैं।
      राष्ट्रीय आन्दोलन का जितना सुन्दर निरुपण दिनकर के काव्य में उपलब्ध होता है,उतना अन्यत्र नहीं? उन्होने दक्षिणपंथी और उग्रपंथी दोनों धाराओं को आत्मसात करते हुए राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास ही काव्यवद्ध कर दिया है।
सन 1929 में 25 अक्टूबर को लॉर्ड इरविन ने जब गोलमेज सम्मेलन की घोषणा की तो युवको ने विरोध किया । तत्कालीन भारत मंत्री वेजवुड के द्वारा उक्त ब्यान को 1917
वाले वक्तव्य का पुर्नरावृति माना । 1929 में कांग्रेस का भी मोह भंग हो गया । तब दिनकर जी ने प्रेरित होकर कहा था-
      टूकडे दिखा-दिखा करते क्यों मृगपति का अपमान ।
     ओ मद सत्ता के  मतवालों  बनों ना  यूं  नादान ।।
स्वतंत्रता मिलने के बाद भी कवि युग धर्म से जुडा रहा। उसने देखा कि स्वतंत्रता उस व्यक्ति के लिए नहीं आई है जो शोषित है बल्कि उपभोग तो वे कर रहें हैं जो सत्ता के
केन्द्र में हैं। आमजन पहले जैसा ही पीडित है, तो उन्होंने नेताओं पर कठोर व्यंग्य करते हुए राजनीतिक ढाचे को ही आडे हाथों लिया-
      टोपी कहती है मैं थैली बन सकती हू ।
      कुरता कहता है मुझे बोरिया ही कर लो।।
      ईमान बचाकर कहता है  ऑखे सबकी,
      बिकने को हू तैयार खुशी से जो दे दो ।।
दिनकर व्यष्टि और समष्टि के सांस्कृतिक सेतु के रुप में भी जाने जाते है, जिससे इन्हें राष्ट्रकवि की छवि प्राप्त हुई। इनके काव्यात्मक प्रकृति में इतिहास, संस्कृति एवं राष्ट्रीयता
का वृहद पूट देखा जा सकता है ।
   दिनकर जी ने राष्ट्रीय काव्य परंपरा के अनुरुप राष्ट्र और राष्ट्रवासियों को जागृत और उदबद बनाने का अपना दायित्व सफलता पूर्वक सम्पन्न किया है। उन्होने अपने  पूर्ववर्ती राष्ट्रीय कवियों की राष्ट्रीय चेतना भारतेन्दू से लेकर अपने सामयिक कवियों तक आत्मसात  की और उसे अपने व्यक्तित्व में रंग कर प्रस्तुत किया। किन्तु परम्परा के सार्थक निर्वाह के साथ-साथ उन्होने अपने आवाह्न को समसामयिक विचारधारा से जोडकर उसे सृजनात्मक बनाने का प्रयत्न भी किया है। उनकी एक विशेषता थी कि वे साम्राज्यवाद के साथ-साथ सामन्तवाद के भी विरोधी थे। पूंजीवादी शोषण के प्रति उनका दृष्टिकोण अन्त तक विद्रोही रहा। यही कारण है कि उनका आवाह्न आवेग धर्मी होते हुए भी शोषण के प्रति जनता को विद्रोह करने की प्रेरणा देता है ।’’ अतः वह आधुनिकता के धारातल का  स्पर्श भी करता है ।
इनकी मुख्य कृतियॉः
*काव्यात्मक-रेणुका,द्वन्द गीत, हुंकार(प्रसिद्धी मिली),रसवन्ती(आत्मा बसती थी)चक्रवात. धूप-छांव, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथि(कर्ण पर आधारित), नील कुसुम, सी.पी. और शंख, उर्वशी (पुरस्कृत), परशुराम प्रतिज्ञा, हारे को हरिनाम आदि।
गद्य- संस्कृति का चार अध्याय, अर्द नारेश्वर, रेती के फूल, उजली आग,शुध्द कविता की खोज, मिट्टी की ओर,काव्य की भूमिका आदि
                          265ए/7 शक्ति विहार, बदरपुर,नई दिल्ली-110044,फोन-9868163073